मिल गया मिल गया मिल गया ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
मिल गया है सरकार को देश से भूख और गरीबी मिटाने का तरीका मिल गया है। शायद अभी ऐलान नहीं किया जा रहा क्योंकि मिला इक विदेशी कंपनी से है और सरकार को किसी देश की कंपनी से अनुबंध करवाना है बिचौलिया बनकर। समस्या ये है कि झामदेव जी चाहते हैं उनको साथ लिया जाये मगर ये बिना किसी को पता चले कि सवदेशी की बात कहने वाला विदेशी का साथ चाहता है। वास्तव में उसको किसी विदेशी कंपनी से कोई परेशानी नहीं है उसके लिए अपनी कंपनी को छोड़ बाकी सब नकली सामन महंगे दाम बेचने वाली लुटेरी कंपनी हैं। तीन साल से जिस की तलाश थी वो उपाय मिल गया है। सरकार को खेती किसानी और गेंहूं चावल की फसल उगाने वालों से अधिक विश्वास आधुनिक विज्ञान पर है। मेक इन इंडिया और मेड इन इंडिया जो नहीं कर पाया वो इक विदेशी दौरे पर मिल गया है।
इक नया सॉफ्टवेयर बन गया है जो बिना अनाज के अपने आप रोटी बनाया करेगा। जनता को अपने स्मार्ट फोन पर सरकारी ऐप डाउनलोड करना होगा और जब भूख लगे उस से रोटी लेकर पेट भरना आसान होगा। अभी सरकार को बहुत बातों पर विचार करना है , सब से महत्वपूर्ण बात दल के अध्यक्ष की राय है कि इस योजना को अभी नहीं 2019 के चुनाव से पहले घोषित किया जाये ताकि अगला चुनाव जीता जा सके। लोगों की भूख मिटे न मिटे सत्ता की भूख मिटनी ज़रूरी है। अभी सॉफ्टवेयर की रोटी पर शोध किया जाना चाहिए कि उसका उपयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तो नहीं। हालांकि नेताओं अधिकारीयों और धनवानों को ऐसा रिस्क लेने की ज़रूरत नहीं है। तब भी उनको झामदेव जी का शुद्ध आता उपलब्ध करवाया जाता रहेगा। जनता भूख लगे तब घास फूस तक कुछ भी खा लिया करती है उसे सॉफ्टवेयर की सुंदर रोटी खाने में क्या संकोच होगा। लेकिन जब लोग सॉफ्टवेयर रोटी के आदि हो गए तब किसानों की उपज का क्या होगा। किसान को अगर खेती नहीं करनी पड़ी और बैठे बैठे रोटी मिलने लगी तब किसान मज़दूर क्यों कोई काम करेंगे। और बिना काम किये खाने की आदत नेताओं और अफ्सरों की तरह उन्हें भी निकम्मा बना देगी। राजनीति में पहले ही बहुत भीड़ है उसे इतना अधिक बढ़ाना बेहद खतरनाक होगा।
विदेशी कंपनी का क्या भरोसा कब तकनीक देने से इनकार ही कर दे या फिर बदले में सरकार पर ही कब्ज़ा जमा ले। अभी ये भी शक है कहीं इस के पीछे विदेशी आंतकवाद या आई एस आई जैसे लोग तो नहीं। भारत दो सौ साल इसी तरह गुलाम रहा है। और मौजूदा सरकारी दल फिर से आज़ादी की लड़ाई में शामिल नहीं होने और विरोध करने की भूल नहीं दोहराना चाहता। जब खुद किसी विदेशी कंपनी को बुलाया तब उसका साथ देना ही होगा। अभी चिंतन जारी है और हिसाब लगाया जा रहा है कि फायदे का सौदा है या घाटे का। 15 अगस्त के भाषण से पता चलेगा कि खबर है या अफवाह है। अफवाह भी हो तो बुरी नहीं।
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