सितंबर 01, 2017

POST : 727 जुर्म हम लोग बस एक करते रहे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

जुर्म हम लोग बस एक करते रहे ( ग़ज़ल ) डॉ  लोक सेतिया "तनहा"

जुर्म हम लोग बस एक करते रहे
अश्क़ पीते गये आह भरते रहे ।

किस को झूठा कहें किस को सच्चा कहें
बात कर के सभी जब मुकरते रहे ।

रात तूफान की बन गई ज़िंदगी
बिजलियों की चमक देख डरते रहे ।

मुख़्तसर सी हमारी कहानी रही
जो बुने ख्वाब सारे बिखरते रहे ।

हर कदम पर नये मोड़ आये मगर
हौंसलों के सफर कब ठहरते रहे ।

लोग सब प्यार को जब लगे भूलने
कुछ सितारे ज़मीं पर उतरते रहे ।

वो सितमगर सितम रोज़ ढाते रहे
और इल्ज़ाम "तनहा " पे धरते रहे । 
 

 

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