जुलाई 25, 2015

POST : 483 है तो बहुत कुछ और भी बताने को , हो अगर फुर्सत कभी ज़माने को ( आलेख ) - डॉ लोक सेतिया

 है तो बहुत कुछ और भी बताने को  हो अगर फुर्सत ज़माने  को 

                             ( आलेख )   डॉ लोक सेतिया                    

     कभी कभी सोचता हूं क्या अच्छा होता है , खुश रहना , मौज मस्ती करना , मुझे क्या हर बुराई को देख यही सोचना या फिर उदास होना देख कर कि देश समाज कितना झूठा कितना दोगला और कितना संवेदनाहीन हो चुका है। कोई सत्येंदर दुबे मार दिया जाता है भ्र्ष्टाचार के बारे पत्र लिखने के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को , क्योंकि वो पत्र लीक हो जाता है देश के प्रधानमंत्री कार्यालय से। नहीं ये अकेली घटना नहीं है , ये हर दिन होता है। हज़ारों पत्र लिखे जाते हैं मुख्यमंत्रियों को अधिकारियों को जो रद्दी की टोकरी में फैंक दिये जाते हैं। हमारा समाज देखता तक नहीं उनको जो चाहते हैं बंद हो ये सब , कोई दुष्यंत कुमार अपनी बात ग़ज़ल में बयां करता है तो कोई दूसरा लिखने वाला व्यंग्य या कहानी में। सोचता है कोई , समझता है कोई। हां जब कोई शोर मचाता है लोकपाल के लिये आंदोलन का या कुछ भी बताकर और खबरों में छा जाता है हम उसको मसीहा मान लेते हैं। हम क्यों देखें कि इनमें कौन क्या है , इक वो है जो आयकर विभाग से वेतन लेकर विदेश पढ़ने को जाता है मगर वापस आकर नियमों का पालन नहीं करता कि अब उसको दो साल विभाग को अपनी सेवायें अनिवार्य रूप से देनी हैं। इतना ही नहीं वो विभाग से लिया क़र्ज़ भी तब तक लौटने को तैयार नहीं होता जब तक चुनाव लड़ने को ऐसा करने को मज़बूर नहीं होता। क्या यही ईमानदार है , या फिर इनका दूसरा साथी जो कहने को शिक्षक है , वेतन पढ़ाने का पाता रहता है मगर काम कोई और ही करता है मीडिया में जुड़कर। ये सब अवसरवादी लोग सत्ता हासिल करते ही उन्हीं के जैसे हो जाते जिनको कोसते थे पानी पी पी कर। अब उनको एक ही काम ज़रूरी लगता है विज्ञापनों द्वारा खुद को महिमामंडित करना।

             चलो उनको छोड़ औरों की बात करते हैं , पिछली सरकार ने हर विधायक को मंत्री-मुख्य संसदीय सचिव बना रखा था , उसका विरोध करने वाले अब खुद वही कर रहे हैं। हरियाणा में जो पहली बार विधायक बने उनको भी कुर्सी मिल गई , किसलिये ? क्या प्रशसनिक ज़रूरत को , कदापि नहीं , ताकि वो भी अपना घर भर सकें। और मोदी जी क्या करना चाहते हैं , किन लोगों की चिंता है ? देश की इक तिहाई जनता जो भूखी रहती है आपको उसकी ज़रा भी चिंता है , लगता तो नहीं।  किसानों की बात भी ज़रूरी है , मगर मोदी जी मिलते हैं अमिताभ बच्चन जी जैसे किसानों से , कोई गांव का किसान भला मिल सकता किसी ज़िले के अफ्सर से भी , मंत्री की बात तो छोड़ो।  मिल कर भी क्या होगा , ये सत्ता पर काबिज़ होते ही भीख देना चाहते हैं उनको जो वास्तव में देश की मालिक है जनता। मोदी जी तो इक कदम आगे बढ़कर अब सब्सिडी को छोड़ने को कहते हैं ये वादा कर कि किसी और को देंगे। ये नेता और इनके वादे , प्रचार पर पैसा बर्बाद करने वाले क्या जानता ये पैसा जिनका है वो भूख से मर रहे हैं , ख़ुदकुशी करने वाले किसानों को मोदी जी के मंत्री नपुंसक और असफल प्रेमी बताते हैं निर्लज्जता पूर्वक।  शर्म करो। बात आम आदमी पार्टी की हो या भाजपा की , जो कांग्रेस किया करती थी अपनों के अपकर्मों पर खामोश रहना वही ये भी करते हैं। किसी शायर का इक शेर याद आया है :-
                 " तो इस तलाश का अंजाम भी वही निकला ,
                   मैं देवता जिसे समझा था आदमी निकला। "

                  चलो इक और बात की जाये , बेटी बचाओ की बात , बेटी के साथ सेल्फ़ी की बात , अखबार भरे पड़े हैं तस्वीरों से , मुस्कुराती हुई।  वो जो कचरा बीनती फिरती हैं , कौन हैं ? वो जो घर घर सफाई बर्तन साफ करने का काम करती वो कौन हैं , इक सेल्फ़ी भी उनकी नहीं जिनके हिस्से कुछ भी नहीं है।  चलो छोड़ो उनका भाग्य ऐसा मानकर , मगर जिनकी सेल्फ़ी देख रहे हैं उनको क्या सब अधिकार मिलेंगे।  ये पूछना उस पिता से क्या उसको बेटे के बराबर सम्पति में हिस्सा दोगे ?

                सरकार बदलती है , तरीका नहीं बदलता , दिखाने को खिलाड़ियों को करोड़ों के ईनाम , असल में बच्चों को खेलने देने को समय नहीं न ही सुविधा। हरियाणा में किसी खिलाड़ी को स्कूल बनाने को ज़मीन , किसी को नौकरी भी पुरूस्कार भी। जब वक़्त आता देश के लिये पदक लाने का तब बिक जाते हैं खिलाड़ी बाज़ार में महंगे दाम पर। अब अदालत ने पूछा है हरियाणा सरकार से वो क्या कर रही थी जब सरकारी नौकरी पर नियुक्त खिलाड़ी विज्ञापन कर रहा था बिना अनुमति प्राप्त किये। लो इक नई खबर , वही पुराना तरीका , हरियाणा में अपने ही वरिष्ठ मंत्री , नेता को उन्हीं के विभाग के कर्यक्रम में नहीं बुलाना या समझ लो ऐसे बुलाना जैसे न आने को , फिर उसकी जासूसी करते सी आई डी वाले।  क्या डर है इनको , अगर सच ईमानदारी से देश सेवा करनी तो कोई आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। पर्दादारी की ज़रूरत तभी होती है जब राज़ होते हैं छुपाने को। 

 

2 टिप्‍पणियां:

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

satay bayaani ..bilkul khari khari kahi apne ..

Rajendra kumar ने कहा…

आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (14.08.2015) को "आज भी हमें याद है वो"(चर्चा अंक-2067) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।