जनवरी 08, 2015

की मैं झूठ बोलिया ( तरकश ) डा लोक सेतिया

       की मैं झूठ बोलिया ( तरकश ) डा लोक सेतिया

बहुत बातें हैं मन में कई दिन से , समझ नहीं पा रहा कि कैसे लिखूं। व्यंग्य की बात नहीं है , मगर देख कर लगता है इस पर कोई हंसे या रोये। मुझे याद है पंजाबी में बोलियां डाली जाती थी , सच्चे फांसी चढ़दे वेखे झूठा मौज मनाये , लोकी कहंदे रब दी माया , मैं कहंदा अन्याय  , वे की मैं झूठ बोलिया , वे की मैं कुफ्र तोलिया । कोइना भाई कोइना। और भी बहुत हैं ऐसी बोलियां।

    चलो मुहावरे की भाषा को छोड़ सीधे जो कहना कहता हूं। गुरु जी बने हुए हैं , करते कारोबार हैं झूठ का , लेबल बिकता है सच के नाम का। अनुयाई हैं लाखों जो देखते ही नहीं गुरु किसको बनाया हुआ है , जो खुद भटका हुआ वो सभी को रास्ता दिखाता है। कोई गीता का ज्ञान बेचता है , कोई कुरान कोई गुरुग्रंथ साहिब को अपना अधिकार समझ व्यवसाय करता नज़र आता है। सब सफल हैं , सब मालामाल हैं। बचपन में पढ़ते थे वो कहानी हाऊ मच लैंड ए मैन नीड्स। खड़े होने को दो हाथ और मरने के बाद दो गज़ ज़मीन , जानते तो सभी हैं ,फिर भी भाग रहे हैं अधिक की चाह में। जब भी जाते किसी शोक सभा में तब देखते हैं कि वहां भी किसी तथाकथित गुरु का प्रचार किया जा रहा है , कैसी विडंबना है ऐसी जगह भी किसी को लगता अपना विस्तार करने का अवसर है। बहुत दिन से इक गुरु के अनुयाई किया करते थे इक जाप , इधर इक और ने उसी की तर्ज़ पर नया जाप लिखवा लिया सुना कर अपना प्रचार पाने को। अब ये राम और कृष्ण की बात करते हैं तो लगता है मानो उनका उपहास किया जा रहा है। नगर नगर में इनका नेटवर्क बनाया हुआ है , और सच कहूं तो अज्ञानी लोग ज्ञान देने की बात करते हैं। थोड़ा ध्यान दो तो मालूम होता है ये क्या सबक पढ़ा रहे हैं , कहीं सच्चाई की बात नहीं है , सब शॉर्टकट बताते स्वर्ग जाने का। केवल माला जपने से सब मिल जाना है , चाहे जीवन भर जो भी किया हो। मुझे लगता है अगर इनकी बात सच है तब नर्क तो कोई नहीं जाता होगा , सभी तो बैकुंठ को जाते हैं ये दावा किया जाता है। सब की शोक सभा में उसका गुणगान धर्मात्मा के रूप में करते हैं , क्या ऐसे जगह जो बोला जाता वो सच है। कहीं ऐसा तो नहीं जहां सिर्फ सच होना चाहिये वहां झूठ भी भरी सभा में ज़ोर ज़ोर से बोलते हैं। जो माता-पिता को रोटी नहीं खिलाते थे वो उनके नाम पर लंगर चलाते हैं , मृत्युभोज देते हैं। उनको लगता है ये भी अवसर है खुद को दानवीर कहलाने का। अगर गौर से देखो तो अब कलयुगी गुरुओं के कलयुगी ही शिष्य हैं , जिनको अपकर्म करते कभी ईश्वर याद नहीं आया जीवन भर वो धर्म बेचने वालों के साथी बन गये हैं। मुझे लगता है अगर ये सब सही है और जितने भी आजकल के संत महात्मा , साधु सन्यासी हैं वो सच्चे हैं तब धरती पर पापी कोई भी नहीं मेरे सिवा। चलो अच्छा है मुझे पता है मरने के बाद मुझे क्या मिलेगा , नर्क कोई बुरी जगह नहीं होगी , इस दुनिया से बुरी तो कदापि नहीं। और कितना अच्छा होगा वहां कोई और नहीं होगा , न कोई अपना न कोई पराया , न कोई दोस्त न कोई दुश्मन। बाकी सभी तो स्वर्ग में चले गये होंगे , वहां मुझे कितना चैन मिलेगा , चिंतन भी कर सकूंगा बैठ कर , अपने कर्मों का फल तो मिलना ही है उसमें घबराना क्या। लेकिन फिर भी खुश रहूंगा मैं नर्क में भी क्योंकि इस दुनिया से भगवान का बनाया नर्क भी बेहतर ही होगा। की मैं झूठ बोलिया।

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