निभा सको अगर करना मुहब्बत ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
मैं नहीं जानताक्या तुम
कोई अप्सरा हो
स्वर्ग की
मेनका की तरह ।
मगर मुझे
मालूम है
मैं कोई विश्वामित्र
नहीं हूं
मैं कोई तपस्या
नहीं कर रहा था
किसी इंद्रलोक का
राज पाने के लिये ।
मैं तो इक इंसान हूं
धरती की दुनिया का
और तमाम उम्र
तरसता रहा मैं
किसी के प्यार को
तुम मिल गई मुझे
यूं ही सरे राह चलते
और में आवाक
देखता रह गया तुम्हें ।
अपनी तकदीर पर
भरोसा नहीं मुझको
छलती रही है मुझे
बार बार उम्र भर
डरता रहा हूं मैं
खूबसूरत अपसराओं से ।
खुद को नहीं समझा
इस काबिल कभी मैंने
कि कोई अप्सरा
मुझसे करने लगे प्यार
टूटा हूं जाने कितनी बार
ज़माने की बेवफाई से ।
अब के टूटा तो
बिखर ही जाऊंगा
रेत के घर जैसा
इसलिये किसी भी
प्यार के बंधन में
बंधने से पहले
चाहता हूं पूछना
अपना सवाल ।
फिर तुम से इक बार
क्या वास्तव में
तुमको मुझसे
हो गया है सच्चा प्यार
मुझे नहीं रहा खुद पर
तुमको तो है न
अपने पर ऐतबार ।
चाहो तो अभी आज
मुझे बेशक
कर दो इनकार
निभा सको हमेशा
तभी करना
प्यार का इज़हार ।
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