जुलाई 15, 2020

कभी खुद को भी देखो दर्पण में ( बदलते बाट ) डॉ लोक सेतिया

  कभी खुद को भी देखो दर्पण में ( बदलते बाट ) डॉ लोक सेतिया 

      उसने क्या किया किस किस ने क्या किया सब की बात कहते हैं खुद तुमने क्या किया नहीं सोचा कभी। ये बड़ी अजीब बात है संवेदना का मर जाना है जो कुछ लोग किसी को कोरोना होने को भी उपहास और मनोरंजन की बात समझते हैं। माना टीवी चैनल मीडिया पागल है पैसे टीआरपी और विज्ञापन की कमाई ने अंधा किया हुआ है उनको समाज दिखाई नहीं देता बस वही लोग नज़र आते हैं जो इनकी झोली भरते हैं। ये आधुनिक वैश्याएं हैं इनको सच का झंडाबरदार मत समझो ये करते हैं झूठ का गुणगान तो क्यों देखते हो इनको छोड़ दो पागल को समझाया नहीं जाता पागल सभी को पागल बताता है। लेकिन दर्द तकलीफ परेशानी किसी की भी हो इंसानियत का अर्थ है उस से संवेदना होना जिनको किसी नायक को कोरोना होना चुटकुले का विषय लगता है कभी भगवान न करे उनके किसी अपने करीबी को हो तो क्या होगा। नायक है या कोई भी आखिर इंसान तो पहले है और आपने अपनी इंसानियत को क्यों छोड़ दिया। हम हर किसी की सलामती की दुआ मांगते हैं तभी भले लोग हैं अन्यथा बेदर्द लोग हैं। 

   यही कुछ दिन पहले किसी अभिनेता के ख़ुदकुशी करने पर हुआ। ख़ुदकुशी करना दुःख दर्द चिंता की बात है मगर जीने के लिए साहस होना चाहिए वर्ना लोग कब किसी को चैन से जीने देते हैं। किसी पर आपने इल्ज़ाम धर दिया ख़ुदकुशी को विवश किया था कभी सोचा मुमकिन है खुद आपने जाने अनजाने कब किसी को इस सीमा तक आहत किया हो कि उसका जीना दूभर हो जाये। क्या कभी नहीं किया आपने , सच तो ये है आपने सभी ने अपने ही लोगों को परेशानी में अकेला छोड़ना ही नहीं उनको ताने मरना अपमानित करना जैसे गुनाह भी किये हैं। ये समाज बड़ा बेरहम बेदर्द है जो अपने दर्द को ही जानता है किसी और का दर्द दर्द नहीं लगता है , कभी कहा होगा फालतू नाटक करते हैं अब ये रोकर दिखा रहा है खुद रुलाया है नहीं सोचा कभी। 

     सोशल मीडिया फेसबुक व्हाट्सएप्प ने आपको अवसर दे दिया लिखने जो चाहे कहने का मगर आपने उसको सामाजिक सदभावना बढ़ाने दोस्ती करने आपस में विचार विमर्श करने के लिए सार्थक उपयोग नहीं किया। आपने अपनी भड़ास अपनी नफरत अपने भीतर छुपी किसी को नीचा दिखाकर खुश होने की गंदी सोच और मानसिकता की खातिर इस्तेमाल किया है। कितने लोगों ने लिखा वो अपराधी था उसको क़त्ल किया गया तो ठीक हुआ मगर अपराधी और सभ्य समाज एक जैसे नहीं हो सकते हैं अपराधी अपराधी हैं क्योंकि कानून को नहीं मानते लेकिन पुलिस और समाज अपराधी नहीं बन सकता उसको नियम कानून और न्यायपालिका और देश के संविधान को सर्वोच्च समझना चाहिए। किसी को भी अपराध करने का अधिकार नहीं हो सकता है। आज गुनहगार को बिना अदालत के निर्णय के सज़ा दी गई कल आपको कोई मुजरिम बताकर सज़ा दे तो क्या होगा क्या आपको न्याय अदालत और अपना पक्ष रखने का हक नहीं होना चाहिए। सबसे बड़ी बात अगर देश की पुलिस ही कानून का पालन नहीं करती और बदले की भावना से क़त्ल करती है तब कानून न्याय व्यवस्था है कहां। ये वही पुलिस है जो खुद अपराधी को पालती है उसको बढ़ावा देती है जब खुद पुलिस पर अपराधी भारी पड़ा तब होश आया पहले क्या किया था और पुलिस करती क्या है नेताओं के तलवे चाटती है देखते हैं उनको नेताओं के जूते साफ करते हुए। अपनी गरिमा खुद पुलिस ने ख़ाक में मिलाई है पुलिस सुरक्षा बल किसी नेता अधिकारी की नहीं देश की सुरक्षा की खातिर हैं उनकी आस्था संविधान और देश के कानून में होनी चाहिए किसी व्यक्ति या सरकार में नहीं। 

   आपको आपत्काल याद है मगर क्या लोकनायक जयप्रकाश नारायण की कही बात याद है। 25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में यही तो कहा था उन्होंने कि पुलिस या सुरक्षा बल को किसी नागरिक पर लाठी गोली चलानी नहीं चाहिए जब लोग शांति पूर्वक अपने अधिकार के लिए धरना प्रदर्शन कर रहे हों। आपको जनता की सुरक्षा करनी है दमन नहीं करना है , दमनकारी सरकार या कोई भी विभाग देश के संविधान और कानून के खिलाफ है। आपको किधर खड़े होना है ये आपको विचार करना है। अपने को आईने के सामने खड़े कर फिर निर्णय करो सही गलत का। 
 

 

कोई टिप्पणी नहीं: