जनवरी 07, 2019

ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं ( फ़लसफ़े की बात ) डॉ लोक सेतिया

  ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं ( फ़लसफ़े की बात ) डॉ लोक सेतिया 

    कितना अरसा लग गया अब वास्तव में समझ आने लगा है जीना क्या है। अभी तलक जीते रहे जीना आया नहीं था अब शायद जीवन का अर्थ समझ कर जीने का जतन करना है। हम आप अधिकतर क्या सोचते हैं , यही कि तमाम सुख सुविधा धन दौलत आराम हो नाम शोहरत और जो भी ख्वाब देखते हैं सच हो जाएं। अधिकतर हम जो हैं उस में खुश नहीं होते हैं और समझते हैं कुछ लोगों को देखकर कि काश हम भी उनकी तरह से जीते। पैसे वाले लोग किसी भी क्षेत्र में बेहद सफल कहलाने वाले लोग , कलाकार खिलाड़ी अभिनेता राजनेता या बड़े बड़े सत्ता के पद पर आसीन लोग। लेकिन मुमकिन है वो लोग ये सब हासिल कर भी जीवन की वास्तविक ख़ुशी से वंचित हों , शायद ऐसा ही है क्योंकि इतना कुछ पाकर भी उनकी चाहत कभी खत्म होती नहीं है। और जो बात हम नहीं जानते और उनको भी शायद भूल जाती है वो है जीने की संवेदना एक एहसास ज़िंदा होने का खत्म हो चुका होता है इस सब को हासिल करने की दौड़ में। कुदरत ने जीवन जिस जिस को दिया इंसान को सबसे अधिक संवेदना दी और पेड़ पौधे पशु पक्षी सभी में कोई न कोई पहचान जीने की दी है। कोई फूल अगर रंग खुशबू और कोमलता खोकर पत्थर जैसा बेजान बन जाये जैसे बाज़ार के कागज़ के फूल या प्लास्टिक के फूल होते हैं तो क्या उसको ज़िंदा समझ सकते हैं। कुछ इसी तरह से जो लोग किसी भी तरह से ऊंचाई पर सफलता की पहुंच जाते हैं मालूम नहीं कितना कुछ वास्तविक खो चुके होते हैं। कभी ध्यान से देखना अधिकांश ऐसे लोग संवेदना रहित नज़र आते हैं। कारण उनका ये सब पाने को उचित अनुचित हर तरह से ढंग और रास्ते अपनाना है। अगर कोई अपनी इंसान होने की पहचान इंसानियत को ही खो देता है तो उसको ज़िंदा होकर भी जीना आया नहीं और आदमी की जगह इक मशीन बन गया होता है। सही राह से मानवता की राह पर चलकर सफलता पाना बेहद कठिन होता है मगर आसान रास्ते से ऊंचाई हासिल करना इक धोखा खुद अपने आप के साथ भी है। 
 
          ऐसा कदापि नहीं है कि मैं आपको कोई तथाकथित धार्मिक उपदेश या ईश्वर के डर और स्वर्ग नर्क की पाप पुण्य की और भाग्य की बात करूंगा। धर्म के नाम पर बहुत कुछ किसी ख़ास वर्ग की भलाई को ध्यान में रखकर शामिल किया गया है और समाज के बहुत नियम भी वास्तव में तार्किक आधार पर उचित आदर्श और नैतिकता की भावना को दर्शाते नहीं हैं और पुरुष नारी या अन्य तरह से भेद भाव की बात करते हैं। ईश्वर है या नहीं इसकी चिंता व्यर्थ है और उसकी खोज करने को पहाड़ या वन में जाने की आवश्यकता नहीं है। हम अगर अपने विवेक की अंतरात्मा की बात समझते हैं तो और किसी की ज़रूरत नहीं है मगर ये खेद की बात है कि हम रटवाई गई बातों को बिना चिंतन किये बगैर समझे ही यकीन करने के आदी बन जाते हैं और उस पर सवाल करना तो दूर की बात विचार तक मन से निकाल देते हैं। आस्था के नाम पर हमारी आंखों पर ही पट्टी नहीं बंधी रहती बल्कि दिमाग भी काम नहीं करता है। दुनिया बनाने वाले ने या फिर कुदरत ने कोई भी अंतर नहीं रखा था इंसान इंसान के बीच में ये आदमी की बनाई हुई खुराफाती सोच से हुआ है। ये समझने के बाद हम विचार करें तो बिना किसी परिभाषा और किताबी ज्ञान के हम ज़िंदगी क्या है और जीना किसे कहते हैं उसको बेहतर समझ सकते हैं। 
 
                 जिनको बचपन से सभी कुछ मिलता है और कोई कठिनाई सामने नहीं आती है उनको जीने का अर्थ पता नहीं होता है। ज़िंदगी सीधी बनी बनाई डगर पर चलने का नाम नहीं है एकरसता और बोझिल होती है , असली ज़िंदगी यही है जो हर बार इक चुनौती बनकर सामने खड़ी रहती है। मुश्किलों का सामना करना ही जीने का नाम है और हर मुसीबत और परेशानी में अपनी इंसानियत पर अडिग रहना ही जीवन की सफलता है। जो अनुचित ढंग से किसी जगह पहुंच जाते हैं वो जितना मिलता है उस से अधिक हासिल करने को फिर उस से भी अधिक गलत ढंग अपना कर ऊपर चढ़ना चाहते हैं। ज़मीर को खो कर अंतरात्मा को दफ़्न कर कुछ भी हासिल करना वास्तव में नीचे गिरना है। इक आदत शिकायत की किसी को दोष देने की भी आपको खुद जो चाहते हैं हासिल नहीं करने देती है। अपनी मेहनत और काबलियत से जो पा सकते हैं वही अच्छा है और उस में ही खुश रहना उचित है लालच से जो है उसको भी खो बैठते हैं और दोष किसी और को देते हैं। अपेक्षा किसी से नहीं खुद अपने दम पर जो हासिल करना चाहते करने की कोशिश करनी ठीक है। 
 
        ख्वाहिशों की कोई सीमा नहीं है मगर मृगतृष्णा की तरह चमकती रेत के पीछे भागने से अंत प्यास से मौत ही है। हर किसी से प्यार मुहब्बत से नाता रखना उचित है लेकिन जब हम मोहमाया के जाल में अंधे होकर किसी के पाने खोने को स्वीकार नहीं कर सकते तो निराशा और दुःख अकारण होते हैं। जब हम कुछ पाकर भी और उसको खोकर भी अपना मानसिक संतुलन खोते नहीं हैं और बदले हालात को स्वीकार कर लेते हैं तभी जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। कोई हमारे बिना नहीं रह सकेगा ऐसा सोचना समझदारी नहीं है क्योंकि दुनिया सदियों से चलती रही है लोग आते रहे जाते रहे समय बदलता रहा। जब कोई अपना नहीं रहता तब भी हर कोई उसके बिना जीना सीख जाता है और अगर दुःख रहता है तो उसके होने से जो मिलता था उसके नहीं मिलने को लेकर होता है। सभी से अच्छे मधुर संबंध रखना अच्छा है और सबसे बड़ी बात है लोग आपको अच्छा और सच्चा इंसान समझें न कि मतलबी और झूठा इंसान। अपने ज़िंदगी अपनी ख़ुशी से सही ढंग से जीना सबसे बड़ी उपलब्धि है। अधिकतर हम औरों के बताये मार्ग से उनके हिसाब से जीते हैं तभी मन से हम खुश होते नहीं हैं। हम जैसे हैं अपने आप को उसी तरह से स्वीकार करना और जो भी हम हासिल करते हैं उसी से संतुष्ट रहना अच्छी बात है। निराशा को जीवन से निकाल बाहर करना ज़रूरी है जीने की शुरुआत तभी की जा सकती है। किताबी बातें मुहावरे अपनी जगह आपको शिक्षा देते हैं मगर अपनी ज़िंदगी जो अनुभव देती है कड़वे मीठे वही वास्तव में काम आते हैं। डरने की ज़रूरत नहीं कि भविष्य में क्या होगा , और कुछ भी नहीं होगा तो तजुर्बा होगा। 
 
         जीना चाहते हैं तो इक बार अपने आप को समझने का प्रयास करें अपने बारे चिंतन करें कि आप क्या हैं और आपकी आरज़ू क्या है। बात मंज़िल की की जाए तो सबको मालूम है आखिरी मंज़िल वही एक ही है मौत आनी है आएगी इक दिन ऐसी बातों से क्या घबराना। ज़िंदगी इक सफर है सुहाना। हर दिन पल भर अपने आप से बात अवश्य किया करें आपका सबसे अच्छा दोस्त खुद आपका मन है। चिंतन की बात की है क्योंकि समाधि का कोई अनुभव मुझे नहीं और मुझे उसकी आवश्यकता कभी महसूस हुई नहीं। भगवान धर्म सामाजिक आदर्श नैतिकता के मूल्य सब पर चिंतन करना मुझे अच्छा लगता है। जीना है और आज से जीने की शुरुआत करने जा रहा हूं। 

 

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