जनवरी 21, 2019

पत्थरों से मुहब्बत इंसानों से नफरत ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

   पत्थरों से मुहब्बत इंसानों से नफरत ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

         अमर होना क्या संभव है सदियों से इक कल्पना की जाती रही है कोई अमृत पीने की। कुछ लोग अपनी लाश को सुरक्षित रखवाने का उपाय कर गये अपनी सारी दौलत खर्च कर के भी। इन बातों का अर्थ है लोग मौत की वास्तविकता को स्वीकार नहीं कर सके , आज विज्ञान के युग में ऐसी सोच अज्ञानता और इक पागलपन है। पढ़ना लिखना सब कुछ नहीं है पढ़े हुए को समझना ज्ञान हासिल करना है। हम जानते हैं शिक्षा का अर्थ अज्ञान के अंधेरे से ज्ञान के उजाले की ओर जाना है। फिर जो ज़िंदा हैं उनकी चिंता छोड़ उनको अच्छा जीवन उपलब्ध करवाना छोड़ जो मर चुके उनके नाम पर धन बर्बाद करते हैं। क्या आपने विचार किया है किसी भी महान शख्सियत को उनकी याद ज़िंदा रखती है उनके किये कार्य और वास्तविक जीवन में अपनाये आचरण विचार और समाज को मिले योगदान से। कितनी सभ्यताएं कुदरत के कारण विलीन होती रही हैं और मूर्तियां क्या तस्वीर क्या बड़े बड़े महल तक ख़ाक होते गये हैं। इतिहास पढ़कर सबक ले सकते हैं इतिहास को बदलना संभव नहीं है और कोई इतिहास रचता नहीं है इतिहास खुद को बार बार दोहराता रहता है। आपको क्यों लगता है कि धर्म स्थल जाने से भगवान मिलते हैं या किसी भी धर्म के कर्मकांड से पाप से मुक्त हो जाते हैं। ज्ञान की समझ है तो धर्म की इसी बात में दोगलापन है , धर्म आपको पाप की राह से दूर रहने की राय देता है या पहले पाप अन्याय करने फिर उसकी माफी मांगने की पाप धोने की बात करता है। आपको दोहा याद है नहाये धोये क्या हुआ जो मन का मैल ना जाये , मछली हर दम जल में रहे धोये बास ना जाये। करोड़ों रूपये खर्च कर गंगा स्नान जाने से क्या अधिक पुण्य किसी बेबस की सहायता करने से नहीं मिलता। धर्म की बात करने से बेहतर है उसको समझना। जो आपको अंधविश्वास में धकेलते हैं उनको आप धर्म के नाम पर ठगी करने वाले समझ सकते हैं। हर धर्म प्यार की सदभावना की सबकी भलाई की बात करता है और अपने मन से नफरत दुश्मनी लालच स्वार्थ को मिटाने की बात करता है अगर इस पर जीवन में आचरण नहीं किया तो फिर आपका धर्म इक आडंबर ही है। पूर्वजों की जीवनी आपको अच्छी शिक्षा देती है तो उस पर अमल करना चाहिए और अगर आपको पता है किसी ने अन्याय अपराध शोषण किये तो उन पर नाज़ नहीं शर्म का भाव हो सकता है मगर इससे अधिक महत्व इस बात का है कि आप उनकी राह पर नहीं चलें। 
 
             महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू और उनसे पहले नानक कबीर जैसे साधु संत किसी भवन किसी मूर्ति से ज़िंदा नहीं हैं उनकी बात उनके विचार उनका समाज को सुधारने  को किया सार्थक कार्य का योगदान उनको मरने के बाद ज़िंदा रखे है। और बात पंचशील की हो या अहिंसा की अथवा धार्मिक चिंतन की साधु संतों की उनको आप लिख कर सुरक्षित रख सकते हैं भविष्य के लिए। लिखने वालों को अपने युग का वास्तविक सच अपने लेखन से सुरक्षित रखना चाहिए और किसी और मकसद से लिखना साहित्य और इतिहास अथवा धर्म की बात का अनादर है। किसी की प्यार की कहानी सदियों याद रहती है मगर किसी की याद में बनाई इमारत मुहब्बत की पहचान से अधिक लोगों को वास्तुकला का नमूना लगती है। इतने सालों से किसी को ताजमहल को देख कर मुहब्बत करना नहीं आया होगा , कभी सुना है ऐसा हुआ। और अगर मुहब्बत की निशानी मुहब्बत करना नहीं सिखाती तो उसको बनवाना निरर्थक ही हुआ। मगर मैं आपको ऐसी कहानियां ऐसे गीत बता सकता हूं जिनसे ऐसा हुआ। आपको इक गीत सुनवाता हूं।

             दिल को है तुमसे प्यार क्यों , ये न बता सकूंगा मैं। गायक जगमोहन।


 
                                    
   आपको कोई शक है तो इक घटना सच्ची आपको बताता हूं। गायक जगमोहन जी का ये गीत रेडियो पर सुबह शाम बजता था। एक बार जगमोहन जी किसी सभा में भाग लेने गये हुए थे और जैसे वो मंच की सीढ़ी चढ़ने लगे कोई आवाज़ सुनाई दी जगमोहन जी अपने मुझे बर्बाद कर दिया है। अपने गीत गाकर वापस जाते हुए नीचे उतरते समय फिर उसी आवाज़ में वही शब्द सुनाई दिये। जगमोहन जी से रहा नहीं गया और कहने वाले को देख कर पास बुलाया और पूछा भाई मैं नहीं जनता कौन हैं आप और कब किस तरह मैंने आपका कुछ भी बुरा किया है फिर आप क्यों ऐसी शिकायत करते हैं। उसने बताया जगमोहन जी जब मैं नवयुवक  था आपका ये गीत रेडियो पर बजता रहता था और सामने घर की खिड़की से इक लड़की झांकती रहती थी , नतीजा उसके असर से प्यार हुआ हम दोनों को और शादी कर ली थी। अब पछताता हूं तभी आपको खुद को बर्बाद करने का दोषी कहता हूं। हंस दिये जगमोहन जी भी और वो शख्स भी मगर इक सच सामने था लाजवाब गीत का असर दिल तक होता है। ऐसा ताजमहल के बारे में नहीं सुना कभी मगर इक शायर कहता है कि :-

        इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल , हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक। 

        आपने  अगर साहिर लुधियानवी जी की ये नज़्म नहीं पढ़ी तो ज़रूर पढ़ना।

       बात तो सच है मगर बात है रुसवाई की , कैसे कह दूं कि मुझे छोड़ दिया है उसने।  

       जी शायरा परवीन शाकिर जी की ग़ज़ल है। बात महात्मा गांधी जी की रुसवाई की है दक्षिण अफ्रीका के अंकरा के घाना विश्वविद्यालय से महात्मा गाँधी की पत्थर की मूर्ति वहां के लोगों के विरोध करने पर सरकार ने हटवा दी है। इस प्रतिमा का भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी जी ने 2016 में दक्षिण अफ्रीका में अपने हाथ से अनावरण किया था। वास्तविक सवाल किसी के बुत  बनवाने और किसी की विचारधारा पर चलने का है। हम विशेषकर देश की राज्यों की सरकारें विचार को नहीं बुतों की राजनीति करते हैं और सच कहा जाये तो हमारे राजनैतिक दलों में विचारशून्यता की हालत है और विवेक की बात तो कोई करता ही तब है जब सत्ता के खातिर दलबदल करनी हो तब उनका विवेक जगता है फिर से गहरी नींद सो जाने के लिए। आज बात समाधियां और बुत बनवाने की उपयोगिकता की करनी है। 
 
          जो गांधी किसी को नंगे बदन देख कर केवल एक धोती पहनते हैं जीवन भर और अंतिम व्यक्ति के आंसू पौंछने की बात करते हैं उनकी समाधि उनके बुत बनवाना क्या उन्हीं की सोच के विरोध की बात नहीं है। इक गलत परंपरा की शुरुआत से हालत ये है कि तमाम राजनेताओं के परिवार के लोगों ने बाप दादा की समाधि बनाने को देश की जनता का धन और सरकारी ज़मीन का दुरूपयोग किया है। जिस देश में करोड़ों लोग खुले आसमान के नीचे रहने को विवश हैं उस देश में कई एकड़ ज़मीन केवल किसी की समाधि बनवाने को उपयोग करना अनुचित ही नहीं अमानवीय भी है। मगर ये सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा और अब विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति बनवाने की शान समझने लगे हैं। जितना धन इतने सालों में ऐसे आडंबरों पर और अनावश्यक आयोजनों पर बर्बाद किया जाता रहा है अगर जन कल्याण पर खर्च किया जाता तो आज कोई बेघर नहीं होता। मुझे इक पंजाबी गीत याद आया है। 

          जी करदा ए इस दुनिया नू मैं हस के ठोकर मार दियां , जी करदा ए। 

          जिऊंदे जी कंडे देंदी ऐ , मोयां ते फुल चढ़ौन्दी ए ,

          मुर्दे नू पूजे एह दुनिया , जिऊंदे दी कीमत कुझ वी नहीं। जी करदा ए। 

        धर्म धर्म बहुत शोर करते हैं हम सभी लोग मगर कोई धर्म नहीं कहता कि लोग बदहाल और भूखे हों और आप बेतहाशा धन अपने दिल बहलाने को दिखावे पर खर्च करें। जो पल भर की ख़ुशी हासिल करते हैं हम पैसों को हवा में उड़ाकर किसी भी तरह से आयोजन करने पर उसका उपयोग वास्तविक धर्म दीन दुखियों की सहायता पर करने से किया जाता तो सच्ची ख़ुशी मिलती खुद को भी और किसी और को भी। मगर हमने सच्चा धर्म छोड़ दिया है और दिखावे की ख़ुशी हासिल करने को पागल बनकर अनावश्यक कार्य करते हैं। भगवान भी हमारे लिए सद्मार्ग पर अच्छे कर्म करने को नहीं केवल कहने को दिखावे को सर झुकाने पूजा अर्चना इबादत करने को है चिंतन करने को नहीं। किसी शायर का इक शेर याद आया है। 

        बाद ए फनाह फज़ूल है नामोंनिशां की फ़िक्र , जब हमीं न रहे तो रहेगा मजार क्या। 

         कल क्या होगा कोई नहीं जानता और कोई भी नहीं बता सकता फिर भी लोग जाते हैं किसी ऐसे धंधे वाले के पास खुद ही ठगे जाने के लिए। इस से अधिक अज्ञानता की बात क्या हो सकती है। धर्म की कोई किताब आपको ये सब नहीं समझाती है मगर हम उनको समझना क्या पढ़ना तक नहीं चाहते और पढ़ लिख कर भी अज्ञानता का बोझ ढोते हैं। गंधारी की कथा पढ़ी है आंखें हैं फिर भी उन पर पट्टी बांध ली है क्या उचित है , अच्छा होता अगर कोई पति अंधा है तो उसकी आंखें बनकर साथ देती पत्नी। किसी की याद बनाये रखने को हम भी गंधारी की तरह मूर्तियां इमारतें बनाते हैं उनकी विचारधारा की बात को दरकिनार कर। शायद जिनको मानते हैं उनको ही मारने को ज़िंदा विचार से पत्थर बनाने का कार्य करते हैं।

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