दिसंबर 29, 2018

नव वर्ष में नया संकल्प हो ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

      नव वर्ष में नया संकल्प हो ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

      कुदरत को देखना चाहिए मौसम बदलता है तो पहली सी बारिश नहीं होती फूल पहले से नहीं अलग होते हैं पंछी बदले लगते हैं और हमारे आस पास बहुत कुछ नया होता है पुराना नहीं रहता साल बाद। मगर हम कहने को साल बदलने का जश्न मनाते हैं लेकिन उसे भी वही पुराने तरीके से। चलो इस साल कुछ नया करने की बाद करें वर्ना लगेगा हम चलने की बात करते हैं मगर वास्तव में उसी जगह ठहरे हुए हैं। पानी भी बहता रहता है ठहर जाता है तो खराब हो जाता है समंदर का ठहरा पानी भी चाहता है बंधन से अलग होना मगर बेबस है। हम बेबस नहीं हैं फिर भी रुके हुए हैं बदलना चाहते नहीं हैं। चलो आज इस विषय पर विचार करते हैं। 
 
             समाज इस साल भी पुरानी खोखली रिवायतों का जुआ अपने कांधे पर ढोता रहेगा और भेदभाव की दीवार और भी ऊंची होती जाएगी। गरीब आज भी भूखा रहेगा और शोषण का शिकार होना इस साल भी बंद होगा नहीं। हम इस साल भी अपनी गलतियां दोहराएंगे दोबारा वही स्वार्थ वही झूठ वही दिखावे की अच्छाई आडंबर करते रहेंगे। बदलना क्या है सोचना चाहते तक नहीं है। राजनीति करने वाले अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आएंगे और सत्ता की खातिर जनता को आपस में लड़वाने में लाज नहीं खाएंगे। हम उनकी चाल को समझ कर भी चुप चाप देखते रह जाएंगे और सच कहने का साहस नहीं कर दिखाएंगे उनकी झूठी महिमा का गुणगान गाएंगे। धर्म के नाम पर दंगे कब तक यही पाप करवाएंगे अधर्म को धर्म बताएंगे। 
 
       नया साल मनाना है तो कुछ नये ढंग से शुरुआत करने की बात हो। कोई संकल्प लिया जाये जिसे साल के हर दिन याद किया जाए निभाने को न कि अगले दिन भूल जाने को। भटक गया है समाज और देश का तौर तरीका केवल अपने बारे में अपनी ज़रूरत अपना मतलब अपनी कामनाएं इसको छोड़ सबकी बात सोचना शुरू करें ताकि वास्तव में सार्थक कुछ नवीन लाने की बात हो। इक आदत बन गई है या तो किसी की गुलामी करना या किसी को गुलाम की तरह अपने अधीन रखना , ये दोनों अनुचित हैं गलत हैं। स्वार्थ के विवशता के बंधन को त्याग वास्तविक अपनेपन के नाते की बात करना अच्छा है। हर किसी को अधिक की चाहत इक रोग है समाज को रसातल को धकेलता हुआ , हम जिस विरासत की बात करते हैं वो छीनने की नहीं बांटने की बात कहती रही है। अपने अनावश्यक इच्छाओं को छोड़ अपने पास अधिक किसी ऐसे को देना जिसके पास ज़रूरत को नहीं है शायद अधिक ख़ुशी दे सकता है। समाज से लेना नहीं समाज को देना चाहेंगे तो बदले में हमें भी बहुत कुछ ऐसा मिलेगा जिसकी कोई कीमत नहीं अनमोल है। जिस वास्तविक सुःख की चाहत है जिस संतोष की बात करते हैं वो इसी में है। हर धर्म कहता है कि जिसके पास सब कुछ है फिर भी और अधिक पाने की चाहत रखता है वही दुनिया का सबसे गरीब है। गरीब वो धनवान लोग हैं जिनकी पैसे की हवस कभी मिटती नहीं है। मानवता को नहीं समझते जो लोग उनको मानव नहीं समझा जा सकता है धनपशु बनना कोई आदर की बात नहीं है। साल बाद आपकी आयु बढ़ गई मगर आप कितना आगे बढ़े इस पर विचार करना। इस नव वर्ष कोई नवीन संकल्प करना और साल बाद खुद को परखना क्या नया किया और अभी कितना और किया जाना बाकी है। ज़िंदगी जीना काफी नहीं है जीने का कोई उद्देश्य भी होना चाहिए अन्यथा इंसान और बाकी जीवों में फर्क क्या रह जाता है। आपको नव वर्ष की सार्थक मंगल कामनाएं। 

 

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