जून 10, 2018

इक्कीसवीं सदी में गुनाह है ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

   इक्कीसवीं सदी में गुनाह है ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

       ऐसा तो नहीं सोचा था पिछली सदी वालों ने कि जिस तरह वो जिए उसको जीना ही नहीं कहते। आज अच्छा है जो उस सदी के लोग इस सब को देखने से पहले चले गए दुनिया से। अन्यथा इस तरह से जीते जैसे मुजरिम हैं। ये सब नये मूल्य नये दौर के नियम बनाए किसने , हमने तो नहीं। किसी पुरानी किताब में धर्म नैतिकता की कहानियों में भी नहीं है। आम आदमी क्या महान कहलाने वाले लोग भी और अपनी अपनी रियासत के जागीर के मालिक भी ऐसे ही जिये हमेशा शान से। आज आपने डियो नहीं लगाया तो आप महफ़िल में बैठने के काबिल नहीं हैं। आपको आधुनिक ढंग से हाथ मिलाना और गले भी ऐसे लगाना जैसे इक औपचारिकता निभानी है , उस तरह से नहीं जैसे दोस्त मिलते या भाई या बहन या मां-बेटी तो लिपट जाते थे और अलग होने का नाम नहीं लेते थे। अब उस तरह से गले लगना गंवार होना है। बाज़ार वाले और कुछ बाज़ारू सामान बिकवाने वाले टीवी अख़बार में विज्ञापन में समझाते हैं ऐसे रहना चाहिए। मगर ऐसे कैसे रहें वो नहीं जानते कि जिनकी आय उनकी तरह करोड़ों में नहीं उन्हें शायद जीना ही नहीं चाहिए। उनका सुझाया साबुन उनका बताया शैम्पू और पहनावा भी उनकी बताई कंपनी का सिला हुआ। इन सब को अपने बाप दादा जो घर में मां के सिले कपड़े डालते थे और घर का घी दूध और घर पर पिसे मसाले और घर में बनाया अचार भोजन जिसको कुछ साल पहले तक समझा जाता था असली स्वाद उसी का है , आजकल उसको याद करना भी अनुचित समझते हैं। आपको बाहर किस का पिज़्ज़ा किसका डोसा किस का चाइनीज़ किस का इटेलियन स्वाद कैसा है इसकी जानकारी नहीं होना साबित करता है कि आप बेकार जीते हैं। आज भी आप नल का पानी पीते हैं बिसलरी नहीं मंगवाते न ही घर में आर ओ लगवाया है तो बड़े मुजरिम हैं आप। आपके घर का पानी भी पीना पाप है , ये धर्म की किताब में किसी और तरह से बताया जाता था या है। 
 
     आपको सादा जीवन उच्च विचार की बात को भूले से भी याद नहीं रखना चाहिए। दिखावे का शानदार रहन सहन और तुच्छ विचार हैं तो आप बड़े बड़े लोगों की सभा में बैठने के काबिल हैं , जिस में बात करते समय महिला केवल महिला है किसी की बेटी बहन मां या बीवी नहीं , उनको लेकर जो बातें घटिया मज़ाक और आचरण में निम्न स्तर का तरीका हो आप आधुनिक हैं। अपनी घर की महिलाओं को छोड़ बाकी सभी को कैसी भी निगाह से देखना और कुछ भी सोचना बोलना आपको बेहूदा आदमी नहीं कहलवाता है। आपको जीने का मज़ा लेना चाहिए और पैसा किसी भी तरह से कमाना चाहिए। आप चोरी करें डाका डालें ठगी करें धोखाधड़ी से अमीर बनें या अपना ज़मीर भी बेचते हों , धनवान हैं तो किसी की मज़ाल नहीं जो आपकी बुराई करने का साहस भी करे। आजकल दौलमंद होना सब को महान बनवाता है भले दौलत किसी भी तरह से कमाई हो। रिश्वतखोर से कभी लोग नफरत करते थे , कितने खराब लोग थे , कोई घूस लेता पकड़ा जाता तो उसको शर्मसारी होती थी और घर से निकलते घबराता था। कोई कुछ भी नहीं बोलता था मगर तब भी सब की निगाहों में उसको दिखाई देता था जैसे बोलती हों यही है वो ज़मीर बेचने वाला। आजकल अपनी खुद की बोली लगवाते हैं लोग और जिसका कोई खरीदार नहीं हो उसकी औकात दो टके की नहीं समझी जाती। जो लोग किसी भी कीमत में बिकने को राज़ी नहीं थे , जो सब ज़ुल्म सहकर भी खुद को दौलत के तराज़ू में नहीं तोलते थे और जिनको अनमोल माना जाता था , वो आदर्शवादी लोग आज होते तो गुनहगार बताये जाते। 
 
शायद समाज की तरह आने वाले समय में सरकार भी जब जन गणना में ऐसे सवाल करेगी तब अभी भी इस तरह से गुनहगार बनकर जीने वालों के लिए कड़ी सज़ा मुकर्रर करेगी। हम अब देश नहीं हैं , समाज नहीं हैं , केवल इक बाज़ार हैं , हैरानी की बात है कि सोचते हैं हमीं खरीदार हैं , जबकि वास्तव में हम इंसान नहीं हैं केवल सामान हैं।  सब पर कीमत का टैग लगा हुआ है , जो अधिकतम मूल्य है , मोलभाव करो तो सस्ता बिकने को भी कोई परेशानी नहीं है।  कुछ तो हमेशा एक पर एक मुफ्त या इसके साथ वो भी उपहार की तरह , सेल पर रहते हैं बारह महीने ही।

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