सत्ताधारी और विपक्षी दोनों समधी - समधी ( कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया
रोम जल रहा था और नीरो बंसी बजा रहा था , ये पुरानी कहावत कितनी सच है क्या पता । मगर आजकल देश की संसद में लगता है शुद्ध मनोरंजन की बातें की जा रही हैं । होता है जब हमारे पास करने को कुछ नहीं होता तब हम गप शप करते हैं टीवी देखते हैं या पूरा दिन फेसबुक व्हाट्सएप्प पर बेकार की बातों को ज़रूरी मान कर समय बिताते हैं । इक अजीब बात है समय नहीं है का बहाना बनाते हैं अक्सर जब कि समय सभी के लिए एक समान है चौबीस घंटे । समय तब नहीं बचता जब प्राण जाते हैं छूट , राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट , सुबह होते ही मंदिर से भजन कीर्तन सुनाई देता है । उठ जाग मुसाफिर भोर भई अब रैन कहां जो सोवत है , जो जागत है सो पावत है जो सोवत है सो खोवत है । तो संसद में बहस के नाम पर जनता की बदहाली की बातें नहीं आपसी छेड़-छाड़ , ताने व्यंग्य , हास-परिहास चल रहा था । ठहाके लगा रहे थे शायद जनता की समझ पर हंस रहे थे किन नेताओं को मसीहा समझ उनकी जय जयकार करती है । किसे फ़िक्र है जनता की , जो देश में होता है होने दो , पहरेदारों को सोने दो , जनता रोती है रोने दो । तब होगा बचाव का काम शुरू घर बाढ़ को और डुबोने दो । आज समझ आया पक्ष और प्रतिपक्ष कोई दुश्मन या विरोधी नहीं हैं , इनका बहुत मधुर रिश्ता है समधी - समधी वाला हास उपहास छेड़ - छाड़ वाला । बुरी नहीं लगती आपसी बात , मेरे ताया जी कहते थे समधी को तो कोमल पुष्प की तरह रखते हैं । बड़ा ही नाज़ुक रिश्ता होता है , मगर आजकल दहेज और दिखावे की चाहत ने इस नाते में खटास ही नहीं कटुता भी ला दी है । सत्ता पक्ष विपक्ष भी सत्ता के मोह में अंधे होकर संसद और लोकतंत्र की गरिमा को भूल गये हैं । अब लगता है सरकारों को फुर्सत ही फुर्सत है , सोशल मीडिया पर कितना कुछ करना ज़रूरी है वास्तविक समस्याओं पर फिर कभी सोचेंगे । सत्ता की प्रेमिका को खुश करने को किसी सीमा तक झूठ सच फरेब चालाकी यही सब करते हैं । हर दल देश की सत्ता को अपनी बहु समझता है , जिसे गरीब जनता ने उनको सौंप दिया है । किसी को भी वो अपनी बेटी लगती ही नहीं । बहु के आंसू झूठे लगते हैं , उसकी तकलीफ बहाना , पता नहीं नेताओं की अपनी बेटियां होती भी हैं कि नहीं । समधी लोग मिलते रहते हैं हर अवसर पर , मगर खुद को बेटी का पिता कोई नेता नहीं मानता , हर नेता बहु का ससुर ही समझता खुद को । अपने समधी की कमियां निकालना उसका मज़ाक बनाना असभ्यता नहीं समझा जाता , ये प्यार की लड़ाई है । इस सत्ताधारी और विपक्ष वाले नाते में दोनों तरफ से पिसती बेचारी जनता की बेटी है जिसे हर कोई बहु मानता सेवा करवाने को । बहू को घर की मालकिन कोई नहीं समझता । संसद विधानसभाएं जैसे सिनेमा हाल या पीवीआर हैं जहां राजनेता अभिनय करते हैं जनता को दिखाने को कभी झूठ मूठ बेटी के पिता बनकर तो कभी सच में बहु के ससुर का किरदार निभाते हुए । समय आ गया है अब आपको इक और कर भी चुकाना चाहिए , मनोरंज कर । बाकी जो आप देते रहते हैं सभी दल के नेताओं को वो तो आपको अपनी बेटी की ख़ुशी नहीं सुरक्षा की खातिर देना लाज़मी है । बेटी का मायके की चौखट से निकलते ही बहू बनकर सयानी बन कर दिखाना किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होता है । जनता की हालत यही है लोकतंत्र की तरह लाचार नेताओं की मनमानी का शिकार बेबस हो गई है । सरकार तमाशाओं से चलती है लोग तालियां बजाते हैं तमाशा देख कर देश की राजनीती खुद तमाशा मज़ाक बन गई है , हर गंभीर बात को उपहास बना दिया गया है ।

1 टिप्पणी:
हा हा...आपसी छेड़छाड़। ताने नोक झोंक...यही होता है। सही कहा समधी समधी
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