जनवरी 25, 2017

इक गुनाह है गरीबों से मज़ाक है ( जश्न कैसा ) डॉ लोक सेतिया

  इक गुनाह है गरीबों से मज़ाक है ( जश्न कैसा ) डॉ लोक सेतिया

   मना लो जश्न कि वतन आज़ाद है , कौन करता गरीबों से मज़ाक है , झांकियां देखना ताकतवर हैं हम , मत बताना किसी को कि भूखे हैं हम। हर साल ये बेरहमी का नज़ारा होता है , किसको मालूम गरीबी में कैसे गुज़ारा होता है। आज तक देश के रहनुमाओं से नहीं सवाल किया , अब बताओ तो क्या क्या है कमाल किया। कितना धन किया बर्बादी के सामान पर , कर सकते जंग पानी में और आसमान पर। जंग लड़नी थी भूख से गरीबी से , नहीं गिला हमको आपकी अमीरी से। चलो आज पूछते हैं उसी से जिसने बताया था सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा , आज देख लेता तो मिटा देता नहीं लिखता दुबारा। सबको याद उसका यही गीत रहा , कोई नहीं सोचता उसी ने था ये भी कहा।

                      उट्ठो मिरी दुनिया के गरीबों को जगा दो ,
                      काखे-उमरा के दरो-दीवार हिला दो।    
                
                       ( काखे-उमरा = अमीरों के महल )

                  जिस खेत से दहकां को मयस्सर नहीं रोज़ी , 
                        ( दहकां = किसान )
                  उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गन्दुम को जला दो।          
                   ( ख़ोशा-ए -गन्दुम = गेहूं की बाली )

आज तक किसी ने ये नज़्म आपको सुनाई , इसको शायर ने " फरमाने-ख़ुदा " शीर्षक दिया था। चलो आज उसी की ज़ुबानी सुनते हैं कुछ और भी जो कल भी सच था और आज भी सच है।

            सुन तो ले मिरी फरियाद , ये भी इक़बाल जी का कलाम है , ज़रा दो शेर देखते हैं :-

                    असर करे न करे सुन तो ले मिरी फरियाद ,
                   नहीं है दादा का तालिब यह बन्दा -ए -आज़ाद।    
      
                    ( वाह वाह चाहने वाला नहीं हूं मैं )
             
                       कसूरवार -ओ-गरीबउदयार हूं लेकिन ,
                     तिरा खराबा फ़रिश्ते न कर सके आबाद।

    कल जो नेता भाषण देंगे बड़ी बड़ी बातें कहेंगे देश की प्रगति की। हम कितने ताकतवर हैं , क्या क्या नहीं कर सकते अब। वही चुनाव में घोषणा कर रहे हैं मुफ्त में दाल रोटी से ज़रूरत का हर सामान तक। कैसा लोकतंत्र है कौन दाता है किसको भिखारी बना दिया है , लानत है ऐसी देश सेवा पर जो खुद ऐश आराम से राजा की तरह रहते और जनता को मालिक से गुलाम बना रहे और इसको भी उपकार समझते।  करोड़ों लोग भूख से और समस्याओं से मरते हों और आप हर दिन जश्न मनाते हैं इसको गुनाह ही समझना होगा। जाने कब इनके पापों का घड़ा फूटेगा।  क्या आप शामिल होंगे ऐसे आज़ादी के जश्न के आयोजन में , देश की बदहाली को अनदेखा कर के। सोचना ज़रूर।  


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