मार्च 09, 2016

मत कहो आकाश में कोहरा घना है ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

  मत कहो आकाश में कोहरा घना है ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

समरथ को नहीं दोष गुसाईं , पैसा हर कमी को ढक देता है , ये बात इक बार फिर से सच साबित हो गई है। हज़ार एकड़ भूमि की फसल को तहस नहस कर देना , कितने पेड़ पौधों को काट देना , नदी किनारे बालू पर निर्माण करना किसी भव्य कार्यक्रम के आयोजन के लिए। किसी नियम की चिंता नहीं , कोई औपचारकता निभाना ज़रूरी नहीं , केवल किसी एक विभाग से किसी तरह इक मंज़ूरी का कागज़ हासिल कर बाकी सभी कुछ भुला देना। आपको कौन रोक सकता था जब आपके  करोड़ों अनुयाई हैं , अरबों का कारोबार फैला हुआ है विश्व भर में , और सत्ताधारी लोग आपके समर्थक हैं। आधुनिक भगवान ऐसे ही पर्यावरण को बचाते हैं। कभी भगवान भी गलत हो सकते हैं , जो उनमें कमी बताये वो पापी है। भगवान प्रेस वार्ता करते हैं दावा करते हैं कि वो तो महान कार्य कर रहे हैं , उनका उपकार मानना चाहिए। मगर क्या करें हमें सावन के अंधों की तरह हर तरफ हरियाली दिखाई देती ही नहीं। कितनी बुरी बात है कलयुगी भगवान को अदालत में जाना पड़ा है और विभाग ने उन पर पांच करोड़ का हर्ज़ाना भरने का हुक्म सुना दिया है , साथ ही पांच लाख जुर्माना उस सरकारी विभाग को भी अदालत ने लगाया जिसने ये सब होने दिया। इक फिल्म क्या बनी ओह माय गॉड , लोग अदालत घसीट ले गए उनको भी जो गुरु ही नहीं जाने क्या क्या कहलाते हैं। मगर देख लो हर गलत काम सही हो गया पैसे से , तभी तो धनवान और ताकत वाले जो मन चाहे करते हैं। ये राशि क्या है उनके लिए , ऐसे आयोजन से उनको इससे कई गुणा फायदा होना है। साबित हो गया पैसा ही सब कुछ है , अगर पैसा नहीं होता तो शायद ये भगवान भी बेबस हो जाते जब उनका आयोजन रोक दिया जाता। जहां तक छवि खराब होने या बदनामी की बात है तो जो प्रचार इस बात से मिला वो भी कम नहीं है। लेकिन अहंकार में डूबे इस संत का कहना है कि हम जुर्माना नहीं भरेंगे चाहे जेल जाना पड़े। वास्तव में ऐसे आयोजन को रद्द किया जाना चाहिए ताकि सबको समझ आये कि कायदे क़ानून सब के लिए हैं। मगर जब देश का प्रधानमंत्री ऐसे आयोजन में शामिल होता है तब समझ आता है कि बड़े लोग वी वी आई पी लोग देश के क़ानून से ऊपर हैं !

                             इस कदर कोई बड़ा हो हमें मंज़ूर नहीं
                             कोई बन्दों में खुदा हो हमें मंज़ूर नहीं।
                             रौशनी छीन के घर घर से चिरागों की अगर
                             चांद बस्ती में उगा हो हमें मंज़ूर नहीं।
                             मुस्कुराते हुए कलियों का मसलते जाना
                             आपकी एक अदा हो हमें मंज़ूर नहीं। 

         कभी इक कथा में ज़िक्र आया था कि इक गुरु और उसके शिष्य जब धर्मराज के सामने पेश हुए तो गुरु को जितनी सज़ा अपकर्मों की मिली अनुयायियों को उससे कई गुणा दी गई , जब पूछा गया किसलिए तो उत्तर मिला कि आप सभी ने जानते समझते हुए उनका साथ दिया जबकि गुरु की शिक्षा थी झूठ का विरोध करें चाहे वो कोई भी हो। आपने गुरु की दी शिक्षा को ही भुला दिया गुरु की जय जयकार करने में। सब से विचत्र बात ये है कि इस देश में नियम क़ानून का पालन नहीं करने या अनुचित कार्य करने पर किसी को कभी नुकसान नहीं होता है। बिजली चुराने पर लगा जुर्माना जितनी राशि की बिजली चोरी की उस से तो कम ही होता है , और बदनाम भी नहीं होते ऐसा कह कर कि सभी करते हैं। क़ानून से डरना और नियमों का पालन करना कमज़ोर लोगों का काम है। बड़े बड़े लोग इनकी परवाह किये बिना आगे बढ़ते जाते हैं , हर कायदे क़ानून को पांवों तले रौंद कर। सरकारी विभाग भी क़ानून लागू करने में नहीं क़ानून तोड़ने से हर बात पर जुर्माना राशि वसूल करने में यकीन रखते हैं। फलां नियम तोड़ने पर इतना जुर्माना , बस पैसे भर कर अवैध को वैध करार करा सकते हैं। इक समझदार बता रहे हैं बड़े लोग कभी जुर्माना भरते नहीं हैं , पांच करोड़ जुर्माना वसूल हो पाये ये ज़रूरी नहीं है , उनके पास विकल्प खुला है जुर्माने के खिलाफ अपील करने का। मगर कोई विभाग उनके जुर्माना नहीं अदा करने पर सख्त कदम नहीं उठा सकता है। इन महान लोगों का आचरण जो भी सभी को मान्य होता है , लोक कल्याण जनहित जैसे शब्दों की आड़ में सभी कुछ छुप जाता है।

           सच सच सभी सच का शोर करते हैं , पूरा सच कोई बताता नहीं , कोई सुनना भी नहीं चाहता, पढ़ना भी कहां चाहते सब लोग , ऐसे में संपादक और प्रकाशक छापने से परहेज़ करें तो गलत क्या है। न जाने कब कैसे कहां किसी का अपना मतलब अपनी सोच अपनी आस्था बीच में आ जाये और विचारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी को दरकिनार कर दे। देखिये हम किसी की व्यक्तिगत आलोचना को नहीं छापते , बेशक आपकी बात कितनी खरी हो और कितनी ज़रूरी सच को सच साबित करने के लिए। तभी दुष्यंत कुमार कह गये हैं " मत कहो आकाश में कोहरा घना है , ये किसी की व्यक्तिगत आलोचना है "। ऐसी हर घटना चर्चा में रहती कुछ दिन को , फिर कोई नया किस्सा कोई फ़साना सुनाई देता है और पिछली बात खो जाती इतिहास बनकर। कोई कभी सोचेगा कि जो भी अनुचित करने लगा हो उसको नहीं करने दिया जायेगा तभी गलत होना बंद होगा , अन्यथा कभी कुछ नहीं बदलेगा और धनवान हमेशा मनमानी करते रहेंगे। काश ऐसे आयोजन को सख्ती से रोकने का साहस कोई करता ताकि औरों को ये सन्देश जाता कि कानून से ऊपर कोई भी नहीं है। ऐसे तो हर कायदे कानून को इक मज़ाक बना दिया जाता है जैसे चंद सिक्कों में बिकता है हर नियम भी। अब किस किस की बात करें , फिर अंत में दुष्यंत कुमार के शेर अर्ज़ हैं।

                         " अब किसी को भी नज़र आती नहीं दरार ,
                           घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तिहार।
                           इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके - जुर्म हैं ,
                           आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है या फरार "।

1 टिप्पणी:

Street Mail ने कहा…

Superb. Aap ka jwab nhi. Great