नवंबर 26, 2014

लोग बड़े बड़े मकसद वाले ( तरकश ) डा लोक सेतिया

   लोग बड़े बड़े मकसद वाले ( तरकश ) डा लोक सेतिया

          कलयुग की बात है , दिन में अंधेरी रात है। देखो धर्म बिकता है , इक डाल है दूजा हर पात है। देखो बने हैं महल कितने सन्यासियों के वास्ते , होती जाने कैसे उनपर धन दौलत की बरसात है। अब मोह माया छोड़ने के उपदेश देता कौन है , सब तरफ नज़र आती चोरों ही की बारात है। साधू बने अपराधी चेले बचाने को मिले , सब देख कर अंधे हुए नेता हों या अफ्सर बड़े। नतमस्तक सभी अपने अपने मतलब के लिये , किसको है परवाह जनता यहां कैसे जिये। लिखा हुआ किस ग्रंथ में संत बन संचय करो , भगवान को हो बेचते कैसे कहें उससे डरो। है खेल ये कैसा जो इंसानियत से खेलते ,सच की बातें ही काफी झूठ की वंदना करो। गली गली फिरते साधु बनकर भिखारी , और कुछ बनाकर डेरे बने हैं बड़े शिकारी। गीता को भी बेचते सन्यासी कहते ज्ञान है , जिनको बनाया शिष्य पर उनका कुछ और अरमान है। ये खेल बहुत टेड़ा है भाई तू न उलझना यहां , तूने नहीं समझा इसे तू बहुत नादान है। बात इतनी जान ले बड़े लोगों की बड़ी शान है। देश की राजनीति भी बन चुकी दुकान है , जो चीज़ बिकती नहीं उसी का ऊंचा दाम है। सब को बड़े लक्ष्य पाने हैं , बंगले सभी को बनाने हैं। जो जितना बड़ा पद पाता है वो उतना ही और ललचाता है। कभी नगर पार्षद बन कर भी खुश था अब सांसद होकर भी नहीं चैन आता है , दिल का करें क्या जो मंत्री बनने को ललचाता है। इधर नहीं मिला अगर उधर को भाग जाता है। कभी लाख का सपना देखता था अब करोड़पति है गरीब कहलाता है। क्या करे कोई सभी का लक्ष्य बढ़ता जाता है।

           सरकार भी छोटे लक्ष्य नहीं बनाती अब , रोटी कपड़ा मकान , शिक्षा रोज़गार की बात नहीं होती।  गरीबी की रेखा का रोना सरकारें आजकल नहीं रोती। स्वदेशीकरण को भूल कर विदेशी बाजार की बात होती है। सब कुछ विदेशी कंपनियों को सौंप कर सरकार खुद बस सोती है। आतंकवाद हो या साम्प्रदायिकता नेताओं को दोनों चर्चा को याद रहते हैं , जिनको बताया दुश्मन कभी उसी को मसीहा कहते हैं। नेता हों या अफ्सर बड़े विदेश सब को भाता है , सोना बिकता नहीं पीतल खरीद लाता है। काला धन हो या हो भ्र्ष्टाचार दोनों ही सत्ता दिलाते हैं , सरकार जब बन गई तब सच यही समझाते हैं। कालाधन कभी नहीं आयेगा जनता को क्यों भरमाते हैं। सब को मालूम है मिलकर सभी ही खाते हैं।

      जो भी बैठा है पद पर सब यही दोहराते हैं , अपने अपने को रेवड़ियां हरदम खिलाते हैं। लोकतंत्र के नाम पर होता वही तमाशा है , सब को अपने बेटे से दामाद से ही आशा है। देश की बात रहती नहीं याद है , देखलो कर रहे विदेश जा फरियाद है। परमाणु बंब और अंतरिक्ष में मंगल की बात करते हैं , ये नहीं आता नज़र लोग अभी भी भूखे मरते हैं। हर नई सरकार धन प्रचार पर लुटाती है , हम बड़े महान हैं वाले पुराने गीत दोहराती है। लो समाजवाद भी ले आया विदेशी बग्गी है , राजसी शान की लालसा सभी में जग्गी है। साईकिल हो हाथी हो चाहे लालटेन हो , है इरादा सब का कुछ लेन हो कुछ देन हो। देखो किसी के आज भी खोटे सिक्के चल गये , कुछ लोग बहती गंगा में हाथ धोने से ही रह गये। क्या क्या दिखायें आपको देखो जिधर यही बात है , रौशन हैं बड़े नगर और गांवों में अँधेरी रात है। भीख मिलती है उसे जिसकी बड़ी औकात है।

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