नवंबर 19, 2014

भारत का आईना ( तरकश ) डा लोक सेतिया

       भारत का आईना ( तरकश ) डा लोक सेतिया

          ये कुछ अलग है , मोदी मोदी का शोर विदेशों में खूब मचा हुआ है। एन आर आई भारतीय देश का झंडा लिये या तिरंगे के रंग में रंगे परदेस में अपने देश के प्रधानमंत्री का स्वागत कर रहे हैं जोश के साथ। टिकट खरीद कर बहुत दूर चल कर मोदी जी का भाषण सुनने आ रहे हैं। अच्छा है इक उम्मीद जागी है उन लोगों में देश में कुछ बदलाव की। मगर क्या वो सच भी होगी या जैसा कितनी बार पहले भी होता रहा है ये सब हम भूल ही जायेंगे। सवाल ये है कि क्या हम ये मान बैठे हैं कि सरकार बदलने से सब बदल जायेगा , सिर्फ मोदी नाम का मसीहा सब बदल देगा या हम खुद भी अपने को बदलेंगे। क्या ये सच नहीं है कि देश का बंटाधार होता रहा और हम हमें क्या सोच कर चुपचाप तमाशाई बने रहे। क्या अन्याय का विरोध करने कभी खुद सामने आये ? क्या भ्रष्टाचार करने वालों का विरोध करना तो क्या हम उनके सामने नतमस्तक नहीं होते रहे , और क्या फिर से वो कभी नहीं दोहरायेंगे। कहीं हम आडंबर तो नहीं रच रहे कि हम देशभक्त हैं जबकि हमको अपने अपने स्वार्थ को छोड़ बाकी कुछ भी दिखाई ही नहीं देता। क्या ये लोग जो भीड़ में शामिल हैं वो खुद भी कुछ देना चाहते हैं अपने देश को या मात्र दिखावा ही करते हैं देश प्रेम का। जानता हूं देशभक्ति की परिभाषा बदल चुकी है , देश की समस्याओं पर चिंता नहीं करते अब , उनको हल करने को प्रयास नहीं करते , ये काम सरकार का है , हमें तो क्रिकेट मैच में देशभक्ति का प्रदर्शन करना है , या किसी अन्ना किसी मोदी की जयजयकार ही करनी है। ये आसान है , वो भगत सिंह वो गांधी वाली देशभक्ति आउट ऑफ़ डेट हो चुकी है। अपने जीवन देश को अर्पित करना या लोग नंगे हैं तो खुद एक धोती पहनने की बात सोचना , है कोई ऐसी देशभक्ति वाला। ज़रा सोचना क्या मोदी कभी उन लोगों में भी भाषण देने ऐसे ही बन ठन कर जायेंगे जो देश की इक तिहाई जनता बदहाल है , जिसके पास न काम है न छत है न पैसा है न साधन हैं। पीने को पानी तक को तरसती है जो , दो वक़्त रोटी जिसको सपना लगता है। क्या मोदी जी प्राथमिकता में वो लोग कहीं हैं जो सब से निचले पायदान पर हैं। सवाल फिर वही है कब तक सरकारें जिनके पास है उनको और अधिक देने को महत्व देती रहेंगी , और जिनके पास कुछ नहीं वो हाशिये पर ही रहेंगे। उस आज़ादी उस लोकतंत्र का क्या मतलब जिसमें देश में इतनी असमानता हो। अमीरों को और अमीर बनाने से ये अंतर और बढ़ता ही जाता है , क्या किसी मोदी में है साहस कि जिनके पास अम्बार लगे हैं उनसे लेकर उनको दे सके जिनके पास कुछ भी नहीं है। ये गरीबी की रेखा क्या कभी खत्म होगी।

            कभी तो सोचना होगा कितना चाहिये धनवानों को , अंबानी को टाटा को , अमिताभ को , सचिन को , और इन नेताओं को अपने लिये। क्या अपराध नहीं है मानवता के प्रति कि कुछ लोग भूख से , बिना इलाज से मरते रहें और कुछ लोगों के पास इतना धन सड़ता रहे कि उनको खुद नहीं पता हो इसका करना क्या चाहिये। ये क्या हो रहा है धर्म के नाम पर , बड़े बड़े आश्रमों में , क्या जानते भी हैं धर्म को ? संचय करना किस धर्म में सही बताया गया है , और ये जो धन संपत्ति के अंबार जमा किये बैठे हैं ये धर्मगुरु हैं। और इनके अनुयायी क्या करते हैं अपने तथाकथित गुरु का बचाव चाहे वो अपराध ही करता रहे , देश की न्याय व्यवस्था को चुनौती देने वाले धर्म क्या अधर्म के मार्ग पर नहीं चल रहे। रावण को कंस को भगवान बनाने वालो कभी तो समझो ये क्या कर रहे हो। सब से पहले सच और झूठ की पहचान करना सीखो , तब मालूम होगा धर्म क्या है , सत्य ही धर्म है , ये सब धर्मग्रंथ समझाते हैं , प्रवचन से धर्म नहीं आयेगा न ही भाषण देने सुनने से देशभक्ति। विडंबना की बात है रास्ता दिखाने वाले खुद रास्ते से भटक गये हैं।

अंत में मेरी ग़ज़ल के कुछ शेर

रास्ता अंधे सबको दिखा रहे
वो नया कीर्तिमान हैं बना रहे।

सुन रहे बहरे बड़े ध्यान से
गीत मधुर गूंगे जब गा रहे।

उनपर है सबको ऐतबार भी
झूठ को सच जो हैं बता रहे।

हक दिलाने की बात कह कर
झोंपड़ी भी उनकी हैं हटा रहे।

दाग़ चेहरे के आते नहीं नज़र
आईना झूठा है ये बता रहे। 
 

 

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