अगस्त 03, 2014

जश्न आज़ादी का ( तरकश ) डा लोक सेतिया

         जश्न आज़ादी का ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

            नेता जी सलामी ले रहे थे। ऐसे चल रहे थे मानो कोई ठेल रहा हो। कदम थे कि उठने का नाम ही नहीं ले रहे थे। देश के विकास की तरह गति थी। सुरक्षा कर्मी उनको हिदायत दे रहा था कि लाल कालीन पर ही चलना है। नेता जी देश को सही दिशा में ले जाने और विकास करने की बात दोहरा रहे थे भाषण में। पूरा देश छुट्टी मना रहा था। हम भी टीवी पर वही तमाशा देख रहे थे। घर से बाहर निकले तो एक रिक्शा वाला नज़र आया , हमने उसको बुलाया तो वो वो हमारे पास चला आया। हमने पूछा तुम्हारा नाम क्या है। "भारत नाम है मेरा साहिब " बताया उस फटेहाल ने। नाम सुनकर अच्छा लगा , वास्तविक पहचान लगी , महान लगा। हमने उसको प्यार से कहा , भारत तुम आज़ाद हो , आज आज़ादी का दिन है आज तो छुट्टी मनाओ , आज जानवरों की तरह बोझा न ढोवो। वो कहने लगा अरे बाबू ज़रा ये तो बताओ कि हमें किस बात की आज़ादी है। अगर छुट्टी मनायेंगे तो शाम को घर का चूल्हा कैसे जलेगा , पूरा परिवार भूखा सोयेगा रात को आज के दिन।

     ये आज़ादी का जश्न मनाना तो उन लोगों का चोंचला है जिनको पेट भरने की चिंता है न रहने की कोई समस्या। वो भले कोई काम नहीं करें फिर भी ठाठ से रहते हैं। जनता के पैसे से राजसी ठाठ से रह गरीबी पर भाषण देते हैं हर बार। ये घोटाले करें , लूट मार करें , अपराधियों से गठजोड़ करें इनको आज़ादी है। ये वोट लेने के लिये हमको झूठे वादे करें , प्रलोभन दें कि अगर हमारी सरकार बनी तो क्या क्या मुफ्त में बांटेगे , कोई इनसे सवाल नहीं करता कि ये सब आपका दल देगा , आपके नेता देंगे अपने पास जमा की हुई लूट की दौलत से या जनता का सरकारी धन बर्बाद करेंगे अपनों को खुश करने को। चुनाव आयोग को क्या नज़र नहीं आता ये अनुचित ढंग से वोटर को ललचाने का तरीका। सतसठ साल में इनसे इतना भी नहीं हुआ कि देश की दो तिहाई जनता को दो वक़्त रोटी ही मिल सकती , और हर दिन देश का धन बर्बाद करते रहते हैं ऐसे ही समारोहों पर आयोजनों पर। कसके लिये है ये जश्न , क्या उनके लिये जो आज भी गरीबी की रेखा से नीचे हैं। यही पैसा उनको बुनियादी सुविधायें देने , उनकी शिक्षा , स्वस्थ्य आदि पर खर्च होता तो बेहतर था।

           हमने कहा भारत तुम कहते तो ठीक हो फिर भी तुम आज तो मिठाई खाना क्योंकि आज ही के दिन हमने विदेशी गुलामी से मुक्ति पाई थी। वो बोला क्यों उपहास की बात करते हो बाबू , रोटी खाने को पैसे नहीं हों , घर में आटा दाल चावल कुछ भी नहीं हो , बच्चे बीमार हों तब मैं सब को भुला कैसे मिठाई खा लूं। ये तो नेता लोग ही कर सकते हैं कि जनता की हालत जो भी हो इनको शाही शानो-शौकत से रहना है। हमने कहा हे मूर्ख जब ख़ुशी मनानी हो जश्न मनाना हो तब सब समस्याओं को भुला क़र्ज़ लेकर भी मिठाई खा लेते हैं। देश पर अरबों रुपये का क़र्ज़ है , लोग भूखे हैं , बेघर हैं , बेरोज़गार हैं ,उग्रवाद है , विपतियां हैं , दुर्घटनायें हैं तब भी सरकार नित नया जश्न मनाती रहती है। नई आर्थिक नीति लागू है जिसमें इंसान इंसान नहीं हैं उपभोक्ता है , कम्पनियों से लेकर सरकारों तक के लिये। तुम भी अपना ढंग बदल लो और नये ज़माने के साथ कदम से कदम मिला कर चलो। रिक्शा वाला हमें वहां ले आया था जहां सरकारी समारोह चल रहा था।

                                       धूप में , गर्मी में स्कूली छात्र छात्रायें कर्यक्रम की शोभा बढ़ा रहे थे , मनोरंजक प्रस्तुति देकर। नेता अफ्सर , खास लोग ताली बजा रहे थे , शामियाने में छांव में बैठ कर आनंद लेते हुए , शीतल पेय का पान करते हुए। मगर जो बच्चे घंटों से धूप में , गर्मी में प्यास से व्याकुल थे उनको हिलने तक की आज़ादी नहीं थी। ऐसे में इक बच्ची बेहोश होकर गिर गई थी , उसको छाया में ले जाया गया और पानी पिला होश में लाया गया। अध्यापक उसको ऐसे देख रहा था मानो उसने कोई अपराध किया हो। उसको घर वापस जाने को कह दिया गया , उसको आज़ादी का सबक याद करवाना था , उसको आज़ादी तो नहीं थी। अब चौदह नवंबर को उसकी बात होगी , फिर किसी दिन मानव अधिकारों की भी बात होगी , आज उस सब का कोई मतलब नहीं था। परेड के बाद रेवड़ियों की तरह ईनाम - पुरुस्कार वितरित किये गये , तालियां बजाई गईं , जन-गण-मन गीत गाया गया।

                                    कुछ मज़दूर जो कई दिन से समारोह की तैयारी में दिहाड़ी पर लगे हुए थे , समारोह की समाप्ति पर फिर सब ठीक पहले सा करने के काम पर लग गये। उनको कई दिन की बकाया मज़दूरी मिलने की उम्मीद थी , मगर उनको बताया गया कि आज छुट्टी का दिन है उनका पैसा आज नहीं दिया जा सकता। वो आज भी प्रशासन के सामने हाथ जोड़े खड़े थे , अपने हक की भीख मांगते। उनकी गुलामी का अंत अभी भी नहीं हुआ है , साहूकार , मिल मालिक , ज़मीदार सब आज भी उसको बंधक बनाये हुए हैं। उधर सरकारी बाबू अधिकारी को बता रहा है कि कितना पैसा खर्च हुआ और कितना बचा लिया है मिल बांट कर खाने को। सब  कर्मचारी - अधिकारी अपना हिस्सा लेकर जा रहे हैं ताकि अपने परिवार के साथ आज़ादी का जश्न मना सकें , फिर जाने कब ऐसा अवसर मिलेगा छुट्टी मनाने का। बाहर सड़क पर  पुलिस वाले लोगों को रोके खड़े हैं , मंत्री जी का काफिला जो गुज़रना है। कोई भूले से उधर से जाने की कोशिश करे तो डंडा चलने को तैयार है। मंत्री जी की सुरक्षा भारी है आम जनता की आज़ादी पर।

( ये मन घड़ंत नहीं है , ऐसा देखा है खुद अपनी नज़र से। शायद हर जगह हर साल दोहराया भी जाता है )

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