कौन बनेगा करोड़पति में पूछे जाने चाहिएं ये सवाल ( तरकश )
डा लोक सेतिया
" बिका ज़मीर कितने में हिसाब क्यों नहीं देते ,
सवाल पूछने वाले जवाब क्यों नहीं देते। "
मेरी ग़ज़ल का मतला है। अब क्या बतायें कि किन लोगों के बारे सोच कर लिखा था। सब जानते हैं अब सब से अधिक सवाल कौन पूछते हैं। हर किसी से पूछते हैं कटघरे में खड़ा करके। मगर सब को आईना दिखलाने वाले खुद को नहीं देखते कभी। कभी माना जाता था कि जो बिक गया वो खरीदार नहीं हो सकता , मगर अब वही खरीदार हैं जो खुद बिक चुके हैं। इधर फिर से कौन बनेगा करोड़पति का खेल शुरू हो चुका है जिसमें सदी का महानायक और मीडिया द्वारा घोषित भगवान चौदह प्रश्न पूछ कर आपको सात करोड़ जीतने का अवसर देता है। मगर कभी किसी ने उनसे नहीं पूछा कि आप कैसे धनवान बने हैं। ये तथाकथित भगवान इतना भी नहीं जनता कि वो खुद क्या है , अभिनेता है या झूठे विज्ञापन करने वाला इक चालाक कारोबारी है जिसके लिये पैसा ही खुदा है। या फिर वो छलिया है जो अपनी मधुर वाणी से ठगता है। या जैसा उसने लोनावाला में बीस एकड़ भूमि खरीदने के लिये शपथपत्र दिया था कि वो इक किसान है। और उसको साबित करने के लिये किसी ज़माने में मित्र रहे नेता के सहयोग से उत्तर प्रदेश में जालसाज़ी कर के प्रमाण एकत्र किये थे। मगर इस महानायक कहलाने वाले का एक चेहरा और भी है , कभी ये लिखता है अपने ब्लॉग पर कि उसकी ईश्वर से ईमेल पर बात होती है। जनाब अगर थोड़ी सी मेहरबानी कर सब को भगवान का ईमेल ही दे दें तो सब लोग अपनी समस्या सीधे ईश्वर को लिख कर भेज सकें। क्या हम उसको झूठा कह सकते हैं जिसको लोग भगवान का दर्जा देते हों। हां इस बात की हैरानी ज़रूर है कि इस कलयुगी भगवान की धन हवस बढ़ती ही जा रही है , और धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि जिसके पास सब कुछ हो फिर भी और पाने की चाह हो वो सब से दरिद्र होता है। अब ऐसा मनुष्य किसी को क्या दे सकता है। इक टीवी शो आया था जिसमें सच बोलने पर इनाम दिया जाता था , मगर वो सच बहुत कड़वा होता था। महाकरोड़पति के खेल में एक दिन इस कार्यक्रम पर ऐसे ही सवाल हों और उनका जवाब वही दे जो अब तक बाकी लोगों से सवाल पूछता है। ये सच बताया जाये कि आज तक इस खेल से कितने लोगों को कितना धन मिला है और उस से कितने गुणा इनको मिला है और कितने हज़ार गुणा चैनेल को मिला है। ये भी कि ये पैसा आया किसको उल्लू बना कर है , यूं भी उल्लू बनाने की बात का विज्ञापन करने वाले भी प्रयोजक हैं इनके खेल में। जाने कैसी राह दिखाना चाहते हैं ये लोग , क्या ऐसे ही गरीबी दूर हो सकती है सब की , बेशक इनकी होती है मगर अभी और कितना चाहिये इनको। ये अपनी तरह का ढंग है लोगों से छीनने का एस एम एस का जाल बिछा कर। अंत में किसी शायर के चंद शेर इनके नाम।" इस कदर कोई बड़ा हो हमें मंज़ूर नहीं ,
कोई बन्दों में खुदा हो हमें मंज़ूर नहीं।
रौशनी छीन के घर घर से चिरागों की अगर ,
चांद बस्ती में उगा हो हमें मंज़ूर नहीं।
मुस्कुराते हुए कलियों को मसलते जाना ,
आपकी एक अदा हो हमें मंज़ूर नहीं। "
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