काठ की हंडिया कब तक चढ़ती रहेगी ( तरकश ) डा लोक सेतिया
इक नायक है देश का दूसरा सदी का महानायक कहलाता है। नायक अच्छे दिन लाने वाला है महानायक सब को करोड़पति बनाना चाहता है। दोनों की जोड़ी खूब है जय-वीरू की जोड़ी की तरह। अब देश में सब कुछ सही हो जायेगा। नायक जो मांगता था उसको वो मिल गया है लोकसभा में पूर्ण बहुमत। महानायक के पास तो पहले से सभी कुछ है , कुछ लोगों ने उसको भगवान तक घोषित कर रखा है। नायक कभी चाय बेचता था , खुद गरीब रहा है , उसको पता है भूख-बेबसी क्या होती है। ये महानायक भी बहुत फिल्मों में गरीबों का हितेषी वाला किरदार बखूबी निभा चुका है। आनंद फिल्म में बाबू-मोशाय इक डॉक्टर है जो जानता है कि देश में गरीबी है भूख है कुपोषण है। ऐसे ही किरदार निभाते निभाते महानायक उस जगह जा पहुंचा है जहां उसको कुछ मिंट का विज्ञापन करने के लिये ही करोड़ों मिलते हैं। पहले भी कई बार वो लोगों को करोड़पति बनने का सपना बेच चुका है। वो बताता है कि एसएमएस करो अपनी तकदीर बदलने के लिये , कुछ आसान से सवालों का जवाब ही तो देना है। पिछली बार उसने दावा किया था बहुत लोगों की तकदीर बदलने का। हर सवाल के बाद पूछता था हॉट सीट पर बैठे व्यक्ति से कि ये रकम उसके लिये क्या मायने रखती है। लगता था गरीबी का उपहास उड़ा रहा हो , दिखलाता था मानो दानवीर है और भीख दे रहा है। प्रतिभागी लोगों ने उनसे कई बातें पूछी हैं केवल यही नहीं पूछा कि इस केबीसी का सच क्या है। इसने किसको कितना अमीर बनाया है और किस किस से कितना लूटा है सपनों का जाल बिछा कर। मगर क्या किया जाये इधर परोपकार ऐसे ही किया जाता है , जितना देते हैं या देने का दावा करते हैं उस से कई गुणा खुद अपनी जेब में आ जाता है। सब से बड़ा कारोबार है अब समाज सेवा भी। अगर इस बार केबीसी में कोई एपीसोड इसको लेकर हो कि अब तक वहां कितने लोगों को करोड़पति बनाया गया है , लोग कितनी राशि जीत कर ले गये हैं और उस से कितने हज़ार गुणा कौन मुनाफा कमा गया है। इक वो भी थे जो कहते थे कि " देनहार कोऊ और है देत रहत दिन रैन , लोग भरम मोपे करें याते नीचे नैन " और इक ये हैं जो लोगों से छीन कर बहुत धन बहुत चालों से , उसमें से नाम मात्र का देकर दानवीर कहलाते हैं। और वो जो अच्छे दिन लाने की बात करते थे अब राजसी जीवन जी रहे हैं , उनका पूरा ध्यान अपना वर्चस्व बनाये रखने पर है। जनता के पैसे से वो भी खूब मनमानी करने लगे हैं , ये भुला कर कि लोग किस दशा में हैं। लगता है उन्होंने ने भी देश की जनता की समस्यायें भगवान भरोसे छोड़ दी हैं , गरीबों की अब कोई बात नहीं की जाती। वही दलगत राजनीति , वही वोटों का गणित , वही अपनी सत्ता का विस्तार प्रमुख बन गये हैं। सत्ता मिलते ही चाय बेचने वाला जनता का धन उपयोग कर राजसी पूजा में शामिल होकर करोड़ रुपये की चंदन की लकड़ी दान कर आता है बिना सोचे कि उसको इस धन की रखवाली करनी है , ये उसकी विरासत नहीं है जिसको दिल खोल कर लुटा सके। ये कोई धर्म नहीं है। नायक के भाषण में और महानायक की बातों में अच्छी लगने वाली बातें क्या सच में अच्छी हैं या झूठ और छल को किसी आवरण से ढक दिया गया है। जो भी हो संसद में वही जंग जारी है , काठ की तलवारों वाली।
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