मई 04, 2014

भीख की महिमा ( तरकश ) डा लोक सेतिया

     भीख की महिमा ( तरकश ) डा लोक सेतिया

      ये बात सभी धर्म के ग्रंथ एक समान कहते हैं कि जिसके पास धन दौलत , सुख सुविधा सब कुछ है मगर उसको तब भी और अधिक पाने की लालसा रहती है वो सब से दरिद्र है। आप जिनको बहुत महान समझते हैं वे भी क्या ऐसे ही नहीं हैं। उनको अपने काम से सब मिलता है , नाम-पैसा-शोहरत , फिर भी उनकी दौलत की हवस है कि मिटती ही नहीं। विज्ञापन देने का काम करते हैं , पीतल को सोना बताते हैं , अपनी पैसे की हवस पूरी करने को। हम तब भी उनको भगवान बता रहे हैं। ईश्वर तो सब को सब कुछ देता है , कभी मांगता नहीं , उसको कुछ भी नहीं चाहिये।  इन कलयुगी भगवानों को जितना भी मिल जाये इनको थोड़ा लगता है। ये जब समाज सेवा भी किया करते हैं तो खुद अपनी जेब से कौड़ी ख़र्च नहीं किया करते , यहां भी इनके चाहने वाले उल्लू बनते हैं। उल्लू मत बनाना कह कर खुद उल्लू सीधा कर लेते हैं अपना। देश के नेता हों या प्रशासन के अधिकारी ये सारे भी इसी कतार में शामिल हैं। देश की गरीब जनता इनकी दाता है और ये लाखों करोड़ों की संपत्ति पास होने के बाद भी उसके भिखारी। ये लोग भीख भी मांग कर नहीं मिले तो छीन कर ले लिया करते हैं , इनको भीख पाकर भी देने वाले को दुआ देना नहीं आता। हर भिखारी मानता है कि भीख लेना उसके हक है , भीख लेकर ख़ाने में उनको कोई शर्म नहीं आती। वेतन जितना भी हो रिश्वत की भीख बिना उनका पेट भरता ही नहीं। ये भीख मज़बूरी में पेट की आग बुझाने को नहीं लेते , कोठी कार , फार्महाउस बनाने को लेते हैं। ये जो भीख लेते हैं उसको भीख न कह कर कुछ और नाम दे देते हैं।

                                            भीख भी हर किसी को नहीं मिला करती , उसी को मिलती है जिसे भीख मांगने का हुनर आता हो। ये गुर जिसने भी सीख लिया वो कहीं भी चला जाये अपना जुगाड़ कर ही लेता है। भीख और भ्र्ष्टाचार दोनों की समान राशि है , बताते हैं कि रिश्वत की शुरुआत ऐसे ही हुई थी। पहले पहले अफ्सर -बाबू किसी का कोई काम करने के बाद ईनाम मांगा करते थे , धीरे धीरे ये उनकी आदत बन गई और वह काम करने से पहले दाम तय करने लगे जो बाद में छीन कर लिया जाने पर भ्र्ष्टाचार कहलाने लगा। आज देश में सब से बड़ा कारोबार यही है , तमाम बड़े लोग किसी न किसी रूप में भीख पा रहे हैं।  जिनको हम समझते हैं देश के सब से अमीर लोग हैं उनको भी सरकारी सबसिडी की भीख चहिये नहीं तो वो रहीस रह नहीं सकते। जाँनिसार अख़्तर जी का इक शेर है ऐसे लोगों के नाम , "शर्म आती है कि उस शहर में हैं हम कि जहाँ , न मिले भीख तो लाखों का गुज़ारा ही न हो "। आजकल भीख मांगने वाले भी सम्मान के पात्र समझे जाते हैं , जिसे देखो वही इस धंधे में शामिल होना चाहता है। भीख नोटों की ही नहीं होती , वोटों की भी मांगी जाती है , वोट जनता का एकमात्र अधिकार है वो भी नेता खैरात में देने को कहते हैं , वोट पाने के हकदार बन कर नहीं। कई साल से देश की सरकार तक समर्थन की भीख से ही चल रही है। देश की मलिक जनता को जीने की बुनियादी सुविधाओं की भी भीख मांगनी पड़ रही है , मगर नेता-अफ्सर सभी को नहीं देते , अपनों अपनों को देना पसंद करते हैं। अफ्सर मंत्री से मलाईदार पोस्टिंग की भीख मांगता है तो मंत्री जी मुख्य मंत्री जी से विभाग की। हर राज्य का मुख्य मंत्री केंद्र की सरकार के सामने कटोरा लिये खड़ा रहता है। राजनीति और प्रशासन जिंदा ही भीख के लेन देन पर है। विश्व बैंक और आई एम एफ के सामने कितनी सरकारें भिखारी बन ख़ड़ी रहती हैं। इनको भीख किसी दूसरे नाम से मिलती है जो देखने में भीख नहीं लगती। मगर जिस तरह गिड़गिड़ा कर ये भीख मांगते हैं उस से सड़क के भिखारी तक शर्मसार हो जाएं। सच तो ये है कि सड़क वाले भिखारी भीख अधिकार से और शान से मांगते हैं , उनको पता है लोग भीख अपने स्वार्थ के लिये देते हैं , बदले में पुण्य मिलेगा ये सोच कर।

                                 बड़े बड़े शहरों में रोक लगा दी गई है सड़क पर भीख मांगने पर , जो पुलिस वाले खुद सड़क पर खड़े होकर भीख लिया करते वो आजकल जुर्माना करते हैं उन पर जो भीख दे रहा होता है।  भिखारी पर नहीं होता जुर्माना। मतलब यही है कि भीख मांगना नहीं देना अपराध है। देश की तमाम जनता इस कानून के कटघरे में खड़ी नज़र आती है , इस युग में किसी पर दया करना कोई छोटा अपराध नहीं है।