अक्तूबर 04, 2013

हुस्न वालो हुस्न की सुनो कहानी ( हास्य कविता ) डॉ लोक सेतिया

हुस्न वालो  हुस्न की सुनो कहानी ( हास्य कविता )  डॉ लोक सेतिया 

किसलिये परेशान है , पूरा किया अरमान है
जादू चले तेरे हुस्न का , पाया यही वरदान है
सब देखते हैं प्यार से , पाना सभी हैं चाहते
खुद मांगती थी यही , क्यों बन रही नादान है।

कहानी बड़ी पुरानी , सुनाती थी सबकी नानी
औरत बना खुदा से , हुई थी इक नादानी
अपनी तराशी मूरत पे , वो हो गया था आशिक
बस तभी से हर नारी , करती है सदा मनमानी।

खुदा को खुश किया था , चाहा जो वर लिया था
मेरे हुस्न पर सब फ़िदा हों , कहते दिलरुबा हों
हर बात मेरी मानें , मेरा झूठ भी सच जानें
मेरे हुस्न का जादू , क्या है न कोई पहचाने।

सब बात मान ली थी , इक बात थी बताई
सब तुझ पे आशिक हों , न खुद पे आप होना
खुद को हसीन समझा , तो उम्र भर को रोना
अपनी नज़र से बचना , इसमें तेरी भलाई।

ये बात हर नारी को , न कभी याद है आती
खुद देखती आईना , खुद से भी शर्माती
सजती और संवरती , कर कर जतन कितने
मुझसे हसीं न हो और , सोच कर ये घबराती।

सजने संवरने में वो , भूली खुदा की बात है
चार दिन की चांदनी , फिर अँधेरी रात है
उम्र छिपाती है अपनी , अपने ही आशिक से
चालीस की होने पर है , अभी तीस ये बताती।

तेरी नज़र का जादू अब , कितने दिन है बाकी
मय छोड़ दे ज़माना , ऐसे पिलाओ तुम साकी
दिल को संभालें कैसे , हम तो सिर्फ आदमी हैं
तुझ पर हुआ था आशिक , खुदा में रही कमी है।

सारी हसीनों से सब आशिक , फरियाद कर रहे
हमको बचा लो तुम ही , तुम पे ही सब मर रहे
ये सोच लो बिन हमारे , बहुत ही पछताओगी
कब तक खुद को खुद ही , देख देख दिल बहलाओगी।   

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