नकली की कीमत असली की चाहत नहीं ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
ये युग ये आधुनिक काल सब इक धोखा है छल है कुछ भी सच में असली नहीं है हम खुद असली इंसान नहीं हैं इंसान कहलाते हैं बन नहीं सकते इंसानियत झूठी है आडंबर करते हैं ज़रूरत पड़ने पर हैवानियत जाग जाती है और इंसानियत को क़त्ल कर क़ातिल हो कर भी मसीहा होने का दम भरते हैं । रिश्ते नाते खुशियां क्या दुःख-दर्द तक वास्तविक नहीं दिखावे को होते हैं । सोशल मीडिया पर सभी संदेश खोखले होते हैं जिन में भावनाएं नहीं औपचारिकताएं निभाते हैं हमदर्दी नहीं किसी के साथ न किसी से कोई वास्तविक एहसास ख़ुशी का आनंद का । मिलते नहीं मिलना ज़रूरी नहीं लगता बात तक करने की फुर्सत नहीं है हर कोई अकेला अपने आप में ग़ुम है अपने से अजनबी मगर अनजान अजनबी लोगों में अपनापन ढूंढता है । अपनी फेसबुक व्हाट्सएप्प पर लिखते हैं जो खुद भी शायद समझ नहीं पाते दुनिया को समझाते हैं और लाइक्स कमैंट्स को दौलत मनाते हैं कमाई हुई आसानी से । सोशल मीडिया से लेकर धार्मिक उपदेश तक सभी बेअसर साबित होते हैं अनुचित आचरण अनैतिक कार्य बढ़ते जाते हैं समाज नीचे गिरता जाता है । दोस्ती नकली है संख्या भर है हमेशा साथ निभाने वाला कोई नहीं मिलता है । प्यार इश्क़ मुहब्बत सब कुछ बाज़ार जैसा है कब क्या हो कोई नहीं जानता सभी ख़ुद को सच्चे आशिक़ समझते हैं और निभाने की बात पर हज़ार बहाने होते हैं । संग संग जीना मरना कोई नहीं समझता जब तक निभ सके ठीक है फिर अलग राह चुनते हैं दोनों आशिक़ मशूका ।
देश सेवा का कारोबार नकली है गरीब , साहूकार नकली है जनता की चुनी उसकी सरकार हर बार नकली है , टीवी चैनल का हर इश्तिहार नकली है । भगवान असली आजकल नहीं दिखाई देता है ईश्वर के नाम पर मंदिर मस्जिद गिरजाघर गुरूद्वारे में कोई और रहता है जो बड़े छोटे अमीर गरीब ऊंचे नीचे धनवान सबको दर्शन देता है चढ़ावा और शान ओ शौकत का सामान बनकर । मन मंदिर आत्मा और सच्चे ढंग से प्रार्थना करने की कोई शर्त नहीं है मनमर्ज़ी से अधर्म करते जाओ और तीर्थ स्थल पर करोड़ों दान दे कर धर्मात्मा कहलाओ । मौसम का मिजाज़ नकली है नकली हवाएं नकली दवाएं क्या दुआएं भी असली नहीं हैं संतों महात्माओं का आशिर्वाद नकली है आश्रमों का धर्म वाला हिसाब नकली है । कीमत ऊंची है नकली चीज़ों की असली का कोई चाहने वाला नहीं मिलता है । घर भी नकली हैं गलियां चौराहे सब नकली हैं रौनकें नकली हैं उत्स्व नकली हैं मनोरंजन असली नहीं फूहड़ता और असभ्य भाषा नग्नता को परोसना फिल्म टीवी सीरियल का गंदा कारोबार बन गया है । समाज को दिशा दिखाना नहीं भटकाना फ़ायदे का कारोबार हो गया है । उपचार करने वाला सबसे बड़ा बीमार हो गया है । दोस्त से नफरत , दुश्मन से प्यार हो गया है , झूठों का सरदार सच का झंडाबरदार हो गया है , सच असाध्य रोग का रोगी बन गया है उसका नहीं संभव उपचार हो गया है ।
भाग दौड़ नकली है चाहतें ख़्वाहिशें नकली हैं नकली शोहरत नकली ऊंचाई नकली मसीहाई है असली की बात मत पूछो रामदुहाई है । दिन - रात नकली दूल्हा बरात नकली है गठबंधन नकली है रस्में-क़स्में नकली हैं शहनाई की आवाज़ नकली है सर का हर ताज़ नकली है । नकली हंसी आंसू भी नकली संबंधों के वादे नकली हैं कौन निभाना याद रखता है । खुद हम सभी अपनी असलियत छुपाते हैं जो हैं नहीं वही होने का यकीन दुनिया को दिलाते हैं । सच से डरते हैं झूठ बोलकर इतराते हैं सच का दर्पण देखते नहीं कोई दिखा दे तो घबराते हैं । ज़िंदगी भर झूठ को सच साबित करते करते आखिर सच में मर जाते हैं मौत के बाद ज़िंदा रहने की आरज़ू में ज़िंदगी भर इक बोझ उठाते हैं खुद से नज़रें चुराते हैं । असली की बात से हम सब भागते हैं डरने लगे हैं असली चेहरे से नकाब को पहचान बना बैठे हम झूठे नकली दुनिया के बनावटी लोग ।
1 टिप्पणी:
👍👌... लेख पढ़कर ये पंक्तियां याद हो आईं@@@
जनता में कंगाली है।
कुर्सी पर हरियाली है।
सारे वादे झूठे हैं,
ये शासक भी ज़ाली है।
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