चुनाव का अधिकार सभी को है ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
अपना अध्यक्ष शहर वाले चुनेंगे , घोषणा होते ही तमाम अन्य क्षेत्रों से मांग आने लगी है उनको भी अपना अपना नुमाईंदा चुन कर सभा गठित करने का अधिकार मिलना चाहिए। सबसे मुखर आवाज़ कुत्तों की है कुत्ते - कुत्ते का अंतर भेदभाव भूलकर गली के आवारा कुत्ते रईस लोगों के नेताओं धनवान लोगों के और आधुनिक महिलाओं के पालतू कुत्ते एक साथ मिल कर अपनी सभा गठित करने को व्याकुल हैं। पुलिस और सरकारी अफ्सरों ने खबर मिलते ही अपने विशेषाधिकार वाले कुत्तों को अलग रहने की हिदायत जारी कर दी है। उनको भर पेट हड्डियां मिलती रहती हैं भौंकने की आज़ादी नहीं दी जा सकती है खाओ जितना गुर्राना मना है। लेकिन उन को शहरी कुत्तों का चुनाव करवाने का कार्यभार सौंपा जा सकता है। जिन लोगों ने कुत्ते पाले हुए हैं उनको अपने पालतू कुत्ते को चुनाव लड़ने की खातिर गले में बांधी पट्टी या रस्सी अथवा ज़ंजीर से मुक्त कर उन्हें छुट्टी देकर उनका साथ निभाना ज़रूरी होगा ऐसा नहीं करने पर उनको पशु विरोधी घोषित कर पशु पालन करने से वंचित किया जा सकता है। सभी जीव जंतु पेड़ पौधे धरती हवा में पानी में रहने वाले पंछी मछलियां कुदरत के लिए इंसान की तरह समान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं लेकिन कुत्तों की बात और है कुत्ते अब कुत्ते नहीं रह गए हैं इंसान तक कुत्ता होकर शान से रहने को तत्पर है बल्कि कितने आदमी आदमीयत को छोड़ कुत्तापन अपनाये हुए हैं। कुत्तों ने अपनी आज़ादी की समानता की मांग रखी है साथ ही जिन्होंने कुत्ते पाले हुए हैं उनको इस में सहमत होकर शामिल होने की शर्त लागू कर दी है अन्यथा उनके कुत्ते उन्हीं को काटने को विवश हो सकते हैं। कुत्तों से वफ़ादारी की चाहत रखने वालों को खुद वफ़ादारी निभानी होगी। देश की सरकार राज्य की सरकारों को अपने बनाये सभी नियम कानूनों का पूर्ण रूप से पालन करने को एक मांगपत्र भिजवा दिया गया है। जिनको मालूम नहीं उनको जानकारी देनी ज़रूरी है कि देश का संविधान गधों को तमाम अधिकार देने तक को नियम बना चुका है।
कुत्तों की निर्वाचित सभा को क्या क्या अधिकार मिलते हैं और कितना बजट मिलेगा इस पर सरकारी बड़े अधिकारी समिति बनाकर अपने कुत्तों को सलाहकार नियुक्त कर सकते हैं। सरकार तय कर चुकी है कि ये सिर्फ और सिर्फ कुत्तों की सभा का गठन और चुनाव कर नुमाईंदा चुनने की बात है बाकी जानवर को इस में शामिल नहीं किया जा सकेगा। भेड़ बकरी गाय भैंस जैसे जानवर वैसे भी केवल करोबारी मकसद के लिए होते हैं जिनको खरीदा बेचा जाता है धंधा करने को मुनाफ़ा देख मूल्य निर्धारित किया जाता है उनको वोट देने चुनाव का हक़ देने की भूल नहीं की जा सकती है। रईस धनवान लोग अपने अपने घर के गेट पर तख़्ती लगवाने की बात पर विचार करने लगे हैं । सर्वसम्मति से घोषित किया गया है कि कुत्ते किसी जाति धर्म संप्रदाय या किसी भी राजनैतिक दल से कोई संबंध नहीं रखते हैं उनका अपना अस्तित्व है जिस को कोई मिटा नहीं सकता है। मुमकिन है सरकार भी इस नई पहल का सेहरा अपने सर बांधने को क्रांतिकारी कदम घोषित कर इतिहास बदलने की बात भाषणों में ज़ोर शोर से उठाकर भविष्य को उज्जवल बनाने का दावा करे। आम आदमी शायद कुत्तों के भाग्य से ईर्ष्या करने लग जाएं।
अजब विडंबना है जब इंसान चुनाव लड़ने को अपने गले में किसी दल किसी संगठन के नाम का तमगा बैनर वाला पट्टा ढूंढ रहे हैं क्योंकि उनको किसी बैसाखी की तलाश है चुनावी जीत हासिल करने को खुद पर भरोसा नहीं तब कुत्ते अपने खुद के भरोसे इस भंवर को चुनौती देने को तैयार हैं।
1 टिप्पणी:
अच्छा लेख है व्यंग्य से भरपूर
एक टिप्पणी भेजें