मई 07, 2019

लिक्खा मिटाना और फिर लिखाना ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

  लिक्खा मिटाना और फिर लिखाना ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

    बात अपने से शुरू करते हैं क्योंकि खैरात घर से शुरू करनी होती है। हर भिखारी कटोरे में पहला सिक्का खुद अपना डालता है तब अगले घर खनखनाहट होती है। सब लिखने वाले लिखते हैं तो मुझे भी लिखना होगा कि लिखने को जाने कितनों ने लिखा मगर जैसा मैंने सोचा पहले किसी ने उस तरह नहीं सोच कर लिखा। जब जाने माने मशहूर लोग पुरानी किताबों से चुराकर कुछ अपना बनाकर लिखते हैं तो यही करते हैं। आज मैंने कबीर रहीम से लेकर ग़ालिब मीर ज़फर तक की लिखी बातें अपने ढंग से लिखनी हैं और कोई मेरा कुछ नहीं बिगड़ सकता है। 

         वो खत के पुर्ज़े उड़ा रहा था हवाओं का रुख बता रहा था। कुछ और भी हो गया नुमाया मैं अपना लिखा मिटा रहा था। सब उड़ाया हुआ है। कल कोई इतिहास समझा रहा था सबकी खिल्ली उड़ा रहा था। जाने रो रहा था या गा रहा था खुद ही ताली बजा रहा था। बुरा जो देखन मैं चला को इस तरह पढ़ रहा था पढ़वा रहा था। भला जो खोजन मैं चला भला हुआ नहीं कोय , तुम सब मुझको देख लो मुझसे भला ना कोय। रहिमन हीरा कब कहे इस तरह सुना रहा है। बड़े बढ़ाई खुद करें बोलें बड़बोले बोल , मैं हीरा इतिहास का देखो मुझको तोल। अपना इक शेर भी याद आया है लिखने में बुरा क्या है। अनमोल रखकर नाम खुद बिकने चले बाज़ार में , देखो हमारे दौर की कैसी कहावत बन गई। गोविंदा फिल्म वाला धर्म वाला नहीं दावा करने की ज़रूरत नहीं थी फिल्म ही थी , क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलता और पहला मुकदमा झूठ को सच साबित कर जीत लेता है इतिहास वहीं से लिखा जाना चाहिए। आत्मविश्वास की बात है कि किसी और के बंगले को अपना बनाकर इक अमीर वकील जिसकी शोहरत है की लड़की से शादी करने का इरादा बनाता है और नायक है तो सब मुमकिन है। आजकल यही कहते हैं सब मुमकिन है। गाली देना भी बड़े होने की निशानी है अब लगता है और अपने से पहले जो हुए थे सबको बुरा बताकर खुद को अच्छा साबित करना चाहता है। जो नहीं हैं उनकी बुराई नहीं करते की संस्कृति और परंपरा को लात मार कर सबकी कमीज़ पर छींटे डाल बताता है मेरी कमीज़ उसकी कमीज़ से सफ़ेद है ये डिटरजेंट का सवाल नहीं है इतिहास का पन्ना है लिखना है भारत रत्न नहीं जो उसको उचित लगता है वही लिखो , गाली देने वाले को नहीं उसके खानदान को खराब बताना है। अपने खानदान की बात शोले फिल्म की तरह जैसे पता चलती है बता देंगे। मगर मौसी जी कोई बुराई नहीं है मेरे दोस्त में। 

       हर लड़की उस दौर में गुज़रती है जब खुद से खूबसूरत कोई नहीं लगती है। जनाब भी उसी दशा में हैं मैं मैं मैं बस मैं मैं मैं। सबसे सुंदर सबसे अच्छा सबसे महंगा मैं हूं , ये तो सच है महंगा तो बहुत साबित हुआ है ये सभी को। कभी कभी कोई सामान इतना महंगा होता है कि लगता है कीमत जितनी है उतने काम का नहीं है। फिर भी महंगी चीज़ों की सजावट अमीरी का दिखावा करने को ज़रूरी है। मुझे कोई तीस लाख सालाना कमाने वाला समझा रहा था कि अमीर को और अमीर बनाना गरीब की भलाई है , अमीर दो चार सिक्के उछलेगा तो गरीब दौड़कर उठा सकता है। समानता की बात फज़ूल की सोच है पुरानी है। नल का नहीं नदिया का नहीं मिनरल वाटर और आरओ का पानी है। कोई ग़ज़ल सुनाओ लोग ऊबने लगे हैं। 

लिखी फिर किसी ने कहानी वही है ,
मुहब्बत की हर इक निशानी वही है।

सियासत में देखा अजब ये तमाशा ,
नया राज है और रानी वही है।

हमारे जहां में नहीं कुछ भी बदला ,
वही चोर , चोरों की नानी वही है।

जुदा हम न होंगे जुदा तुम न होना ,
हमारे दिलों ने भी ठानी वही है।

कहां छोड़ आये हो तुम ज़िंदगी को ,
बुला लो उसे ज़िंदगानी वही है।

खुदा से ही मांगो अगर मांगना है ,
भरे सब की झोली जो दानी वही है।

घटा जम के बरसी , मगर प्यास बाकी ,
बुझाता नहीं प्यास , पानी वही है।

हां हम भी अपनी कहानी लिखेंगे और जहां प्यास लिखना हो पानी लिखेंगे। आपने जितने सितम ढाये हैं उनको आपकी मेहरबानी लिखेंगे। चलो इक ग़ज़ल और भी अपनी सुनाता हूं। 

अब सुना कोई कहानी फिर उसी अंदाज़ में ,
आज कैसे कह दिया सब कुछ यहां आगाज़ में।

आप कहना चाहते कुछ और थे महफ़िल में ,पर ,
बात शायद और कुछ आई नज़र आवाज़ में।

कह रहे थे आसमां के पार सारे जाएंगे ,
रह गई फिर क्यों कमी दुनिया तेरी परवाज़ में।

दे रहे अपनी कसम रखना छुपा कर बात को ,
क्यों नहीं रखते यकीं कुछ लोग अब हमराज़ में।

लोग कोई धुन नई सुनने को आये थे यहां ,
आपने लेकिन निकाली धुन वही फिर साज़ में।

देखते हम भी रहे हैं सब अदाएं आपकी ,
पर लुटा पाये नहीं अपना सभी कुछ नाज़ में।

तुम बता दो बात "तनहा" आज दिल की खोलकर ,
मत छिपाओ बात ऐसे ज़िंदगी की राज़ में।  

बात निकलेगी तो किस तरफ जाएगी नहीं मालूम। इस देश में हर मुजरिम को भरोसा है अदालत पर। सब बरी हो जाते हैं ख़ुशी मनाते हैं। कत्ल हुआ था कातिल कोई नहीं , ये कमाल का इंसाफ है। बेगुनाही की सज़ा मिलती है गुनहगार होना कोई खराबी नहीं है। आरोप लगते रहते हैं और क्लीन चिट बंटती रहती हैं आपको भी मिल जाएगी जब ज़रूरत होगी। बात को विराम देते हैं इस बहुत पुरानी ग़ज़ल के साथ। 

बहती इंसाफ की हर ओर यहां गंगा है ,

जो नहाये न कभी इसमें वही चंगा है।

वह अगर लाठियां बरसायें तो कानून है ये ,

हाथ अगर उसका छुएं आप तो वो दंगा है।

महकमा आप कोई जा के  कभी तो देखें ,

जो भी है शख्स उस हम्माम में वो नंगा है।

ये स्याही के हैं धब्बे जो लगे उस पर ,

दामन इंसाफ का या खून से यूँ रंगा है।

आईना उनको दिखाना तो है उनकी तौहीन ,

और सच बोलें तो हो जाता वहां पंगा है।

उसमें आईन नहीं फिर भी सुरक्षित शायद ,

उस इमारत पे हमारा है वो जो झंडा है।

उसको सच बोलने की कोई सज़ा हो तजवीज़ ,

"लोक" राजा को वो कहता है निपट नंगा है।

 




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