गलत सवाल का सही जवाब ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
अभी चुनाव नतीजे सामने नहीं आये हैं रुझान देख कर पता चला है सारे बच्चे फेल होने वाले हैं। और होता भी क्या जब सवाल किया गया हो पहले मुर्गी हुई या अंडा जवाब जो भी बताओ आपको अंक ज़ीरो मिलने तय हैं। बिना अंडे मुर्गी कैसे और मुर्गी नहीं तो अंडा कहां से। देश की जनता उलझी हुई है कब से इस ऐसे सवाल में जिसका जवाब ही नहीं जवाब खुद सवाल बन जाता है। दुष्यंत कुमार फिर बीच में चले आते हैं। हमने सोचा जवाब आएगा , एक बेहूदा सवाल आया है। मगर आज आपकी चिंता का समाधान भले नहीं हो चिंताराम की चिंता का अंत हो जाएगा। अब सही वक़्त है आपको वास्तविक सवाल भी बताया जाये चाहे आप समझ सकें या बिना समझे हंसी में टाल दें , ये चुटकुलों की खराब आदत पड़ी है हर कोई सोशल मीडिया पर संजीदा विषय को भी मज़ाक बनाने लगता है। आज इस गंभीर बात को चुटकुला मत बनाना इतनी विनती करनी है मुझे आप सभी से।
राजनेता जानते हैं जनता को कभी कोई खुश नहीं कर सकता है। मगर जनता ही ने वरमाला जीत की पहनानी है इसलिए उसको इस गलतफ़हमी को विश्वास समझना ज़रूरी है कि हम उसकी ख़ुशी चाहते हैं। ठीक जैसे घर में पत्नी को भरोसा करवाना होता है उसकी ख़ुशी को पति आसमान से चांद सितारे तोड़ कर लेकर उसकी झोली में भर सकते हैं। पागल महिला इतना भी नहीं सोचती कि हैं सितारे कहां इतने आकाश पर हर किसी को अगर इक सितारा मिले। कश्तियों के लिए ये भंवर भी तो हैं क्या ज़रूरी है सबको किनारा मिले। बस यही सोचकर हम बड़े चैन से डूब जाने लगे थे , मगर रो पड़े। ग़ज़ल अच्छी लगी होगी बात भी समझ आई होगी। नेता जनता को और पति पत्नी को खुश करना चाहते नहीं कभी भी बस खुश रखना चाहते हैं इस झांसे में रखते रखते अपनी हर चाहत पूरी करते रहते हैं।
जो बात संभव ही नहीं है भगवान देवता पय्यमबर भी खुश नहीं कर सकते अपनी पत्नी को देवियों को कोई मानुष भला कैसे असंभव को संभव कर दिखायेगा। कोई अलादीन का चिराग़ नहीं मेरे पास किसी दिल ये सच बोल दिया था इक नेता ने तो लोग हंसने लगे कुर्सी से बढ़कर कोई अलादीन का चिराग नहीं होता है। बेटी को हर पिता भरोसा दिलाता है राजकुमार ढूंढ लाएगा बेटी रानी बन राज करेगी। कहां ऐसे सुनहरे ख्वाब सच हुए हैं किसी राजकुमारी बेटी के। देश की जनता के सामने हर पांच साल बाद जो सवाल रखा जाता है किसी अच्छे सच्चे नेता को चुनकर भेजने का वो सवाल ही उल्टा है जिनको चुनाव लड़ना है शरीफ लोग नहीं हुआ करते शराफत से रहना है तो राजनीति की चौखट को नहीं लांघना बज़ुर्ग समझाते थे इनका कोई भरोसा नहीं गिरगिट से जल्दी बदलते हैं रंग अपना। पत्थरों के शहर में आदमी ढूंढते फिरते हैं लोग और ज़ख़्मी होकर तीर चलाने वाले को दुआ भी देते हैं हाय री मज़बूरी।
राजनेता जानते हैं जनता को कभी कोई खुश नहीं कर सकता है। मगर जनता ही ने वरमाला जीत की पहनानी है इसलिए उसको इस गलतफ़हमी को विश्वास समझना ज़रूरी है कि हम उसकी ख़ुशी चाहते हैं। ठीक जैसे घर में पत्नी को भरोसा करवाना होता है उसकी ख़ुशी को पति आसमान से चांद सितारे तोड़ कर लेकर उसकी झोली में भर सकते हैं। पागल महिला इतना भी नहीं सोचती कि हैं सितारे कहां इतने आकाश पर हर किसी को अगर इक सितारा मिले। कश्तियों के लिए ये भंवर भी तो हैं क्या ज़रूरी है सबको किनारा मिले। बस यही सोचकर हम बड़े चैन से डूब जाने लगे थे , मगर रो पड़े। ग़ज़ल अच्छी लगी होगी बात भी समझ आई होगी। नेता जनता को और पति पत्नी को खुश करना चाहते नहीं कभी भी बस खुश रखना चाहते हैं इस झांसे में रखते रखते अपनी हर चाहत पूरी करते रहते हैं।
जो बात संभव ही नहीं है भगवान देवता पय्यमबर भी खुश नहीं कर सकते अपनी पत्नी को देवियों को कोई मानुष भला कैसे असंभव को संभव कर दिखायेगा। कोई अलादीन का चिराग़ नहीं मेरे पास किसी दिल ये सच बोल दिया था इक नेता ने तो लोग हंसने लगे कुर्सी से बढ़कर कोई अलादीन का चिराग नहीं होता है। बेटी को हर पिता भरोसा दिलाता है राजकुमार ढूंढ लाएगा बेटी रानी बन राज करेगी। कहां ऐसे सुनहरे ख्वाब सच हुए हैं किसी राजकुमारी बेटी के। देश की जनता के सामने हर पांच साल बाद जो सवाल रखा जाता है किसी अच्छे सच्चे नेता को चुनकर भेजने का वो सवाल ही उल्टा है जिनको चुनाव लड़ना है शरीफ लोग नहीं हुआ करते शराफत से रहना है तो राजनीति की चौखट को नहीं लांघना बज़ुर्ग समझाते थे इनका कोई भरोसा नहीं गिरगिट से जल्दी बदलते हैं रंग अपना। पत्थरों के शहर में आदमी ढूंढते फिरते हैं लोग और ज़ख़्मी होकर तीर चलाने वाले को दुआ भी देते हैं हाय री मज़बूरी।
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