परियों की खोज से भूतों पर शोध ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
इसे मोदीनामा नाम देना चाहता हूं। जो कहना नहीं चाहिए कहना चाहता हूं। बस इसी देश रहना चाहता हूं कुछ सितम सभी दुनिया के सहना चाहता हूं। होटों पे ऐसी बात मैं दबा के चली आई खुल जाये वही बात तो दुहाई है दुहाई। कोई नहीं जान पाया उनका मकसद क्या है उनको नया कुछ कर दिखाना था। स्वर्ग की परियों को ज़मीं पर लाना था परियां किस जहां में रहती हैं पता ठिकाना ढूंढ़ना था। घर से चले थे हम तो ख़ुशी की तलाश में ग़म राह में खड़े थे वही साथ हो लिए। बस परियां तलाश करने चले और भूत मिल गए तो पहले उन पर ही शोध करने की बात सोच ली। मन का वहम है कि हक़ीक़त है साबित करना था। देश के भूत वही थे उनसे नया कुछ हासिल होना कठिन था इसलिए पचास देशों की सैर की और हर देश की सरकार से यही सहयोग मांगा अपने अपने भूत का इक सैंपल दे दो शोध करना चाहता हूं। शोध का विषय सबको भाया मेरा जादू दुनिया भर में छाया।
वो पढ़ने वाला भी पढ़ाने वाला भी स्कूल कॉलेज भी पढ़ाई भी खुद वही। भूत भी उसकी चिकनी चुपड़ी बातों में आते गए उसके नाम के भूत लोगों के सर चढ़ जाते रहे। भूत या किसी के सर चढ़ जाता है या किसी को डराता है। बस यही काम उसको भी आता है तभी दो हिस्सों में बांटने वाला शख्स बन जाता है। बात परियों की कथा की थी भूतों की कहानी बनती गई और शीर्षक मिला डरना मना है जीने की इजाज़त नहीं है और मरना भी मना है। ये साबित किया जा चुका है भूत सच है उसका भूत जनता को भयभीत भी करता है और बचने को उसी का नाम भी जपता है। जब तक भूत भागता नहीं परियां नहीं आने वाली हैं।
कोई भूत भगाने वाला आया है उसने मंत्र समझाया है आपको उसका जाप करना है। ये नहीं सोचो पुण्य करना या पाप करना है बस किसी से करवाना नहीं अपने आप करना है। आप भी ठीक से याद करो दस दिन नियमित रात दिन इसी का जाप करो। शब्द जैसे लिखे हैं वही पढ़ने हैं ए ये का ध्यान रखना है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें