मई 12, 2019

चाय पर शोध ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

         चाय पर शोध ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

  आज रविवार का दिन है उठने की कोई जल्दी नहीं थी मगर पत्नी जी ने जगा दिया। उठो भी चाय बन गई है। कितना खूबसूरत सपना था देख रहा जगाकर तोड़ दिया। चाय पीना पसंद है लत लगी हुई है चाय ने क्या क्या नहीं करवाया है। कॉलेज में इक दोस्त को चाय की इतनी चाहत थी कि रात भर पढ़ने को नहीं चाय पीने को जागता रहता था। सिनेमा हॉल के बाहर चाय वाले की चाय की बात कुछ और थी ऐसे ही मेरे शहर में इक स्वादिष्ट चाय बनाकर पिलाने वाला इतना सफल हुआ कि शहर में भगत जी की मिठाई से अच्छी कोई मिठाई नहीं लगती है। चाय की कहानी सदियों पुरानी है विदेशी राज का चाय से रिश्ता रहा होगा हम क्या समझते मगर पिछले चुनाव में चाय पर चर्चा ने जो कर दिखाया कोई कल्पना नहीं कर सकता था। जो कहता था मुझे चौकीदार बना लो उसको खज़ाने का मालिक ही बना दिया अब मालिक की मर्ज़ी है कोई चोरी थोड़ा कहलाती है अपना समझ खूब खज़ाना उड़ाया है। चाय तुमने कितना सितम ढाया है। मुझे इक गीत याद आया है शायद मेरी शादी का ख्याल दिल में आया है इसी लिए मम्मी ने मेरी तुम्हें चाय पे बुलाया है। कुछ लोग नेताओं को चाय पर बुलाते हैं नेता जी पूरी बारात लेकर आते हैं चाय पीने पर लाखों खर्च हुए लेकिन नेताजी जीत जाने पर कीमत चुकाते हैं अपने चाहने वाले को कुछ न कुछ बनवाते हैं। 

       चाय बदनाम हो गई है शराब से बढ़कर , चाय गर्म अच्छी लगती है ठंडी चाय पीना इक सज़ा है लोग पांच साल से प्याली लिए खड़े हैं उसने चाय डाली ही नहीं। साक़िया जम के पिला से इक बार मेरी प्यास बुझा दे। औरों को पिलाते रहते हैं और खुद प्यासे रह जाते हैं ये पीने वाले क्या जाने पैमानों पे क्या गुज़री है। दीवानों से ये मत पूछो दीवानों पे क्या गुज़री है , हां उनके दिलों से ये पूछो अरमानों पे क्या गुज़री है। मैंने भी इक शेर कहा है। प्यास बुझती नहीं कभी उनकी , दर्द समझो कभी तो प्यालों का। आप पूरी ग़ज़ल ही सुन सकते हैं काम की बात है। 

हल तलाशें सभी सवालों का - लोक सेतिया "तनहा"

हल तलाशें सभी सवालों का ,

है यही रास्ता उजालों का।


तख़्त वाले ज़रा संभल जायें ,

काफिला चल पड़ा मशालों का।


फूल भेजे हैं खुद रकीबों को ,

दे दिया है जवाब चालों का।


प्यास बुझती नहीं कभी उनकी ,

दर्द समझो कभी तो प्यालों का।


ख्वाब हम देखते रहे शब भर ,

मखमली से किसी के बालों का।


बेच डालें न देश को इक दिन ,

कुछ भरोसा नहीं दलालों का।


राज़ दिल के सभी खुले "तनहा" ,

कुछ नहीं काम दिल पे तालों का।


         चाय थी इक प्याली थी जिसने दफ्तर के बाबू को खुश कर अपना काम निकलवाया था। ये राज़ किसी ने मुझे बताया था चपरासी अधिकारी से घर से ही सही करवा लाया था। सही करना हस्ताक्षर करने को कहते हैं। चाय की कीमत भले चार आने से दस रूपये हुई हो चाय फिर भी चाय रही है कोई अहंकार नहीं पालती है। तबले बजाने वाला वाह ताज कहता था चाय की मस्ती थी सबसे कहता था। चाय की दुनिया निराली है ये जो आपके सामने चाय की प्याली है आधी भरी हुई है सरकार कहती है जनता समझती है आधी खाली है। चाय पर पहरा लगा रखा है हंगामा मचा रखा है चाय की रखवाली है कोई मक्खी चाय में गिरने नहीं देनी आपको हरदम बजानी ताली है। आपको ताली बजानी है चाय किसी और को पिलानी है ये चाय बड़ी मस्तानी है। चाय वाला सुनाता नित नई कहानी है। अपने गलास भर के चाय पी नहीं किसान लोटे की बात करते हैं चाय नहीं उसकी तस्वीर भेज दी बड़े धोखे की बात करते हैं।

    चाय का रंग कितना सच्चा है चाय अपनी बेटी है कॉफी पड़ोसी का बच्चा है। मामला ये उलझा हुआ बहुत है इक जैसे हैं अंतर बहुत है कीमत महंगी है उसकी अपनी सस्ती है। ये चाय भी गरीब की बस्ती है। चाय पीते भी हैं पिलाते भी हैं चाय को लाजवाब बताते भी हैं। चाय पर तोहमत लगाई जाती है गैस बनाती है तेज़ाब बनाती है चाय इस आरोप से घबराती है आपको बिस्कुट भी साथ खिलाती है। खाओ और सबको खिलाओ यही बात सबसे अच्छी है जो अकेला खाना चाहता है मतलबी है बात पक्की है। चाय पीकर भी नींद आने लगी है बात यही सबको डराने लगी है। चाय में जाने क्या क्या कंपनी मिलाने लगी है चाय पियोगे कम बीमार पड़ोगे स्लोगन सुनाने लगी है। बचपन की बात याद आई है मुफ्त गली गली चाय पिलाई है आज देखो क्या कमाई है। चाय और पकोड़े दो साथी हैं मिल जाएं तो बात बनती है लोग कहते हैं कोई चाय वाला है उसकी पुलिस वाले से बड़ी छनती है। चाय पर शोध अभी जारी है न जाने किसकी अबके बारी है कोई पुलिस वाला कहता है उनकी चाय कड़क होती है चीनी कम होती है कड़वी लगती है। इक फौजी भी चाय पीता है उसका बड़ा सा धातु का मग उसकी पहचान है सीमा पर खुला आसमान उसका मकान है। चाय का विस्तार बहुत है आदमी लाचार बहुत है पीकर भी कोई कहता है बेकार बहुत है। और पीनी है जवाब देना है , जी नहीं जी नहीं बस इतनी नसीब में थी मेरी सरकार बहुत है। चाय तेरा भी किरदार बहुत है इस पार ही नहीं उस पार बहुत है। किया इस चाय ने लाचार बहुत है बिन पिये लगता जीना बेकार बहुत है। और मत बोलो अब बहुत हुआ जितना कहा है यार बहुत है। चाय का खुला दरबार बहुत है अपना उसका संसार बहुत है। 
 




कोई टिप्पणी नहीं: