जुलाई 30, 2017

राष्ट्रीय राजमार्ग को समझना ( हक़ीक़त कि फ़साना ) डॉ लोक सेतिया - तीर-ए-नज़र

     राष्ट्रीय राजमार्ग को समझना ( हक़ीक़त कि फ़साना ) 

                 डॉ लोक सेतिया -  तीर-ए-नज़र

      बहुत दिन बाद जाना हुआ एन सी आर , अर्थात नेशनल कैपिटल रिजन में। कभी सीधी सीधी राहें दिखाई देती थी , सड़क बीच से बंटी हुई मगर दोनों तरफ से सब साफ नज़र आता था। अब कोई चौराहा नहीं कोई लाल बत्ती नहीं बस चलते जाओ मगर देख भाल कर। कहीं से ऊपर से बनाये पुल से कहीं से नीचे से और कहीं किसी सुरंग में से निकलना होता है। इक भूल भुलैया बन गई हैं सड़कें भी। कभी कोई रास्ता सत्ताधारी दल को जाता था कोई विपक्षी दल को जाता था , कोई राह छोटे छोटे और दलों को निकलते थे। कोई दक्षिण को कोई पश्चिम को चला जाता था। इन दिनों देखा लोग घर से निलकते किसी तरफ जाने को मगर भटक कर या फिर जान बूझकर पहुंच जाते सत्ता के दरबार में। सब उधर ही जा रहे हैं जिधर की राह अपनी आंखों पर पट्टी बांध अंधें होकर समझा रहे हैं। कोई नहीं जानता देश में लोग बाढ़ में डूबे हुए हैं और नेता जी अपने स्वार्थ की नैया किनारे लगा मुस्कुरा रहे हैं। अच्छे दिन आ रहे हैं। आप अपनी सत्ता की सड़कें बिछा रहे हैं और हम आपको टोल टैक्स चुका रहे हैं। मन की बात करते हैं मगर मन में छुपे चोर की बात नहीं बताते हैं। आजकल देश के महान नेता बोते जाते हैं बबूल भविष्य में आने वालों के लिए मगर किसी और के लगाए पेड़ों से आम खा रहे हैं। रात को दिन दिन को रात बता रहे हैं , उजालों के नाम पर अंधियारे बढ़ा रहे हैं। सब सोचते हैं मंज़िल को पा रहे हैं , किस राह किस मंज़िल की बात की थी , भुला रहे हैं। इक नई कहानी हमको सुना रहे हैं , जो कल बुरे थे अच्छे आज कहला रहे हैं। किस किस को गले से लगा रहे हैं , गंगा स्नान करवा पाप धुलवा रहे हैं। गूगल मैप से लोग गाड़ी चला रहे हैं , गोल गोल घूम चकरा रहे हैं। 
 
            इक समारोह दिखाई दिया , स्वच्छता अभियान का डंका बजा रहे थे। किसी ने जाकर बताया आपकी बात कितनी झूठ है , कुछ भी स्वच्छ नहीं है यहां गंदगी हर तरफ है। उसकी बात पर झल्ला रहे हैं , सब की आंखों में धूल झोकें जा रहे हैं , बिना किये बजट को निपटा रहे हैं। और कुछ लोग विज्ञापन में स्वच्छता का सबक पढ़वा रहे हैं। सारे जहां अच्छा हिन्दुस्तां भुलाकर सभी बस इक तुम्हीं हो अच्छे का स्तुतिगान गा रहे हैं। इक बार फिर वही वापस टीवी पर आ रहे हैं , करोड़पति बनाने की बात दोहरा रहे हैं। सवाल बहुत उन्हें याद आ रहे हैं , बस थोड़े से आसान सवाल हल नहीं हो पा रहे हैं।

सवाल यही हैं :-

   अभी तक कितने करोड़पति बनाने के शो में कितनी कमाई किस किस की हुई है।
   कितने लोगों ने कितनी राशि की जेब कटवाई है। और कितनों की हुई भलाई है।

   क्या इसी को लोगों का मार्गदर्शन करना कहते हैं।
   छल कपट ठगी धोखा जुए का खेल क्या यही समझदारी सिखलाते हैं।

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    कितने अमीर लोगों को कितना धन और चाहिए , किस नेता को कितनी निरंकुश सत्ता की चाह है।
   क्या यही देश भक्ति है , इसे ही सेवा कहा जाता है।

   संविधान की मर्यादा की बात क्या है , लोकशाही क्या है , शह-मात क्या है।
   व्यक्तिवाद और इक विवेश संगठन की ही विचारधारा को लागू करने के प्रभाव क्या होंगे। 

 

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