अप्रैल 13, 2014

डर्टी पिक्चर से डर्टी मांईड तक ( हास-परिहास ) डा लोक सेतिया

  डर्टी पिक्चर से डर्टी मांईड तक ( हास-परिहास ) डा लोक सेतिया

पिछले वर्ष सब से अधिक पुरुस्कार जिस फिल्म को मिले , उसका नाम है डर्टी पिक्चर। फिल्मकारों को ये बात कभी की समझ आ चुकी है की जिस शब्द को हिंदी में कहना खराब लगता है उसे अंग्रेजी में बड़े आराम से कह सकते हैं। और अकसर वही बात लोगों को इतनी पसंद आती है कि हिट हो जाती है। अगर इस फिल्म का नाम हिंदी में होता , गंदी तस्वीर , तो अंजाम शायद कुछ दूसरा होता। वास्तव में कोई तस्वीर गंदी नहीं होती , गंदी देखने वाले की नज़र होती है , सोच ही है जो अच्छी या बुरी होती है। इसलिए जब डर्टी पिक्चर की बात की जाये तब ये समझ लिया जाये कि डर्टी पिक्चर नहीं बल्कि डर्टी माईंड लोग होते हैं। गंदी सोच वाले ही गंदी तस्वीरें देखते हैं। सबसे अधिक गंदगी आदमी के दिमाग में होती है। देखने में भोली सूरत , बातचीत में मधुरता लेकिन मन में राम बचाये क्या क्या रहता है। एक महिला मित्र ने अपने किसी पुरुष मित्र का नाम लिखा था अपनी पोस्ट पर ये बताते हुए कि जनाब का कहना है कि वे फेसबुक पर महिलाओं को तकने ही आते हैं। अब उनको ऐसा करना चाहिए था या नहीं ये वही जाने। तो बात ये है कि टीवी पर डर्टी पिक्चर का प्रसारण किया जाना था ,  कई दिन से चैनेल वाले प्रचार कर रहे थे , विज्ञापन दे रहे थे। बहुत लोग चाह कर भी सिनेमा हाल में इस फिल्म को देखने नहीं जा सके थे , उनको बेसब्री से उस दिन का इंतज़ार था। ठीक उसी दिन सरकार ने डर्टी पिक्चर को प्राईम टाईम पर दिखाने पर रोक लगा दी। अब देखने वालों को इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता था लेकिन सरकार को कौन समझाता कि उस समय दिखाने को चैनेल को कितने करोड़ के विज्ञापन मिलते हैं जबकि देर रात को बेहद कम।

                      मुझे एक बहुत पुरानी बात याद आ गई , तब समाज का सवभाव , चाल-चलन और ही होता था। उस ज़माने में धार्मिक फिल्म बेहद सफल होती थी। जाने क्या सोच कर किसी ने अपनी फिल्म का नाम रख दिया , तीन देवियां। लोग चले गये उसका पहला ही शो देखने यही मानकर कि देवी देवताओं पर बनी होगी फिल्म। नतीजा ये हुआ कि जब पता चला कि कहानी कुछ और ही है तो निराश हो लोग मध्यांतर में ही वापस चले गये थे। लोगों को मनचाही बात न दिखाई दे तो फिल फ्लॉप हो जाती है। इसलिये डर्टी पिक्चर नाम रख कर साफ सुथरी फिल्म बनाते तो वही नतीजा होना था। तभी डर्टी पिक्चर से डर्टी सीन हटाये भी नहीं जा सकते थे वर्ना डर्टी माईंड वाले निराश हो जाते और फिल्म भी फ्लॉप हो जाती। वास्तव में अगर सरकार को लोगों पर ऐतबार होता कि वो समझदार हैं डर्टी पिक्चर को नहीं देखना पसंद करेंगे तो उसको रोक नहीं लगानी पड़ती। सरकार के पास कारण भी हैं जनता पर भरोसा न करने के। जनता खुद ही डर्टी नेताओं को वोट देकर जिता देती है और उसके बाद शोर मचाती है कि संसद में दाग़ी नेता बैठे हैं। जनता के बार बार यही गलती दोहराने से ही लोकतंत्र की पावन नदी किसी गंदे नाले में बदल चुकी है। सच कहा जाये तो टीवी पर सब साफ सुथरा नहीं दिखाया जाता , बस उनको आवरण पहना देते हैं कोई चमकता हुआ। हर वस्तु के विज्ञापन में बेमतलब की नंगी तस्वीरें , अश्लीलता ही नहीं विकृत सोच की कहानियों वाले सीरियल , समाचार के नाम पर बेहूदा स्टोरी , कोई अनावश्यक बहस , टी आर पी के लिये , हर चैनेल लगता है मानसिक दिवालियापन का शिकार हो चुका है। सही गलत , उचित अनुचित की कोई चिंता नहीं , पैसा बनाना एक मात्र ध्येय बन चुका है। और ये तो युगों से माना जाता रहा है कि सोना अगर गंदगी में भी पड़ा दिखाई दे तो उसको उठा लो। बस टीवी चैनेल वाले और फिल्म वाले आजकल यही करने लगे हैं , उनको लत लग गई है गंदगी से पैसा निकाल अमीर बनने की। स्लमडॉग मिलीयेनर की गंदगी अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार दिला देती है।

                गंदगी दो प्रकार की होती है , एक जो साफ नज़र आती है कि ये गंदगी है और दूसरी वो जो देखने में गंदगी नहीं लगती मगर होती वो भी गंदगी ही है। ऐसी गंदगी अधिक बुरी है , वो विचारों को सोच को , मानसिकता को गंदा  कर रही होती है। हर दिन सुबह  उठते ही और देर रात तक तमाम चैनेल वाले लोगों को अन्धविश्वास की खाई में धकेलने का ही काम करते हैं। लोगों की धार्मिक भावनाओं को अपने कारोबार के लिये दुरूपयोग करना उचित नहीं कहा जा सकता। जिनको समाज को स्वच्छ बनाना चाहिये वही उसको प्रदूषित कर रहे विकृत विचार परोस कर। खेद की बात है कि बड़े बड़े नाम वाले अदाकार , खिलाड़ी , अपने और अधिक अमीर बनने की हवस में इस काम में शामिल हो कर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। शायद उनको तलाश रहती है कि कैसे और अधिक ये कार्य वे अंजाम दे सकें। सरकार के हर सफाई अभियान का नतीजा एक समान रहता है। गंदगी के ढेर बढ़ते ही जा रहे हैं , गंदगी बेचने का कारोबार भी करोड़ों का खेल है ये कुछ दिन पहले इक टीवी शो में भी बताया गया था। मगर तब इस सोच की विचारों की , मानसिकता की गंदगी की कोई बात नहीं की गई थी , ये उनका निजि मामला जो है। इस पर सब खामोश हैं जो रात दिन जाने क्या क्या शोर मचाते रहते हैं।  

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