इक फिल्म तक से संदेश पाया था , तीन महा मूर्खों की कहानी थी थ्री इडियट्स , ज्ञान की गंगा बहती है जिधर से मिले बटोर लो । अब करोड़पति का झांसा देने वाले आगाह करते हैं पहले टटोल लो । सुबह हो गई नानू अपना अपना फेसबुक , व्हाट्सएप्प खोल लो । दोस्तो मैंने सोशल मीडिया फेसबुक को जाना परखा और आज़माया है लौट कर बुद्धू बनकर हर समझदार घर वापस आया है । उलटी पढ़ाई पढ़ने पढ़ाने में इस आधुनिक युग ने उम्र गंवाई है , बाप नहीं कोई किसी का न कोई भाई है बिना बात की यहां लड़ाई है । किसी को वास्तविकता बिल्कुल समझ नहीं आई है फिर भी हर किसी ने अध्यापक उपदेशक बनने की कसम खाई है । सबक कितने हैं कोई हिसाब नहीं कोई कलम दवात नहीं कोई किताब नहीं दोस्ती क्या दुश्मनी किसको कहते हैं समझना चाहो तो इस से बेहतर कोई किताब नहीं । झूठ धोखा है इक तिलिस्म है ग़म नहीं कोई यही इक ग़म है जो नहीं नज़र आए बस वही कम है । खुशियां हैं और बड़ा मातम है क्या कहें बस ज़ुल्म ओ सितम है लबों पर मुस्कुराहट भी आंख भी नम है । पढोगे लिखी इक नई नज़्म है :- झूठे ख़्वाब ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
जीवन भर महसूस होता रहा
अकेलापन लेकिन समझा यही
मुझे चाहते हैं सभी लोग यहां ।
हादिसे नहीं इत्तेफ़ाक़ नहीं कोई
छोड़ जाते हैं तोड़ जाते नाते सब
अचानक बदल रास्ता कब कहां ।
कौन साथ कौन बिछुड़ा खबर नहीं
भीड़ भरे बाज़ार में ढूंढें कैसे भला
धूल ही धूल कदमों के नहीं निशां ।
सबने ज़मीन से नाता तोड़ लिया
और सपनों का बनाया इक आस्मां
आंख खुली तो थे गायब दोनों जहां ।
कौन देगा सच के सच होने की गवाही
झूठ का सिक्का चलता आजकल भाई
सभी पढ़ाते हैं यही पढ़ाई बधाई भाई ।
2 टिप्पणियां:
आजकल का शिक्षा का क्या हाल है, अच्छे से समझा दिया आपने। यही है सोशल होते लोगों की दुनिया और पढाई पैटर्न। .. बहुत सही
Wah बहुत खूब
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