उलझन सुलझती नहीं उलझाने से ( भगवान से इंसान तक )
डॉ लोक सेतिया
कौन बड़ा है भगवान या मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे। हमने ईश्वर को सत्य में नहीं आडंबर में खोजा और बिना समझे बिना पाये ही पत्थर को किताब को इमारत को भगवान कहने लगे। किसी ने कहा तुमको ईश्वर से मिलवा सकता हूं और आप उसको ईश्वर से बड़ा समझने लगे और लोग भगवान को सामान बनाकर बेचने लगे। भगवान को इंसान क्या दे सकता है और भगवान को पैसा या कोई उपहार कुछ खाने को कपड़े गहने आरती पूजा ईबादत की अपने गुणगान की क्या ज़रूरत है क्या मिलता है ईश्वर को अपनी आराधना से ख़ुशी महसूस होती है नहीं उपासना करने से बुरा लगता है फिर वो भगवान कदापि नहीं हो सकता है। भगवान के इंसान के बनाये घरों में जाकर माथा टेकने उपसना आरती इबादत करने के बाद इंसान से झूठ छल कपट धोखा और स्वार्थ की खातिर तमाम अनुचित कार्य करते हैं और मानते हैं भगवान के भक्त उपासक हैं। इतना ही नहीं हम ईश्वर से हिसाब किताब रखते हैं लिया दिया बदले में क्या क्या। भगवान को बाज़ार समझ बैठे हैं।
संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहते हैं जिस में वो लोग बैठे हैं जिनको सत्ता के अधिकार और खुद अपने लिए तमाम साधन सुविधा चाहिएं जनसेवा के नाम पर चोरी ठगी लूट की जगह बना दिया। न्याय करने वाले न्याय का आदर नहीं अपने अनादर की चिंता करते हैं। न्यायालय में न्याय की हालत बदहाल है। कुछ नेताओं अधिकारी बने लोग कर्मचारी पुलिस सुरक्षा के लोग दफ़्तर में बैठ जनता को हड़काने वाले अपनी जेबें भरते लोग , कुछ धनवान बने लोगों और बाबा गुरु बनकर पैसा कमाने वाले लोगों ने इंसानियत को ताक पर रखकर कर्तव्य निभाने की जगह अनैतिक आमनवीय आचरण किया है। खुद नहीं जानते मगर आपको समझाते हैं ठग हैं साधु संत महात्मा बने हुए हैं।
स्कूल कॉलेज शिक्षक राह भटक कर शिक्षा का कारोबार कर अज्ञानता को बढ़ा रहे हैं। समाजसेवा कह कर अपने स्वार्थ सिद्ध करते हैं चालाक और मक्कार लोग और हम पापी अधर्मी अनुचित कार्य करने वालों को सर झुकाकर सलाम करते हैं और सच बोलने वालों को अपमानित करते हैं। कोरोना क्या है हम नहीं जानते उसका उपाय और रोकथाम को टीका बन गया फिर भी रोग नहीं होगा कोई नहीं बताता बस यही भगवान सरकार धर्म उपदेशक सभी हैं कहने को भरोसा किसी का नहीं ज़रूरत और वक़्त पर सब बेकार साबित हुए हैं। हमारी नासमझी और मूर्खता कि हमने ऐसे पण्डित पादरी उपदेशक कथावाचक लोगों को ईश्वर से अधिक महत्व देना शुरू कर दिया और उनको धर्म भगवान के नाम पर उचित अनुचित जो मर्ज़ी करते रत्ती भर संकोच नहीं होता है। भगवान ये समझते हैं उनका बंधक बन गया है जिसको ये जैसे मर्ज़ी उपयोग कर सकते हैं। भगवान ने सबको बनाया है बताते हैं लेकिन समझते हैं ईश्वर को उन्होंने बनाया है उसको इनका आभारी होना चाहिए।
8 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (14-04-2021) को ""नवसम्वतसर आपका, करे अमंगल दूर" (चर्चा अंक 4036) पर भी होगी।
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मित्रों! चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं भी नहीं हो रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है।
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भारतीय नववर्ष, बैसाखी और अम्बेदकर जयन्ती की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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विचारणीय आलेख।
"हमारी नासमझी और मूर्खता कि हमने ऐसे पण्डित पादरी उपदेशक कथावाचक लोगों को ईश्वर से अधिक महत्व देना शुरू कर दिया और उनको धर्म भगवान के नाम पर उचित अनुचित जो मर्ज़ी करते रत्ती भर संकोच नहीं होता है।"
बिलकुल सत्य कहा आपने सर,हमारी नासमझी ने हमारी दुर्गति की और इन धर्म के ठीकेदारों मनमानी करने की आजादी।
विचारणीय लेख,सादर नमन आपको
सुंदर प्रस्तुति
सुंदर प्रस्तुति
चिंतन परक विचारोत्तेजक लेख।
महोदय आपके कमैंट्स के लिए धन्यवाद मगर ये बात अनावश्यक लगती है कि आप मुझे अन्य ब्लॉग पर कमेंट करने को सलाह देते रहते है। अपनी सहूलियत और मर्ज़ी सभी की जैसा उचित लगे हर कोई आज़ाद है और बदले में पढ़ना कमेंट करना मेरा ये कारोबार नहीं है। जिनको अच्छा लगता है पढ़ सकते हैं सौदेबाज़ी साहित्य में कब से होने लगी। सच्ची साफ बात कहना आदत है।
Achcha lekh...Ishwar n murti n patthar n kitaab n imarat m hota h
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