अक्तूबर 16, 2018

POST : 936 हमें उस राह से बचकर गुज़रना है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

         हमें उस राह से बचकर गुज़रना है ( ग़ज़ल ) 

                         डॉ लोक सेतिया "तनहा" 

हमें उस राह से बच कर गुज़रना है
फिसल कर फिर नहीं आसां निकलना है । 

किया किसने नशे में प्यार का वादा
जिसे वादे से अपने फिर मुकरना है । 

मुहब्बत इस तरह कोई निभाता है
किसे अब साथ जीना साथ मरना है । 

तुम्हारी सादगी पर है फ़िदा कोई
तुम्हें किस के लिए सजना संवरना है ।
 
निभाना है नया किरदार कुछ ऐसे
फरिश्ता बन के सारे जुर्म करना है । 

हुई थी भूल तुम भी भूल जाना सब 
संभल जाओ नहीं फिर से फिसलना है । 

रहोगे कब तलक "तनहा" ऊंचाई पर
कभी आखिर ज़मीं पर ही उतरना है । 
 

 



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