तुम बताओ है कहीं ऐसा जहां ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
तुम बताओ है कहीं ऐसा जहां
राजनेता दर्द को समझें कहां।
जब सितारा टूट कर गिरने लगा
चुप रहे दोनों ज़मीं औ आस्मां।
लोग मानेंगे नहीं कोई कभी
एक नेता आदमी सा था यहां।
अब किसी से पूछता कोई नहीं
बस्तियों से उठ रहा कैसा धुआं।
सबको अपनी बात कहनी आ गई
बेज़ुबांनों की , नहीं कोई ज़ुबां।
कर गया कितना अंधेरा मुल्क में
वो जला करता था खुद बन कर शमां।
कौन था "तनहा" सभी को कर गया
पूछता है धूल से खुद कारवां।
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