सितंबर 29, 2018

वो करम उंगलियों पे गिनते हैं ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

    वो करम उंगलियों पे गिनते हैं ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

हक़ नहीं खैरात देने लगे ,
इक नई सौगात देने लगे।

इश्क़ करना आपको आ गया ,
अब वही जज़्बात देने लगे।

रौशनी का नाम देकर हमें ,
फिर अंधेरी रात देने लगे।

और भी ज़ालिम यहां पर हुए ,
आप सबको मात देने लगे।

बादलों को तरसती रेत को ,
धूप की बरसात देने लगे।

तोड़कर कसमें सभी प्यार की ,
एक झूठी बात देने लगे।

जानते सब लोग "तनहा" यहां ,
किलिये ये दात देने लगे। 

वो करम उंगलियों पे गिनते हैं ज़ुल्म का जिनके कुछ हिसाब नहीं। उनकी सौगात के इश्तिहार चिपके हैं दीवारों पर , अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार। किस किस से कैसे कैसे छीनकर सरकारी खज़ाना भरा और जब लोग हाहाकार मचाने लगे तो राहत की भीख भी सौगात कहकर देने लगे। देश की सरकार राज्य की सरकार अपना खज़ाना लुटवा रही है ताकि फिर से आपको लूटने का अवसर हासिल हो। हम लोग ऐसे ही हैं कोई मारता है पीटता है मगर फिर खिलौना दिलवा देता है तो उसको चूमने लगते हैं , क्या 71 साल बाद भी देश की जनता बच्चा है जो बहल जाता है। इक कहानी है हिटलर की वो सभा में लेकर इक मुर्गे को आता है और एक एक करके उसके परों को नौच डालता है और सभी पर नौच कर उसे ज़मीन पर फेंक देता है। फिर अपनी जेब से दाने निकाल उसके सामने डालने लगता है। मुर्गा दाने की चाह में हिटलर की तरफ आता जाता है और आखिर उसके कदमों के पास पांव तले पहुंच जाता है। यही डेमोक्रेसी है बतलाता है , पहले जनता से सब लेकर उसको बेबस करना उसके बाद नाम को कुछ देकर एहसान जतलाना। आज तक किसी भी नेता ने अपनी कमाई से किसी को धेला भी नहीं दिया है , ये सेवक और चौकीदार मालिक होने और दानवीर कहलाने को हमारे ही धन से इश्तिहार छपवा कर जले पर नमक छिड़कते हैं। मगर उनको ये करना नहीं पड़ता अगर इन्होंने जो करने का वादा किया था उसे किया होता। कुछ दोहे भी पढ़ कर समझते हैं।

नतमस्तक हो मांगता मालिक उस से भीख
शासक बन कर दे रहा सेवक देखो सीख।

मचा हुआ है हर तरफ लोकतंत्र का शोर
कोतवाल करबद्ध है डांट रहा अब चोर।

तड़प रहे हैं देश के जिस से सारे लोग
लगा प्रशासन को यहाँ भ्रष्टाचारी रोग।

दुहराते इतिहास की वही पुरानी भूल
खाना चाहें आम और बोते रहे बबूल।

झूठ यहाँ अनमोल है सच का ना  व्योपार
सोना बन बिकता यहाँ पीतल बीच बाज़ार।

नेता आज़माते अब गठबंधन का योग
देखो मंत्री बन गए कैसे कैसे लोग।

चमत्कार का आजकल अदभुत  है आधार
देखी हांडी काठ की चढ़ती बारम्बार।

आगे कितना बढ़ गया अब देखो इन्सान
दो पैसे में बेचता  यह अपना ईमान।   


 



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