सितंबर 25, 2018

POST : 914 पथ पर सच के चला हूं मैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

   पथ पर सच के चला हूं मैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा" 

पथ पर सच के चला हूं मैं
जैसा अच्छा - बुरा हूं मैं । 

ज़ंजीरें , पांव में बांधे 
हर दम चलता रहा हूं मैं ।

कोई मीठी सुना लोरी
रातों रातों जगा हूं मैं । 

दरवाज़ा बंद था जब जब
जिसके घर भी गया हूं मैं । 

मैंने ताबीर देखी है
इन ख्वाबों से डरा हूं मैं । 

आना वापस नहीं अब तो
कह कर सबसे चला हूं मैं । 

खुद मैं हैरान हूं "तनहा"
मर कर कैसे जिया हूं मैं । 
 

 

कोई टिप्पणी नहीं: