पथ पर सच के चला हूं मैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
पथ पर सच के चला हूं मैं
जैसा अच्छा - बुरा हूं मैं।
ज़ंजीरें , पांव में बांधे
हर दम चलता रहा हूं मैं।
कोई मीठी सुना लोरी
रातों रातों जगा हूं मैं।
दरवाज़ा बंद था जब जब
जिसके घर भी गया हूं मैं।
मैंने ताबीर देखी है
इन ख्वाबों से डरा हूं मैं।
आना वापस नहीं अब तो
कह कर सबसे चला हूं मैं।
खुद मैं हैरान हूं "तनहा"
मर कर कैसे जिया हूं मैं।
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