अगस्त 13, 2015

सब लूटने - सब बेचने की आज़ादी ( विडंबना ) डॉ लोक सेतिया

    सब लूटने - सब बेचने की आज़ादी  ( विडंबना ) डॉ लोक सेतिया

      जाने क्यों मुझे लगा कि फेसबुक पर "बात महिला जगत की" पेज पर महिलाओं की बात लिखनी है तो कुछ पत्रिकाएं जो विशेषकर महिलाओं की कहलाती हैं को पढ़ना उपयोगी हो सकता है। और मैं अखबार - पत्रिकाएं बेचने वाले से ऐसी पत्रिकाएं खरीद लाया। जब पढ़ा उनको तो पता चला कि औरत को न तो खुद को कैसे ज़िंदा रखे इसकी चिंता है आज जब सुनते हैं छोटी छोटी बच्चियां तक वहशी लोगों की हवस का शिकार हो रही प्रतिदिन , न ही उसको और कोई गंभीर समस्या। पत्रिकाओं से पता चला कि आज की औरत की सब से बड़ी समस्या है कैसे उनका रंग गोरा हो सकता है , कैसे वो स्लिम हो सकती हैं , कैसे उनको नया फैशन अपनाना है , उनको मेहंदी कैसे लगानी हाथों पर , कौन सा इत्र , कौन सा दुर्गन्ध नाशक इस्तेमाल करना है , कैसे घर को कीमती चीज़ों से सजाना है। कहीं नहीं लगा कि उसको भूख की गरीबी की , खुद पर हो रहे अन्याय - अत्याचार की भी कोई समस्या है। अधिक नहीं तो 60 से 7 0 प्रतिशत महिलाओं की , जो खेतों में - घरों में दिन रत काम करती रहती , जो मज़दूरी करती हैं , जो सड़कों - गलियों से कूड़ा एकत्र कर बेच कर अपना और अपने बच्चों का पेट भरती हैं , जो हर जगह प्रताड़ित की जाती रहती हैं , डरी सहमी रहती हैं , उनकी एक भी बात मुझे नहीं मिली पढ़ने को।  लगा जो समाज मैं देखता हूँ आस पास वो तो यहां कहीं है ही नहीं , न जाने ये कहां की महिलाओं की बात है। मगर उन्हीं को दोष देना उचित नहीं है , यहां धर्म वालों को लोगों को धर्म क्या है , उस पर कैसे चलना है , नहीं सिखाना , उनको धर्म को बेचना है ताकि वो नाम शोहरत और दौलत कमा सकें।  कोई शिक्षा का कारोबार करता है , कोई स्वास्थ्य सेवाओं को बेचने में लगा है , मीडिया-पत्रकारिता की बात और सच्चाई की बात करने वाले , सच को नहीं तलाश करते वो सच का लेबल लगा कुछ भी बेच रहे हैं। पैसा कमाना ही एकमात्र उद्देश्य बन गया है सभी का। समाजसेवा तक एन जी ओ बना कर की जाती है ताकि सरकार से देश विदेश से चंदा लेकर जैसे मर्ज़ी उपयोग कर सकें। अब कोई आपकी पहचान का अफ्सर या विधायक - सांसद  बन गया तो उस से सरकारी धन अपने लिये पाने का ये आसान रास्ता है , इन जी ओ बना लो ! खास बात है सभी शीशे के घर में रहते हैं , कौन दूसरे को गलत बता सकता है। ये जो नेता उपदेश देते हैं आपको त्याग करने का औरों के लिये , आप सब्सिडी नहीं लो तो किसी और को देंगे , उनसे कोई पूछे तो कि देश में सब से बड़े परजीवी कौन हैं , आप नेता लोग जिनको इस गरीब देश से सभी कुछ चाहिए। जाते हैं गांधी जी की समाधि पर फूल अर्पित करने , की चिंता सब से दरिद्र की , भाषण देते हैं देशभक्त शहीदों का नाम लेकर , क्या यही सपना था उनका कि आप शासक बन राजसी शान से रहो और यहां हज़ारों लोग गरीबी से तंग आकर ख़ुदकुशी करते रहें। 

       क्या कहोगे कि ख़ुदकुशी का गरीबी से कोई ताल्लुक नहीं , चलो नरेंदर मोदी जी की सरकार के पहले साल के ये आंकड़े देखते हैं  , जिन लोगों ने आत्महत्या की उनकी आमदनी क्या थी , देखें :-

91820 जिनकी वार्षिक आय एक लाख से कम थी।

35405 जिनकी वार्षिक आय एक लाख से पांच लाख तक थी।

3656 जिनकी वार्षिक आय पांच लाख से दस लाख तक थी।

785 जिनकी वार्षिक आय दस लाख से अधिक थी।

       ( अब भूख से मरने वालों की गिनती तो कोई करता ही नहीं , 
               उसको तो किसी रोग से मरना बताते हैं )

      पंद्रह अगस्त को आज़ादी का जश्न कौन लोग मनाते हैं , कितने गरीब शोषित , गलियों में भीख मांगते बच्चे , रोज़ काम की तलाश में भटकने वाले युवा , और भी बदनसीब हैं जिनको अभी आज़ादी का अर्थ तक नहीं मालूम।

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