सितंबर 12, 2019

मदहोशी के आलम में ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

        मदहोशी के आलम में ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

 जिस समय इक महिअलों की समानता के अधिकारों की पैरवी करने वाली महिला नेता जी के शासन को राम राज्य घोषित कर रही थी ठीक उसी समय नेता जी का गला काट दूंगा की धमकी का महान आदर्शवादी वाक्य उच्चारण करने वाला वीडियो सामने आया। ये कोई बोतल का नशा नहीं है जो आसानी से उतर जाये धतूरे से सोने का नशा सौ गुणा अधिक होता सुनते थे मगर सत्ता और पद का नशा उससे लाख गुणा बढ़कर सर चढ़ कर नाचता नचवाता है , उतरता है जब सत्ता नहीं रहती तभी। क्योंकि जब तक सत्ता है इक हजूम साथ रहता है जो उनकी पसीने की बदबू को भी गुलाब की खुशबू कहता है। अब ये इंसान की कमज़ोरी कुदरती है कि झूठी तारीफ सुनकर चेहरे पर खिसियानी हंसी आ जाती है। कितनी खूबसूरत लग रही हो किसी महिला से कहो तो काला रंग गुलाबी हो जाता है। मन उछलने लगता है और खुद पर काबू नहीं रहता , हंसी तो फंसी इस को ही कहते हैं सयाने। 

    हे राम गांधी जी ने आखिरी सांस लेते कहा था आजकल लोग जाने किस किस को राम घोषित करने लगे हैं। ये सारे राम सत्ता पर विराजमान होने से राम लगते हैं उस से पहले कोई इनको कुछ नहीं समझता और सत्ता जाने पर राम को मानने वाले खुद राम बनने की ताक में रहते हैं। राम होने की बात इतनी अजीब हुई है कि राम नाम सत्य है लोग कहते हैं जब अर्थी उठती है। राम नाम याद आखरी वक़्त आते हैं मगर जिसका वक़्त अंतिम सांस ले चुका वो बोल नहीं सकता सुन नहीं सकता बाकी लोग समझते नहीं इस का मतलब क्या है। भावना नहीं होती है बस समय बिताने को रास्ता काटने को इक साधन बन गया है। लोग जाने क्यों मुर्दे से घबराते हैं जबकि मरने के बाद कोई किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है और जो मर गया उसको कोई मार नहीं सकता है। ये राजनीति काठ की तलवारों की जंग है सब सैनिक कठपुतलियां बनकर लड़ते हैं किसी के इशारे पर नाचते हुए। 

      जब कोई लगातार अनाप-शनाप बोलने लगता है समझते हैं मनसिक संतुलन बिगड़ गया है उसकी कही बात का बुरा नहीं मानने की बात की जाती है। सत्ता मदहोश कर देती है और मदहोशी में बहुत कुछ हो जाता है जो माफ़ करना नशे में था कहने से छोड़ने को कहते हैं। मगर कितनी बार कोई बार बार यही करता है जो उसकी जगह पागलखाना हो सकती है। आगरे का पागलखाना बरेली का मशहूर हुआ करता था आजकल पागलखाने को भला सा नाम दे देते हैं। कितने पागल खुद को शहंशाह बताते हैं ख़ामोशी फिल्म को देखा है पागल आशिक़ कभी ठीक नहीं होते हैं पागल बना सकते हैं जैसे ख़ामोशी की नायिका वहीदा रहमान अंत में खुद ही पागल हो जाती है पागल आशिकों का ईलाज करते करते। नेताओं की मुहब्बत सत्ता की कुर्सी होती है उनको बस उसी से इश्क़ होता है और ये सत्ता कब हमेशा किसी की हुई है। यही वफ़ा की कहानी है और इसकी बेवफ़ाई का दर्द हर किसी को झेलना पड़ता है। महबूबा का साथ छूटता लगता है तब खुद पर अपनी ज़ुबान पर काबू नहीं रहता है। ऐसे में ईलाज भी यही है सत्ता से बाहर होना और दर्द भी इसी का होता है। ये खुमार चढ़ा हो तो कोई किसी को संभाल नहीं सकता न संभलने को कहने का कोई असर होता है। जाने दो नशा उतरते ही बंदा अपनी औकात में चला आता है।

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