अक्तूबर 27, 2018

साधु और शैतान की नई कथा ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

    साधु और शैतान की नई कथा ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

      बात शुरु तो नन्हा फरिश्ता से करना चाहता था जिस में तीन खूंखार डाकू इक नहीं सी बच्ची के कारण इंसान बन जाते हैं। मगर ऐसा मुमकिन नहीं है क्योंकि संवेदना बची नहीं है समाज में। बात साधु और शैतान से शुरू करनी पड़ रही है जबकि वास्तव में इधर साधु भी साधु बनकर शैतान को भी सोचने पर विवश कर रहे हैं कि इनमें कोई विवेक कोई अंतरात्मा नाम का कुछ नहीं है। अन्यथा ऐसा कैसे संभव है कि ये सब अंधे हो कर अपनी ख़ुशी अपने स्वार्थ के लिए धन दौलत सत्ता धर्म नियम कानून हर चीज़ का गलत इस्तेमाल करें। और ये सब घोर पाप अपराध करने के बावजूद धार्मिकता का चोला पहने हुए हों। जिस देश की पुरानी परंपरा और गुरुकुल की शिक्षा की बात करते हैं जब भारत विश्वगुरु कहलाता था और लोग ज्ञान पाने को आते थे उस समय की शिक्षा और उन सभी वेदों ग्रंथों उपनिषदों नीतिशास्त्र की किताबों की बातों को पढ़ना तो क्या उन पर चिंतन करना भी छोड़ दिया है। आज उन्हीं किताबों की कथाओं का सार निचोड़ इस अध्याय में आधुनिक संदर्भ में बताया जाएगा। 
 
           पाप क्या है पापी कौन है अपराध किसे कहते हैं हर शब्द की व्याख्या है। लोग भूख से मरते हैं मगर सत्ता पर बैठे व्यक्ति को कोई एहसास नहीं होता है और वो खुद अपने पर बेतहाशा धन सुःख साधनों पर अपने नाम के गुणगान और शोहरत हासिल करने पर खर्च करता है तो ऐसा करना गुनाह है। जो शासक जनता को वादे करता है उनकी भलाई करने के मगर उस पर खरा उतरता नहीं है बल्कि उन वादों को भूलकर विपरीत आचरण करता है केवल अपने चाटुकार लोगों को पदों पर बिठाता है और अपने ख़ास लोगों को अनुचित ढंग से फायदा पहुंचाने को हर नियम कायदा ताक पर रख देता है वो अधर्मी शासक है। जो धनवान अपने धन को केवल और अधिक बढ़ाने का काम करते हैं हर किसी से लूट लेना चाहते हैं और जिनकी पैसे की हवस खत्म होती ही नहीं है उनकी गरीबी सबसे अधिक है और ऐसी कमाई कभी खुद उन्हीं के विनाश का कारण बनती है। जिस के पास अपनी ज़रूरत से अधिक धन होता है उसको उसका उपयोग लोगों की सहायता और समाज कल्याण में करना चाहिए वास्तव में दीन दुखियों की सहायता कर के न कि आडंबर कर दिखावे को दान आदि देकर। रहीम के दोहे के अनुसार " देनहार कोऊ और है देत रहत दिन रैन , लोग भरम मोपे करें याते नीचे नैन "। दान या सहायता दाता बनकर नहीं ये विचार कर करनी चाहिए कि ईश्वर ने दिया है मुझे तो माध्यम बनाया है कोई आदमी दाता नहीं हो सकता है। 
 
               अपराधी कौन हैं इसकी भी व्याख्या की गई है। आपको ओहदा मिला अधिकार मिले मगर आप देश या समाज के लिए पूरी लगन और ईमानदारी से कर्तव्य पालन नहीं करते हैं तो आप अधिकारी या डॉक्टर शिक्षक उद्योगपति बनकर भी अज्ञानी और अत्याचारी हैं जो काबिल होकर भी नाकाबिल हैं क्योंकि जो करना फ़र्ज़ है उसे नहीं करते और जो कभी नहीं करना वही करते हैं। अगर ऐसा करने के बाद आप खुद को आस्तिक मानते हैं तो इससे बड़ा छल कपट और कुछ नहीं हो सकता है। डॉक्टर का पहला काम उपचार करना है उसके बाद उचित कमाई की बात। शिक्षक जब ज्ञान का कारोबार करता है तो गुरु कहलाने का हक नहीं रह जाता है उसको भटका हुआ अज्ञानी समझना चाहिए। अधिकारी बनकर देश और समाज को अच्छा शासन नहीं देकर अधिकारों का दुरूपयोग करने वाला चोर डाकू और अन्यायी बनकर भगवान की अनुकंपा का निरादर करता है। 
 
               धर्म कोई इमारत का नाम नहीं है , मंदिर मस्जिद गिरजाघर गुरूद्वारे बनाना धर्म है ऐसा किसी किताब में लिखा नहीं है। हर धर्म संचय नहीं करने और जो पास है उसे गरीबों की दुःखियों की बेबस लोगों की सहायता में खर्च करना चाहिए यही समझाता है। पत्थरों में नहीं भगवान इंसानों में देखना चाहिए और धर्म के नाम पर धन दौलत सोना चांदी हीरे जवाहरात का अंबार जमा करना तो अधर्म हो सकता है धर्म नहीं। अब विचार करना होगा कौन कौन है जो साधु होने का दम भरता है मगर काम शैतान से भी बढ़कर गंदे करता है। शायद हर किसी ने समझ लिया है उनकी वास्तविकता कोई नहीं जानता और भगवान भी उनकी दिखावे की भक्ति और पूजा पाठ से खुश होकर उनके पाप अपराध क्षमा कर देगा। मगर ऐसा नहीं है ऊपर वाला कोई रिश्वतखोर या अपनी स्तुति से खुद होने वाला हम लोगों जैसा आदमी नहीं है और उसको कोई कुछ भी नहीं दे सकता है न ही उसको किसी से कुछ भी चाहिए। उसका हिसाब सच्चाई और झूठ को तोलना और अच्छे बुरे कर्मों का हिसाब करना है। देर है अंधेर नहीं है और शायद अब अधिक देर तक ईश्वर भी ये होने नहीं दे सकता है।  
  

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