वर्तमान से नज़रें चुराते लोग ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
मुझे तीन किताबें भेजी हैं मेरी बेटी ने , अभी पहली पढ़ रहा हूं। कुछ पन्ने पढ़ने के बाद सोच रहा हूं कि बहुत मशहूर लोगों ने इन को पढ़ने का सुझाव दिया हुआ है क्या सोचकर। भगवान है या नहीं और किसी ने खोजा था या इक कल्पना है , क्या ये महत्वपूर्ण होना चाहिए या हमें आज के वर्तमान को और भविष्य को ध्यान में रखकर लिखना पढ़ना चाहिए। आज के आधुनिक युग में बाहुबली जैसी फ़िल्में और सपनों की दुनिया की परिकथाओं जैसी बातों में कहीं हम वर्तमान की वास्तविकता से नज़रें चुरा कर भागना चाहते हैं। कहानियां क्या वो नहीं होनी चाहिएं जो कोई संदेश देने का काम करें और इंसान और इंसानियत की संवेदनाओं को जगाने का काम करें न कि मनोरंजन के नाम पर किसी नशे की तरह छा जाएं। इधर नशे का कारोबार बहुत होने लगा है , लोग नशे के आदी होते होते ज़रूरत से अधिक खुराक लेकर मर भी जाते हैं। धर्म को भी अफीम की तरह बताते हैं कुछ लोग। टीवी शो रियल्टी की आड़ में लोगों को इक जाल में जकड़ रहे हैं , आपको सपने दिखलाते हैं अपनी जेबें भरने को। लिखने वाले कलाकार कवि शायर संगीतकार को समाज की वास्तविकता को सामने लाना चाहिए न कि कपोल कल्पनाओं में बहकाना बहलाना चाहिए। नेता सरकार झूठे वादे सपने बेचकर जनता के सेवक होने की बात करते हैं मगर चाहते शासक बनकर खुद अपने सपनों को पूरा करना हैं। जो लोग देश के प्रशासन को चलाने को नियुक्त किये जाते हैं वो उल्टा जनता को न्याय की जगह अन्याय का शिकार करते हैं , दुष्यंत कुमार के अनुसार , यहां दरख्तों के साये में धूप लगती है। कहीं आज के बुद्धीजीवी लोग सत्ता से रेवड़ियां पाने की चाहत में ही तो कठोर धरातल की बात को छोड़ सपनों में सब को नशे की नींद सुलाना चाहते हैं ऐसा तो नहीं होने लगा है। मुंशी प्रेमचंद के वंशज भटक गए हैं , मोह माया और इनाम तमगों की चाह में। अख़बार और सोशल मीडिया तो वास्तविकता का सामना करना ही नहीं चाहता। अपने लिए विशेषाधिकार और इक ख़ास रुतबे की अंधी दौड़ में फ़र्ज़ की बात याद तक नहीं है। क्या क्या परोस रहे हैं। जिसे देखो औरों को आईना दिखलाता है खुद नकाब ओढ़ कर।
मुझे लगता है कि हमारे धार्मिक ग्रंथ जो शिक्षा देते हैं उसका महत्व है। लोक कथाओं नीति कथाओं में बहुत अच्छे संदेश हैं समझने को , उनको वास्तविक जीवन में लागू करना चाहिए न कि केवल माथा टेकने और आरती उतारने तक सिमित करना चाहिए। जिन्होंने भी ये सब किताबें लिखीं उनका मकसद हर किसी को अपना कर्तव्य निभाना समझाना था और अगर सब अपना फ़र्ज़ निभाएंगे तो उसी में दूसरों के अधिकार की रक्षा भी अपने आप हो जाएगी , आप अन्याय नहीं कर सकते तो सब को न्याय खुद ही मिल जायेगा।
मुझे लगता है कि हमारे धार्मिक ग्रंथ जो शिक्षा देते हैं उसका महत्व है। लोक कथाओं नीति कथाओं में बहुत अच्छे संदेश हैं समझने को , उनको वास्तविक जीवन में लागू करना चाहिए न कि केवल माथा टेकने और आरती उतारने तक सिमित करना चाहिए। जिन्होंने भी ये सब किताबें लिखीं उनका मकसद हर किसी को अपना कर्तव्य निभाना समझाना था और अगर सब अपना फ़र्ज़ निभाएंगे तो उसी में दूसरों के अधिकार की रक्षा भी अपने आप हो जाएगी , आप अन्याय नहीं कर सकते तो सब को न्याय खुद ही मिल जायेगा।
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