मई 21, 2015

बिटिया रानी को लिखी इक चिट्ठी ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

 बिटिया रानी को लिखी इक चिट्ठी ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

बिटिया रानी
कभी नहीं बुलाया ऐसे तो तुझे मैंने
हां अक्सर तेरी मां बुलाती है तुझको
जाने कितने प्यारे प्यारे नामों से
पर दिल चाहता है मैं भी बुलाता
तुझको कोई ऐसा ही प्यार भरा
सम्बोधन दे कर बेटी-पिता के नाते का ।

अभी तो बीता नहीं इक महीना भी
बिदा किया तुझको बिठा कर डोली में
कितने चाव से कतने अरमानों से
हज़ारों दुआएं देकर तेरे भविष्य की
जाने कितनी खुशियों की उम्मीदों
कितने रंग बिरंगे सपनों के साथ ।

अभी तो गुज़रे हैं दिन पंद्रह ही
जब दो पल को ही सही तू घर आई थी
पगफेरे की रस्म निभाने को संग लिये
अपने जीवन साथी को अपने ससुराल के परिवार को ।

याद आती रहती हैं हम सभी को पल पल
बातें तेरी क्या बतायें कैसी कैसी
कह देती मुझे पापा आप फिर लिख दोगे
हर बात पर कोई कविता-कहानी
मुझे नहीं है सुननी
नहीं मुझे भी बेटी सुनानी ।

पर आज नींद नहीं आई मुझे रात भर
करते करते तेरे फोन का इंतज़ार
लगता है कब से नहीं हो पाई खुल के
तुझसे तेरे मेरे सबके बारे में बात
दिल करता है अभी मिलने को तुझे
बुला लूं तुझे या चला जाऊं तेरे पास ।

याद है जब भी कभी होता था कुछ भी
तेरे मन में कहने को ख़ुशी का चाहे
छोटी छोटी आये दिन की परेशानियों का
करती थी फोन पर हर इक अपनी बात
क्या क्या बता देती थी कुछ ही पल में
चाहे रही हो कितनी भी दूर घर से
यूं लगता था होती हर दिन थी मुलाकात ।

जानते हैं हम सभी खुश हो तुम बहुत
अपने जीवन में आये इस सुहाने मोड़ से
बहुत कुछ नया सजाना है जीवन में
समझना है निभाने है रिश्ते नाते सभी
नहीं खेल बचपन का गुड्डे गुड़ियों का विवाह
खिलने फूल मुस्कुराहटों के तेरे चमन में ।

तुझे नहीं मालूम आज तबीयत मेरी ज़रा
लगती है कुछ कुछ बिगड़ी हुई सी
यूं ही ख्याल आया कभी ऐसे में
मुझे प्यार से डांट देती थी तुम कितना
और अधिक की होगी लापरवाही
बदपरहेज़ी
ख्याल रखते नहीं आप अपना पापा
मुझे देनी पड़ती थी कितनी सफाई
बताता था कब से आईसक्रीम नहीं खाई ।

कहने को मन में हज़ारों हैं बातें
यही चाहता मिल के खुशियों को बांटे
तुझे बुलाना है तेरे अपने ही इस घर में
कितनी ही तेरी अपनी चीज़ें हमने
वहीं पे सजा कर रखी हैं जहां रखी तुमने
सभी कुछ वही है
तेरा था जैसा घर में
नहीं है वो रौनक जो होती बेटियों से
तरसती है छत
तेरे कदमों की आहट को
तू ही फूल हो जो खिला इस आंगन में ।

समझना वो भी जो लिख नहीं पाया
ये खत नहीं है
नहीं है पाती
मुझे याद है वो जो तुम हो गुनगुनाती
सुना तुझसे था खुद भी साथ गाया
कभी भी नहीं धूप तुमको लगे बेटी
रहे प्यार का खुशियों का तुझपे साया ।