रात दिन साथ मिलकर चले किसलिये ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
रात दिन साथ मिलकर चले किसलियेफिर भी बढ़ते रहे फासिले किसलिये।
उम्र भर जब अकेला था रहना हमें
फिर बनाते रहे काफिले किसलिये।
देख कर लोग सारे ही हैरान हैं
इन बबूलों पे गुल सब खिले किसलिये।
हर किसी को बहुत कुछ है कहना मगर
चुप सभी लोग हैं , लब सिले किसलिये।
मिल के दोनों चलो आज सोचें ज़रा
दिल नहीं जब मिले , हम मिले किसलिये।
रोक लीं जब किसी ने हवाएं सभी
फिर ये पर्दे सभी खुद हिले किसलिये।
रौशनी को नहीं चाहते लोग जब
दीप "तनहा" तुम्हारे जले किसलिये।