दिसंबर 29, 2013

उत्पत्ति डॉक्टर की ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

       उत्पति डॉक्टर की ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

पृथ्वी का भ्रमण कर नारद जी ब्रह्मलोक वापस आये तो बहुत उदास लग रहे थे। ब्रह्मा जी ने उनको आदर सहित आसन देकर पूछा "आपको सफर में किसी प्रकार की कोई परेशानी तो नहीं हुई। लगता है बेहद थक गये हैं अब कुछ पल आराम कर लें , फिर बताएं आकर कि क्या समाचार खोज कर लाये हैं मृत्युलोक से"। नारद जी बोले ब्रह्मा जी मैं थका हुआ नहीं हूं , किसी बात से परेशान हो गया हूं और उदास भी। मैं सीधा आपके पास आया हूं एक प्रश्न का जवाब पूछने और जब तक मुझे अपने सवाल का उत्तर नहीं मिल जाता मैं न आराम कर सकता हूं न ही मुझे चैन ही आ सकता है। वैसे तो पृथ्वी लोक में कुछ भी सही नहीं है , राजा बेईमान है , अफसर भ्रष्ट हैं , आतंकवाद है , चोरी - लूट , ठगी - धोखा , हत्या - बलात्कार जैसी तमाम बातें हैं जो बुराई की हर सीमा को लांग चुके हैं। धर्म के नाम पर अधर्म का कारोबार फल फूल रहा है , संत महात्मा कहलाने वाले तक व्यभिचारी हैं , लोभ लालच , मोह माया के जाल में फंसे हुए हैं। मगर एक ऐसे प्राणी को मैंने देखा जिसको वहां डॉक्टर कह कर बुलाया जाता है , और मैं समझ नहीं पा रहा कि आपने उस जीव की उत्पत्ति किस प्रयोजन से की है। वो जीव तो बहुत सारे दुःखों का कारण लगता है। सब उसको भगवान का दूसरा रूप कहते हैं जबकि वो मरीज़ों को दुःखी देख कर भी दुःखी नहीं होता बल्कि उनको रोगी देख कर खुश होता है , उनका ईलाज करता है मगर उनको बेरहमी से लूट भी रहा है। कई बार ईलाज में लापरवाही बरतता है और खराब अंग की जगह ठीक अंग को ही काट देता है। अब बड़े बड़े अस्प्तालों में इंसान के भीतर के अंगों की चोरी तक होती है और इंसानियत को भुला कर उनका कारोबार होता है। एक और नई समस्या उसने पैदा कर दी है , कन्या के भ्रूण को जन्म लेने से पहले ही कोख में ही मार दिया जाता है। इतनी अच्छी शिक्षा पाने के बाद भी उसको न उचित अनुचित का अंतर समझ आता है न ही मानव धर्म। मुझे लगता है आपसे बहुत बड़ी भूल हो गई है उस जीव की उत्पत्ति करके। नारद जी की बात सुनकर ब्रह्मा जी बोले , मुनीवर आपकी बातें सच हैं , लेकिन उस डॉक्टर नाम के जीव को बनाना भी बहुत आवश्यक हो गया था। उसे कब कैसे और किसलिये बनाया गया मैं आपको विस्तार पूर्वक बताता हूं , तभी आपकी चिंता का निदान हो पाएगा।

            एक बार एक नगर में बहुत सारे लोग रहते थे , उनमें से एक व्यक्ति बहुत भोला और मासूम था , उसका मस्तिष्क अविकसित था , और वो मंद बुद्धि था कुछ कारणों से। सब नगर वासी उसको पगला पगला कह कर तंग किया करते थे। बच्चे उसपर पत्थर फैंकते , बड़े उसको अपमानित किया करते। इसके बावजूद भी वो सब के सामने हाथ जोड़ता और हर किसी का कहना मानता , जो भी कोई काम करने को कहता वो उसे चुपचाप कर दिया करता। लोग उसे डांटते फटकारते व अपने से नीचा समझते। अपने काम करवाने के बाद भी उसको बदले में कुछ भी नहीं दिया करते। कोई नहीं देखता कि वो भूखा है तो उसको दो रोटी ही दे दे। वो भूखा प्यासा रहता और अकेले में कभी खुद ही हंस लेता कभी खुद ही रो भी लेता। वहां किसी को उसकी ख़ुशी उसके दर्द से कोई सरोकार नहीं था। उन लोगों को उसमें एक इंसान नहीं दिखाई देता था , अपने अपने स्वार्थ सभी को नज़र आते थे। वक़्त आने पर वो सभी लोग मृत्यु को प्राप्त होने के बाद यमराज के सामने लाये गये। चित्रगुप्त जी ने देखा उनका सभी का बहुत बड़ा अपराध था एक अकेले भोले मनुष्य पर उम्र भर करते रहना बिना किसी भी कारण के। जबकि वो मनुष्य उनके अत्याचार सह कर भी उनको आदर और सम्मान देता रहा था। उसपर ज़ुल्म करने का उनको न कोई अधिकार ही था न ही कोई कारण ही। धर्मराज जी ने अपने सलाहकारों से ये विचार करने को कहा कि ऐसे बेरहम लोगों को क्या सज़ा दी जानी चाहिये। उनकी राय थी कि इन सब को जानवर बना दिया जाये और उस को जिसपर ये अत्याचार करते रहे कसाई बना दिया जाये। मगर ये सुन कर वो मनुष्य बोला कि क्या ऐसा करने से मुझे इंसाफ मिल जायेगा। मैं तो हमेशा सभी का आदर करता रहा हूं , जबकि मेरे कसाई बनने पर मुझे सब नफरत किया करेंगे। और मैं तो पूरी उम्र तड़पता रहा इनके अत्याचार सहते हुए जबकि इस तरह इनको केवल एक ही बार कष्ट सहना होगा। आप देखें अपने इंसाफ के तराज़ू की तरफ क्या दोनों पलड़े बराबर होते हैं। धर्मराज जी ने देखा उनके इंसाफ के तराज़ू के पलड़े एक समान नहीं लग रहे हैं। जब उनको नहीं समझ आया कि कैसे उसको सही मायने में इंसाफ दिया जा सकता है तब उन्होंने विष्णु जी और महेश जी से चर्चा की तब फैसला किया गया कि डॉक्टर नाम से उस जीव की उत्पत्ति करना ही एक मात्र समाधान है , उनके अपराधों की सज़ा देने के लिये।

                इस प्रकार उसको न्याय देने के लिये अगले जन्म में एक ऐसे जीव के रूप में पृथ्वी लोक पर उसको भेजा गया जो जो इन सब अपने पिछले जन्म के अत्याचारियों को दुःख दे और इनके दुःखों को देख कर वो भी राहत का अनुभव करे। इनके कष्टों की बिलकुल परवाह नहीं करे और इनसे ईलाज की मनमानी कीमत वसूल करे और चैन से रहे। ये कोठी कार और हर तरह के ऐशो-आराम हासिल करने में व धन दौलत जमा करने में ही लगा रहे। इसके बावजूद भी ये सब इसको आदर देते रहें और कहते रहें कि आप ईश्वर का दूसरा रूप हैं। इस तरह अपने पूर्व जन्म में हुए सभी अत्याचारों का बदला लेने के लिए इसको डॉक्टर बनाया गया और इस पर जो लोग पूर्व जन्म में अत्याचार करते रहे उन सब को इसका मरीज़ बनाया गया। इस प्रकार दोनों अपने पिछले जन्म का हिसाब बराबर कर सकते हैं। अब ये इनके साथ कोई सहानुभूति नहीं रखता है और कई बार तो रोगी रोग से नहीं मरता बल्कि इसके ईलाज से ही मर जाता है। ब्रह्मा जी बोले मुनिवर इस तरह न्याय व्यवस्था को नया आयाम देने का कार्य किया गया था इस जीव की उत्पत्ति करके। आप व्यर्थ की चिंता त्याग दें , बिना प्रयोजन पृथ्वी का कोई भी जीव नहीं बना है। ब्रह्मा जी से डॉक्टर की उत्पत्ति की ये कथा सुनते ही नारद जी की उदासी दूर हो गई थी। जो भी प्राणी इस कथा को ध्यान पूर्वक सुनेगा उसको जीवन में कभी किसी डॉक्टर के पास जाना नहीं पड़ेगा। वो ईलाज से नहीं , रोग से ही मर सकेगा। 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

हा हा हा...बहुत बढ़िया व्यंग्य सर👌👍