अक्तूबर 13, 2024

POST : 1908 सही समय का इंतज़ार ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

            सही समय का इंतज़ार ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

सरकार बेकरार है अभी बीच मझधार है समाज का करना उद्धार है बस सही समय का इंतज़ार है । जब संसद पर आतंकवादी हमला हुआ तभी घोषणा कर दी गई थी समय आ गया है इस को खत्म करने का । सरकार चाहती तो क्या नहीं कर सकती थी लेकिन सीमा पर पूरा साल भर फ़ौज तैनात रही मगर सरकार ने संयम रखा लड़ने झगड़ने से अच्छा है शांति के सफेद कबूतर उड़ाना । फैसला सही समय पर लेने का अर्थ होता है चुनाव के वक़्त दहाड़ना दुश्मन को ललकारना ताकि जनता को देश की सुरक्षा के सवाल पर वोट देने को प्रेरित किया जा सके । आतंकवाद घोटाले गरीबी शिक्षा रोज़गार अन्याय शोषण जैसी समस्याएं अभी क्या जल्दी है ख़त्म करने की अभी उनका इस्तेमाल सत्ता की राजनीति के मकसद से किया जा सकता है किसी भी शासक के पास अन्य कोई कारगर उपाय नहीं है जनता को प्रभावित करने का । भय बिनु होई  न प्रीति भगवान राम समझा गए थे धमकी देने से बात बन जाती है समंदर हाथ जोड़ सामने खड़ा होता है । रास्ता नहीं देता कोई बात नहीं कितने अनमोल हीरे जवाहरात उपहार में भेंट कर भगवान की नाराज़गी दूर कर खुश कर लेता है । भगवान राम भी जब समंदर को सुखाने को बाण का उपयोग नहीं करते अवसर देते हैं कोई न कोई बीच का रास्ता समझौता करने का निकलता अवश्य है । 
 
जनता को इस बार फिर से भरोसा दिलवाया है अच्छे दिन से भी बढ़कर शानदार क्या क्या उपहार सभी को बांटेंगे फिर से इक बार आज़माओ तो सही । जनता की आदत है मान जाती है धोखा हर किसी से खाकर भी रूठी हुई मनाते हैं तो मान भी जाती है कदम कदम ठोकर खाकर भी समझ नहीं पाती है सत्ता की गंदी राजनीति हमेशा झूठे ख़्वाब दिखलाती है । गरीबी भ्र्ष्टाचार सभी समस्याओं को ख़त्म करने का भी जनाब सरकार हज़ूर ऐलान कर ही देंगे बस अभी कितना कुछ उनको करना है कुछ खुद की कामनाओं को हासिल करने को कुछ खास अपनों की चाहतों को पूरा करने को । जनता को जन्म जन्म बार बार लेने का भरोसा है इस बार नहीं किसी अगले जन्म में सबकी बारी आएगी । सरकार विपक्षी दलों से सहयोग चाहती है हमेशा उनका आपसी तालमेल बना रहता है भले टीवी पर बहस में उलझते हैं मगर ऑफ दि रेकॉर्ड कुछ और मेल मिलाप करते हैं । पहले भी जाने कितनी बार शासकों ने साधारण जनता से अपील की है फिर इक बार सरकार ने देश की साधरण जनता से सहयोग मांगा है अभी परेशानियां सहन करें कोई आक्रोश कोई विरोध प्रदर्शन करना उचित नहीं है धीरे धीरे सब अच्छा लगने लगेगा । कोई आपत्काल घोषित नहीं किया गया बस देशहित में सही समय का इंतज़ार और राजनेताओं पर ऐतबार करें ये आग्रह आदेश निर्देश है । 

शायर दुष्यन्त कुमार की ग़ज़ल पेश है :-

होने लगी है जिस्म में जुंबिश तो देखिए , इस परकटे परिन्द की कोशिश तो देखिए । 

गूँगे निकल पड़े हैं ज़ुबाँ की तलाश में , सरकार के ख़िलाफ़ ये साज़िश तो देखिए । 

बरसात आ गई तो दरकने लगी ज़मीन , सूखा मचा रही ये बारिश तो देखिए । 

उनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करें , चाकू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिए । 

जिसने नज़र उठाई वही शख़्स गुम हुआ , इस जिस्म के तिलिस्म की बंदिश तो देखिए । 

( साये में धूप से आभार सहित ) 

भय बिनु होइ न प्रीति | सम्पादकीय | विनम्रता और प्रेम की भाषा | आतंकवाद और  अलगाववाद | पत्थरबाजी का दौर | भारत विरोधी आवाजें | भारत विरोधी ...

 
   

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

👍👌...सही कहा चुनाव के दौरान पड़ौसी को वोटों की खातिर ललकारा जाता है