फ़िल्मी नायक हैं असली नहीं ( बोल फ़रीदा ) डॉ लोक सेतिया
नामुमकिन को मुमकिन करने वाले नायक या फिर ख़लनायक का अभिनय करते हुए सिनेमा के पर्दे पर सब कुछ कर सकते हैं वास्तविक ज़िंदगी में उनकी सच्चाई बिल्कुल अलग होती है। सच्चाई ईमानदारी और आदर्श की कहानी का किरदार निभाने वाले वास्तविक जीवन में झूठ छल कपट धोखा और समाज के नैतिक मूल्यों को ताक पर रख कर बिना संकोच या लाज शर्म उस सीमा तक अनुचित आचरण करते हैं जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। और उनके अच्छे बुरे क्या खराब और गुनाह समझे जाने वाले कर्मों को भी हम चाव से सुनते हैं और कितनी अजीब बात है देख कर पढ़ कर सुनकर भी उनके लिए खराब भावना नहीं होती है। इक झूठ फरेब की नकली चमकती दुनिया को हमने हक़ीक़त से बढ़कर समझ लिया है उनके अफ़साने हक़ीक़त को झुठलाते हैं। हमने किसी को नायक किसी को महनायक किसी को भगवान तक कह दिया उनके अभिनय या खेल या कोई कला को दिखला सफल होने के कारण। उस कलाजगत खेलजगत का वास्तव में देश समाज और हमारे साधारण लोगों के जीवन से कोई मेल तो क्या सरोकार भी शायद ही होता है। शायद उनको मालूम ही नहीं है कि साहित्य कला संगीत और अभिनय नृत्य का वास्तविक मकसद आम व्यक्ति की ज़िंदगी और सुख दुःख दर्द परेशानी समस्याओं को जानकर उन पर चिंतन करना होना चाहिए। मगर ये बेहद खेदजनक है कि सफलता पाने का अर्थ पैसा दौलत कमाकर इंसान इंसानियत के एहसास से दूर केवल अपने स्वार्थ को ध्यान में रखना बन गया है इसलिए उनके किरदार से समाज को अच्छा संदेश नहीं मिलता बल्कि भटकाने की बात होती है। कभी शायद कोई सोचेगा कि कभी समय हुआ करता था जब सिनेमा फिल्म और कहानी गीत कितने सार्थक मार्गदर्शक की तरह अपना कर्तव्य निभाते थे और उन नैतिक आदर्शों की खातिर अपने स्वार्थ को छोड़ने में कोई संकोच नहीं होता था पैसा उनका भगवान नहीं होता था। अब टीवी सीरियल फिल्म और सोशल मीडिया भी हम सभी को सच से दूर किसी झूठी काल्पनिक दुनिया में भटकाने का ही काम करते हैं। उनका मकसद धन दौलत हासिल करना होता है कोई सामाजिक कर्तव्य निभाना नहीं।
ये बताना ज़रूरी था विषय को समझने की खातिर। डायलॉग बोलने की तरह भाषण देकर तालियां बजवाने वाले नायक भी नहीं बहरूपिया कहना उचित होगा को हमने समझ लिया कि वो चुटकी बजाते ही हम सब की देश की जनता की समस्याओं को हल कर सकता है। जैसे किसी बकवास विषय पर बनी हिट फिल्म को फिर से बार बार बनाते हैं उस ने नायक का किरदार निभाते हुए कितने तमाशे रोज़ दिखला दिखला कर हम सभी को सोचने समझने ही नहीं दिया कि उसका कोई करिश्मा देश की जनता के लिए कुछ भी कर नहीं पाया है और हमने उसको अनावश्वक ही कोई मसीहा समझने है मानने की गलती की है। अब पता चला आकाश छूने की बातें करने वाले ने देश को पाताल में धकेल दिया है विकास विकास करते करते विनाश को लाते रहे हैं। फिल्म की कहानी में लेखक अपने बनाए किरदार को सही अंजाम तक ले जाने में पग पग साथ रहकर बचाए रहता है लेकिन यहां खुद नायक का अभिनय करने वाला जब जैसे चाहा मनमानी करते हुए जनता की ज़िंदगी की कहानी से खिलवाड़ करता रहा है। उसको रत्ती भर भी एहसास नहीं है कि उसने क्या किया है क्यों किया है और क्या से क्या हो गया है। कहानी अभिनय निर्देशन सभी उसी का है जिसको कुछ भी मालूम नहीं उनके बारे में।
फ्लैशबैक में पिछली कहानी को देखते हैं। उसने कितने रंग कितने रूप बदल बदल कर मनोरंजन करने का काम किया है। अभिनेता संजीव कुमार ने सात रंग जीवन के सात किरदार निभाए थे मगर गोविंदा ने इक फिल्म में अनपढ़ होते हुए भी वकील डॉक्टर पुलिस अधिकारी की पोशाक पहन कर फोटो करवा घर में लगवाई हुई थी। जिसे देख नायिका भी चक्कर खाई थी। डबल रोल करने वालों की गिनती करना ज़रूरी नहीं है गब्बर सिंह कहता है पचास पचास कोस दूर की दहशत मगर जनाब के लिए हज़ारों मील की भी दूरी कोई दूरी नहीं है। कभी फोटोग्राफी कभी पहाड़ों की सैर कभी शेर चीते हाथी से याराना कभी इस कभी उस देश जाना अपना तमाशा बनाना खुद तमाशाई बन इतराना अपने मुंह मियां मिट्ठू कहलाना। बाबुल की दुआएं लेती जा रुलाने वाले गीत पर झूमना ठहाके लगाना क्या नहीं कर दिखाया है हर शाख पे उल्लू बैठा है किसी ने किस किस को नहीं उल्लू बनाया है। इक छलिया आया है कोई जोकर संग लाया है अच्छे अच्छों को उसने तिगनी का नाच नचाया है।
खीर बनाने लगे थे कढ़ी बन गई है रोटी पकते पकते तवे पर जल गई है उसकी चाय लेकिन बिना आग पर रखे उबल गई है। उसने लिट्टी चोखा भी खाया है आपदा को अवसर उसने बताया ही नहीं बनाया है। ये कौन जाने किस जहां में सबको लाया है समझा रहा है सब झूठी मोह माया है। अब हर कोई लगता है जैसे घबराया है रात को डरावना सपना किसको नहीं आया है। इक गंभीर कहानी की फिल्म नासमझ बच्चों की खातिर बनाई कार्टून फिल्म बन गई है सब दोस्तों से दुश्मनी होने लगी है उसकी सभी से ठन गई है। हालत बिगड़ गई है फिर भी उसका दावा है कि बात बन गई है। मन ही मन खिचड़ी कोई पकाता है देता नहीं किसी को सबको दिखलाता है खुद चटखारे ले कर खाता है अफ़सोस फिर भी भूखा का भूखा रह जाता है। सपने देखने को जागते ही फिर से सो जाता है। इतिहास के पुराने मंज़र को दोहराता है सब तोड़ता है तोड़ता ही जाता है कहता है फिर से नया देश बनाता है। कोई नशा है जादू है जाने क्या है बर्बाद करता है सभी को फिर भी मनभाता है का शोर मचाता है सच को हमेशा कुचलता है उसकी लाश को छिपाता है। सब कहने लगे हैं भागो भागो वो इधर आता है। ऐलान कर दिया भगवान बन गया है इंसान है हैरान क्या इंसान बन गया है उसका कोई अरमान बन गया है देश में सभी से महान बन गया है। अभिशाप मिला है सबको इक वही वरदान बन गया है। आपने डुप्लीकेट देखे हैं किसी नायक की नकल करते हैं कुछ ऐसा ही है हर महान नायक देश के बड़े बड़े इतिहास के लोगों की नकल करते करते खुद को असली उनको नकली साबित करते करते जोकर बन गया है। झूठ की पहचान होती है कि उसके पैर नहीं होते समझते रहे हैं मगर झूठ बोलने वाले की कोई ज़ुबान नहीं होती है बढ़बोला होना उसकी निशानी है। यही आज की कहानी है समझनी है समझानी है।
फ्लैशबैक में पिछली कहानी को देखते हैं। उसने कितने रंग कितने रूप बदल बदल कर मनोरंजन करने का काम किया है। अभिनेता संजीव कुमार ने सात रंग जीवन के सात किरदार निभाए थे मगर गोविंदा ने इक फिल्म में अनपढ़ होते हुए भी वकील डॉक्टर पुलिस अधिकारी की पोशाक पहन कर फोटो करवा घर में लगवाई हुई थी। जिसे देख नायिका भी चक्कर खाई थी। डबल रोल करने वालों की गिनती करना ज़रूरी नहीं है गब्बर सिंह कहता है पचास पचास कोस दूर की दहशत मगर जनाब के लिए हज़ारों मील की भी दूरी कोई दूरी नहीं है। कभी फोटोग्राफी कभी पहाड़ों की सैर कभी शेर चीते हाथी से याराना कभी इस कभी उस देश जाना अपना तमाशा बनाना खुद तमाशाई बन इतराना अपने मुंह मियां मिट्ठू कहलाना। बाबुल की दुआएं लेती जा रुलाने वाले गीत पर झूमना ठहाके लगाना क्या नहीं कर दिखाया है हर शाख पे उल्लू बैठा है किसी ने किस किस को नहीं उल्लू बनाया है। इक छलिया आया है कोई जोकर संग लाया है अच्छे अच्छों को उसने तिगनी का नाच नचाया है।
खीर बनाने लगे थे कढ़ी बन गई है रोटी पकते पकते तवे पर जल गई है उसकी चाय लेकिन बिना आग पर रखे उबल गई है। उसने लिट्टी चोखा भी खाया है आपदा को अवसर उसने बताया ही नहीं बनाया है। ये कौन जाने किस जहां में सबको लाया है समझा रहा है सब झूठी मोह माया है। अब हर कोई लगता है जैसे घबराया है रात को डरावना सपना किसको नहीं आया है। इक गंभीर कहानी की फिल्म नासमझ बच्चों की खातिर बनाई कार्टून फिल्म बन गई है सब दोस्तों से दुश्मनी होने लगी है उसकी सभी से ठन गई है। हालत बिगड़ गई है फिर भी उसका दावा है कि बात बन गई है। मन ही मन खिचड़ी कोई पकाता है देता नहीं किसी को सबको दिखलाता है खुद चटखारे ले कर खाता है अफ़सोस फिर भी भूखा का भूखा रह जाता है। सपने देखने को जागते ही फिर से सो जाता है। इतिहास के पुराने मंज़र को दोहराता है सब तोड़ता है तोड़ता ही जाता है कहता है फिर से नया देश बनाता है। कोई नशा है जादू है जाने क्या है बर्बाद करता है सभी को फिर भी मनभाता है का शोर मचाता है सच को हमेशा कुचलता है उसकी लाश को छिपाता है। सब कहने लगे हैं भागो भागो वो इधर आता है। ऐलान कर दिया भगवान बन गया है इंसान है हैरान क्या इंसान बन गया है उसका कोई अरमान बन गया है देश में सभी से महान बन गया है। अभिशाप मिला है सबको इक वही वरदान बन गया है। आपने डुप्लीकेट देखे हैं किसी नायक की नकल करते हैं कुछ ऐसा ही है हर महान नायक देश के बड़े बड़े इतिहास के लोगों की नकल करते करते खुद को असली उनको नकली साबित करते करते जोकर बन गया है। झूठ की पहचान होती है कि उसके पैर नहीं होते समझते रहे हैं मगर झूठ बोलने वाले की कोई ज़ुबान नहीं होती है बढ़बोला होना उसकी निशानी है। यही आज की कहानी है समझनी है समझानी है।
1 टिप्पणी:
बढिया है :)
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