अगस्त 19, 2019

चांद तन्हा है आस्मां तन्हा ( कहानी पाकीज़ा की ) डॉ लोक सेतिया

चांद तन्हा है आस्मां तन्हा ( कहानी पाकीज़ा की ) डॉ लोक सेतिया 

कहानी साहिबजान की है बाज़ार के कोठे से गुलाबी महल तक की सफर की। जिनको शौक होता है नाच देखने का उनको किसी औरत का दर्द कब समझ आता है। शुरुआत मीना कुमारी की शायरी से करते हैं। 

चांद तन्हा है आस्मां तन्हा , दिल मिला है कहां कहां तन्हा। 

ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं , जिस्म तन्हा है और जां तन्हा। 

बुझ गई आग छुप गया तारा , थरथराता रहा धुंआ तन्हा। 

हम सफर गर मिले भी कहीं , दोनों चलते रहे तन्हा तन्हा। 

जलती बुझती सी रौशनी के परे , सिमटा सिमटा सा इक मकां तन्हा। 

राह देखा करेगा सदियों तक , छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा। 





उनका निज़ाम है उन्हीं का फरमान है महिलाओं की भी चिंता है और जिनको खूबसूरती का लुत्फ़ लेने का रहीसाना शौक है उन लोगों को भी खुश करना है इसलिए गरीबी की दलदल से निकलने को उसको सभी का दिल बहलाने को नाचना गाना है। अब किस को फुर्सत है समझता उसकी मर्ज़ी क्या है किस किस ने कैसे कैसे कहां कहां उसका दुपट्टा छीना छेड़खानी की। लोग उतावले हो रहे हैं गुलाबी महल जाने को अब कोई कानूनी अड़चन नहीं है। खूबसूरत महिलाओं को अस्मत के बदले सोना चांदी गहने कपड़े और सजने धजने को बन संवर कर नाचना गाना सीख कर दिल बहलाने को सब मिल सकता है। लोग आएंगे उनसे खिलवाड़ करेंगे और लौट जाएंगे अपनी पाप की कोई निशानी देकर।  जब जब फूल खिले की कहानी कश्मीर की कली की कितनी कहानियां हैं मगर ताजमहल की कहानी की बात और है शहंशाह पहले अपनी पसंद की महिला को बेवा बनाते हैं उसके शौहर का कत्ल करते हैं फिर जी भर उसके साथ जिस्मानी प्यार खेलते हैं मर जाने पर उसकी बहन से निकाह करते हैं और अपनी मुहब्बत की यादगार ताजमहल बनवाते हैं। शाहजहां की सात बीविओं में छोटी थी मुमताज और चौदवहीं बार संतान को जन्म देते समय उसकी मौत हुई थी। किसी ने कहा था कि मुमताज बनने की आरज़ू मत करना क्योंकि ताजमहल लोगों ने देखा है मुमताज ने नहीं देखा।

  शासकों का इश्क़ पागलपन हुआ करता है जिसको अपनाना चाहते उसकी सहमति की ज़रूरत नहीं समझते हैं। बाद में मानने के इलावा कोई विकल्प नहीं होता है। मुग़ले आज़म फिल्म में कलाकार को राजा अनारकली तोहफ़े में देने की बात कहते हैं तब कलाकार कहता है अब समझ आया कि शहंशाहों के ईनाम और ज़ुल्म में कोई फर्क नहीं होता है। नाफ़रमानी का अंजाम हाथी के पांव तले कुचला जाना है समझाता है और इनकार कर देता है। अभी सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ ऐसा कहा भी है कि अभिव्यक्ति पर पाबंदी अनुचित है। मगर यही अदालत इस को अनदेखा करती है कि जिसके भविष्य की बात है उस से कोई नहीं पूछता उसको क्या चाहिए। इक कविता याद आती है महिला को लेकर , जो कहती है उसको सुनार को मत देना किसी लोहार संग ब्याह देना जो मेरी बेड़ियों को काट दे और मुझे आज़ाद कर दे। कोई भी महिला किसी की कैद में नहीं रहना चाहती
आप मैना को पिंजरे में बंद कर देंगे तो उसका मधुर संगीत नहीं सुनाई देगा। वो किसी बाज़ारी कोठे पर बिठाई गई हो या चाहे किसी शानदार राजभवन जैसे गुलाबी महल में उसकी आवाज़ का दर्द समान रहता है। किसी की आज़ादी छीनकर बदले में कुछ भी देने से कोई खुश नहीं होता है। गुलामी की ज़िंदगी से बेहतर समझा था जिन लोगों ने मौत को उन्होंने हंसते हंसते सूली को चूमा था।

    दुनिया का हर तानशाह शासक खुद को मसीहा और देशभक्त समझता रहा है। मगर वास्तव में तानाशाह को सत्ता को छोड़ किसी की चिंता नहीं हुआ करती है। पाकीज़ा फिल्म कमल अमरोही का शाहकार है जिस को बनाने में बीस साल का विलंब उन पति-पत्नी के संबंध खराब होने के कारण हुआ। कम लोग जानते हैं कमाल अमरोही ने मीना कुमारी को गुस्से में आकर तलाक दे दिया था मगर बाद में पछतावा था लेकिन जब फिर से निकाह करने की बात की तब मुस्लिम धर्म गुरुओं ने पहले किसी और से निकाह और शारीरिक संबंध बनाने का नियम बताया जिस पर मीना कुमारी का कहना था अगर मेरी सहमति के बिना कोई भी मेरे साथ ऐसा रिश्ता कायम करता है तो मुझ में और किसी बाज़ारी वैश्या में क्या फर्क रह जाता है। जब चाहा पत्नी को छोड़ दिया जब मन चाहा फिर अपनाना चाहा इसको प्यार नहीं कहते हैं। संदेश समझ आया कि  नहीं एकतरफा मुहब्बत प्यार नहीं ताकत के दम पर सितम करना होता है। जिस को चाहते हैं अपनाना उसकी सहमति बिना किसी भय के है तभी उचित है।

कोई टिप्पणी नहीं: