सितंबर 01, 2019

साहिर की बात कौन समझा ( अमृता-इमरोज़ की बात ) डॉ लोक सेतिया

      साहिर की बात कौन समझा ( अमृता-इमरोज़ की बात ) 

                                            डॉ लोक सेतिया 

    कल अमृता के सौंवे जन्म दिन पर मैंने भी उन्हें याद किया था। मगर कुछ लोगों ने ऐसा करते हुए साहिर को लेकर कुछ ऐसे चर्चा की मानो उनका अपराध था अमृता से या किसी से प्यार नहीं करना। कहते हैं इश्क़ पर बस नहीं चलता हो जाता है किया नहीं जाता तो फिर साहिर को कोई प्यार करने को विवश कैसे कर सकता है। किसी का किसी से प्यार सच्चा और गहराई से हो सकता है मगर जिस से हो उसको भी होना लाज़मी नहीं है। मगर जाने क्यों लोग किसी को इल्ज़ाम देने लगते हैं जबकि वास्तव में जिस से जितना प्यार जिस तरह मिला उसी को बहुत समझना चाहिए। मैंने इक ग़ज़ल में इक शेर कहा है :-

                  किसी को बेवफ़ा कहना मुझे अच्छा नहीं लगता ,

                   निभाई थी कभी उसने भी उल्फत याद रखते हैं।      

 
   मैंने इक कहानी लिखी थी वास्विकता शीर्षक से जिस की नायिका जिसे चाहती है विवाह नहीं करने पर दिल में मलाल रहता है क्यों हुआ ऐसा। अंत में समझ आता है कि नायिका से बढ़कर उस की चाहत थी जिसने केवल खुश करने दिखाने को प्यार करता है विवाह नहीं किया था। कितनी बार अमृता को लेकर पढ़ा किसी का लिखा हुआ तो लगा जैसे साहिर ने कोई गुनाह किया अमृता के प्यार को स्वीकार नहीं कर के। एकतरफा प्यार दिल में रखते हैं जिसको चाहते हैं उसको विवश नहीं किया करते और कोई साहिर अगर किसी अमृता को प्यार नहीं करता तो झूठ का दिखावा कर उसको धोखा नहीं देता साफ कहता है उसको ऐसी कोई अनुभूति नहीं है तो वो सच्चा इंसान है। साहिर की ज़िंदगी अपनी थी उसके जीवन का अनुभव अपने पिता के मां को छोड़ने से अलग था और कितने लोग जानते हैं उसको मां से बढ़कर कोई नहीं लगता था। मगर शायद कम लोग इस बात को जानते हैं कि औरत को लेकर साहिर की सोच कितनी अच्छी थी। 

    औरत ने जन्म दिया मर्दों को , साधना फिल्म का गीत हर कोई नहीं लिख सकता है। साहिर की तरह मजाज़ ने भी औरत को लेकर बेहद संजीदगी से नज़्म लिखी है। तू इस आंचल को इक परचम बना लेती तो अच्छा था। और साहिर की नज़्म ताजमहल पढ़कर आपको समझ आएगा जिस को अक्सर लोग मुहब्बत कहते हैं वास्तव में प्यार नहीं है और साहिर कहते हैं तुम मुझे ठुकरा के भी जा सकती हो। तुम्हारे हाथ में मेरा हाथ है जंज़ीर नहीं। शायद फैज़ अहमद फैज़ की बात भी कम लोग समझ सकते हैं जो कहते हैं मुझ से पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग। आपको कोई हसीना लगती हो सकती है मगर मुमकिन है शायर की चाहत उसका वतन उसका समाज हो। ऐसे लोग बहुत हैं शायद मैं भी ऐसा ही हूं जिसको किसी हसीना से अधिक और बढ़कर इश्क़ अपने देश से समाज से है और उसको लगता है जब देश में इतनी भूख गरीबी भेद भाव अन्याय है तब किसी की ज़ुल्फ़ों की छांव में उसको चैन कैसे मिल सकता है। 

 कितने आशिक़ हुए जिन्होंने विवाह नहीं किया आपस में हीर लैला का विवाह किसी और से हुआ।  राधा कृष्ण का प्यार महान है मगर क्या राधा ने कान्हा को पाने की चाहत की और नहीं मिलने की शिकायत की। महिलाओं की बात पर पुरुष को कटघरे में खड़ा करने वाले कभी किसी औरत के पुरुष को ठुकराने की बात या उसको उपयोग कर मतलब निकलते छोड़ने की बात पर खामोश हो जाते हैं। हेमा मालिनी और मीना कुमारी दोनों की कहानी को समझना होगा तब आपको धर्मजी की मुहब्बत सच्ची नहीं लगेगी। क्या किसी ने राज कपूर नगरिस ही नहीं उनकी और भी मुहब्बत की दास्तानें सुनी हैं अमिताभ रेखा की और बॉलीवुड की कितनी ऐसी कहानियां हैं। मगर हर रिश्ते की अपनी सीमा होती है और किसी को प्यार नहीं हासिल होता है तो उसको लेकर भी इक गीत है सुनो और समझो ज़रा। 


 
मगर कभी कोई भी दोषी नहीं होता है और किस्मत से मिलन नहीं होता है। मिलन फिल्म और सरवतीचन्द्र की कहानी ऐसी भी है। मगर अमृता को फिर भी कोई इमरोज़ मिला तो था जिसने उसकी वास्तविकता को समझ कर भी उसका साथ निभाया बहुत ठुकराये आशिक़ को कोई और नहीं अपनाता है। इसलिए हर कहानी को किसी एक किरदार की नज़र से नहीं बाकी किरदार की बात को भी शामिल कर समझना होगा तब मुमकिन है कहना पड़े। विवाह नहीं होना नाकाम मुहब्बत नहीं होती अगर सच्चा प्यार है तो समझते हैं ये भी कि :-

            न तुम बेवफ़ा हो न हम बेवफ़ा हैं , मगर क्या करें अपनी रहें जुदा हैं ।

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