अगस्त 29, 2019

बदनसीबी विधायक-सांसद नहीं हुए ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

  बदनसीबी विधायक-सांसद नहीं हुए ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

      भटकती रहती हैं आत्माएं जीवन भर भी मौत के बाद भी रूह को चैन नहीं मिलता जिनकी चाहत अधूरी रहती है। कोई कोई खुशनसीब होता है जिस का भाग्य जागता है और आधी रात को दिल्ली से फोन आता है उठो जागो आपको सांसद का चुनाव लड़ना है। मेरे शहर में बदनसीब कितने हैं कोई संख्या का हिसाब नहीं मगर दो एक हैं जिनके भाग्य से छींका टूटा और बिल्ली शेर बन गई। ऐसे शेर , राजनीति वाले शायरी वाले नहीं , अभी भी ख्वाब बुनते हैं फिर से सितारा बुलंदी पर होने के। शायर फिर भरा पड़ा है खुद को भावी विधायक घोषित करने वालों के रंगीन इश्तिहारों से। खबर है किसी की करोड़ों की बेनामी संपत्ति ज़ब्त हुई है वो भी दिन थे उनका भी सिक्का चलता था और इक दिन उनके वालिद भी नसीब वाले थे जो उम्मीद से बढ़कर मिला था उनको। नसीब चालाक लोगों का चमकता है भोले भाले लोग नसीब के भरोसे पीछे रह जाते हैं। इक डॉक्टर साहब को डॉक्टरी से कुछ नहीं मिला सांसद बनवा दिया किसी दल के बड़े नेता ने तो आजकल खुद ही दल बनाए हुए हैं और इसी उम्मीद पर जीते हैं कि सितारे फिर बुलंदी पर होंगे। इक और सांसद बनकर भी धन दौलत का अंबार जमा करना नहीं सीख पाए उनका नाम भी लोग भूल गए हैं। कोई बहुत चालबाज़ भी हैं जिनकी किस्मत ने धोखा दिया बार बार और तमाम हथकंडे आज़मा कर भी झोली खाली है। अभी भी दिल में अरमान दबाए हुए हैं किसी दिन नसीब साथ देगा। ऐसे सभी लोग भूखे नंगे गरीब नहीं हुआ करते ये वो हैं जिनके पास सभी कुछ होता है चैन नहीं होता ऊपर जाने पहली कतार में जगह नहीं मिलने का मलाल रहता है। 

          राजनीति इक ख़तरनाक़ जंगल है जिस में हर जानवर छोटे जानवर को निगल जाने को ताक लगाए हुए है। यकीन करना इस जंगल में कोई किसी का अपना नहीं है जिस किसी के कांधे पर चढ़कर ऊंचाई पाई उसी को ठोकर लगाते हैं। मोक्ष स्वर्ग नर्क जन्नत दोजख कुछ भी नहीं मांगते हैं इनको शासन चाहिए भले किसी भी जगह का हो। जवानी में फ़िल्मी नायिका को पाने के ख्वाब देखना बुरा नहीं मगर जीवन भर ढलती आयु में भी राम नाम को छोड़ किसी नेता के नाम की माला जपना बदनसीब होने का सबूत है। पठान लोग इक कहावत सुनाया करते हैं जिस में शिक्षा विवाह घरबार से दौलत शोहरत सब को लेकर बताया है कि इस आयु तक नहीं मिलता तो कभी नहीं मिलेगा। सत्ता को लेकर ये लागू नहीं है हमने देखा है जिस की आखिरी सांसों की गिनती खत्म होने को थी अचानक किसी नेता का आकस्मिक निधन होने पर कुर्सी क्या मिली संजीवनी मिल गई। बुढ़ापे में फिर से जवानी लौट आई थी। सच्चा राजनेता इसी आस पर ज़िंदा रहता है। अभी तो मैं जवान हूं अभी तो मैं जबान हूं। सोशल मीडिया पर किस को टिकट मिलेगी से लेकर कौन बनेगा विधायक सांसद का खेल चलता रहता है। हर किसी ने नौकर चाकर नियुक्त किये हुए हैं जो उनको सबसे आगे साबित करने को हर दिन पोस्ट लिखते हैं। कितने ऐसे पढ़े लिखे लोगों को काम मिला हुआ है , मामला एक अनार सौ बीमार से बढ़कर हज़ारों को रोग लगा हुआ है। सब को देशभक्ति समाजसेवा करनी है और सत्ता बिना ये मुमकिन नहीं है। नामुमकिन को मुमकिन बनाने का नाम कुर्सी नाम की वस्तु है। 

            ऐसे में किसी ने खुद को विधायक घोषित ही कर दिया है। आजकल यही है जनता को कोई विकल्प देना खतरा मोल लेना है आपको मुझी को चुनना होगा का आत्मविश्वास होना कमाल की बात है। ऐसे सभी नेताओं को किसी दिन इक सभा उन लोगों की याद में आयोजित करनी चाहिए जो उनकी तरह अधूरे ख्वाब लेकर इस बेरहम दुनिया से चले गए उनकी याद भी किसी को नहीं आती। जिनको मौत के बाद नाम की चिंता है उनके लिए किसी शायर का इक शेर है। 

                      बाद ए फ़नाह फज़ूल है नाम ओ निशां की फ़िक्र ,

                         जब हमीं न रहे तो रहेगा मज़ार क्या। 

      सत्ताधारी दल हाथ जोड़ फिर से याचक बनकर आया है , पांच साल तक झूठ का परचम लहराया है सच को ठिकाने लगा जाने किस जगह दफनाया है ये देखो कौन कौन आया है। समंदर समझने वाला हर शख्स दो बूंद मांगने आया है इस खारे समंदर ने कितना तड़पाया है। जनसेवा की बात से कितना बहलाया है जनता जानती नहीं कितना धोखा खाया है। सामने मंच पर मासूम भला सा किरदार निभाते हैं मंच के पीछे बदले सुर नज़र आते हैं। दाग़ अच्छे हैं उनकी विचारधारा है हर अपराधी उनका सहारा है , किसी बाबा की याद दिल में आती तो होगी , कितना बड़ा उसका योगदान था जिताने में। उनका प्यार किस्सा शामिल रहा है इनके  फ़साने में , कातिल अपराधी को महत्मा बताने में। शर्म नहीं आई उसके अवैध निर्माण को वैध बनाने को नियम को बदलने को अध्यादेश लाने में। सुशासन क्या इसी को कहते हैं।  हर तरह घना अंधेरा है देश को समस्याओं ने हर ओर से घेरा है आप कहते हैं अमावस की अंधियारी रात को यही नया सवेरा है। आप की नहीं देश की जनता की बदनसीबी है। ये कैसी मुहब्बत है देश से प्यार की बातें सुनते हैं तो लगता है कोई भीड़ दहशत फैलाती है। अच्छे दिन की बात नहीं होती , गंगा भी मैली नज़र आती है। लो देखो ये बारात आई है मगर सबने चेहरे पर बांध रखा है सेहरा दूल्हा बना हर बाराती है। सेज अपनी सभी को सजानी है लूट की लिखी गई कहानी है। जिसको समझते हैं रुत सुहानी है घुटन और भी बढ़ानी है। ये महबूबा बड़ी मस्तानी है।

कोई टिप्पणी नहीं: