अक्तूबर 03, 2018

मैं खुदा आप होना चाहता हूं ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

     मैं खुदा आप होना चाहता हूं ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

               बस यही इक खिलौना चाहता हूं , मैं खुदा आप होना चाहता हूं। 

   बच्चे अपने वालदेन से और महिलाएं अपने पति से ज़िद कर मनवा लेते हैं अपनी बात। मुझसे भी मेरी पत्नी कुछ भी नहीं मांगती है इक ताजमहल की दरकार रही है उसको।  सब कुछ खुदा से मांग लिया तुझको मांगकर , उठते नहीं हैं हाथ मेरे इस दुआ के बाद। ये कहने वाला शायर भी कमाल का था कोई तो इतना भी कहता है कि खुदा से भी मांगना क्यों पड़े अच्छा है हाथ उठाने लगा तो हाथ ही पत्थर के बन जाएं। मगर कोई है जो ज़िद पर अड़ा है कौन इस दुनिया में मुझसे बड़ा है। वास्तव में उसे कुछ भी नहीं चाहिए बस खुदा वाला रुतबा मिल जाए तो जान बख्श दे सभी की , उस से पहले कोई नेता आदमी कहलाने के काबिल नहीं था। सब के सब चोर थे लुटेरे थे देश को बर्बाद करते रहे उसी ने बनाया सभी जो भी बना दिखाई देता है। वक़्त लगता है सारे पत्थरों पर नाम बदलवाना तारीख बदलवाना कितना काम बाकी है अभी दस साल और लगेंगे सब पुराने नाम मिटाने में और उन पर खुद अपना नाम खुदवाने में। काश कोई सॉफ्टवेयर बना होता जो एक कमांड देते ही सब पुराना डिलीट कर आज की तारीख़ में उसका अपना नाम लिख सकता मगर उस तरह से जैसे आशिक़ का नाम गुदवाती है अपने बदन पर माशूका। 
 
            पहले कभी नहीं देखा सुना था जैसे आजकल हर नेता हर बात कहते हुए उसके नाम से पहले आदरणीय माननीय  .. ..... ....... ....... जी की सरकार शब्द उच्चारण करता है जैसे कई महात्माओं के नाम से पहले श्री श्री 1008 लगाना आदर सूचक ज़रूरी है। इक ऐसे महत्मा मंच संचालक को फिर से याद दिलवा रहे थे कि उनके नाम से पहले अब 108 नहीं 1008 लगाना है। ये कोई और तय नहीं करता खुद वही लोग तय किया करते हैं। अपने दल के सभी नेताओं को जितनी जल्दी ये पाठ याद करवाया है अगर कहीं चार शब्द संविधान में बताये सब नागरिक एक समान हैं और किसी जाति धर्म पुरुष नारी होने से कोई मतभेद नहीं किया जा सकता और कोई सरकार किसी के विरोध करने आंदोलन करने को रोक नहीं सकती न ही अपने विरोधियों का दमन कर सकती है ये सबक भी समझा देते तो कितना अच्छा होता। कुछ तो सकारात्मक भी किया होता , खुदा बनाता है मिटाने का इल्ज़ाम अपने सर नहीं लेता है। 
 
             सबसे पहले जिसको खुदा कहलाना हो उसे किसी दूसरे खुदा भगवान देवी देवता की चौखट पर नहीं जाना पड़ता है। पढ़ना जिस जिस ने खुदा होना चाहा क्या किया। आजकल मामला हर जगह समझ से बाहर है। अभी कुछ साल पहले तलक घूंघट पर हिजाब पर शायर कवि फ़िदा थे , कितने शेर कितनी कविताएं कितने गीत याद आने लगे , निकलो न बेनकाब , परदा है , रुख से ज़रा नकाब हटा दो , जाने किस किस की मौत आई है आज रुख पर कोई नकाब नहीं। तब महिलाएं विशेषकर शहरी पढ़ी लिखी समझती थीं ये बंदिश हमीं पर क्यों है। अब जब परदा करना चलन में नहीं रहा तो फिर से लड़कियां चेहरे को इस तरह ढकती हुई दिखाई देती हैं कि केवल उनकी आंखें नज़र आती हैं। मैंने भी इक शेर कहा है :-

    छुपा नहीं छुपाने से हुस्न कभी भी दुनिया से , हसीं सभी हटा अपना हिज़ाब क्यों नहीं देते।

कुछ लोग आजकल जहां भी जाते हैं अपनी शान बढ़ाने दिखाने जाते हैं। इनको भी यकीन है भगवान के सच्चे भक्त उतने बचे नहीं जितने उनके सच्चे भक्त हैं। मगर खुद अपना मंदिर तो नहीं बनवा सकते , कभी देखा सुना किसी भगवान ने अपना मंदिर बनाने को कहा हो। भक्त लोग समझते ही नहीं कब बनाओगे इतना इंतज़ार तो अमेरिका जाने का भी नहीं किया था। अभी तक जितने भी भगवान देवी देवता हुए हैं उन में किसी ने उनको भगवान देवी देवता मानने की बात किसी भी तरीके नहीं कही थी। लोगों ने जिसे चाहा खुदा मसीहा भगवान बना डाला। हम इंसानों को हर किसी को खुदा समझने की लत लगी हुई है मगर कोई खुद आकर नहीं कहता मुझे खुदा कहकर पुकारो। जाने कितने खुदा बने और मिट भी गये हमने तराशे भी और तोड़े भी , अभी कितने खुद को भगवान घोषित करने वाले कैदखाने की शोभा बढ़ा रहे हैं। असली दौलत तो खुद्दारी की होती है और शायर नुशूर वाहिदी जी का इक लाजवाब शेर है :-

                 यही कांटें तो कुछ खुद्दार हैं सहन ए गुलिस्तां में ,

                 कि शबनम के लिए दामन तो फैलाया नहीं करते।

  भगवान बनना है तो खुद को बुलंद करो किसी और को छोटा करने से कोई बड़ा नहीं हो जाता है। भगवान कहलाने की चाहत करना क्या है इक बात से समझाना चाहता हूं। मुझे मेरे बेटे ने कई साल पहले इक डायरी मरे 50 वें जन्म दिन पर दी थी उपहार में , जिस पर इंग्लिश में इक बात लिखी हुई थी जिसका हिंदी में अर्थ है। कि शोहरत इक गुनाह है जब उसकी चाहत की जाती है , ये  आपके नैतिक आदर्शों पर और अच्छे आचरण पर निर्भर है और खुद ब खुद हासिल हो जाती है।


   इश्तिहारों की शोहरत अस्थाई होती है , वास्तविक शोहरत अभी कुछ दिन पहले सभी ने देखी है। अटल बिहारी वाजपेयी जी के निधन पर देश भर में और दिल्ली में भी वो भी तब जब उनका राजनीति से कोई नाता बाकी नहीं था सालों से। भगवान की ही बात करें तो वो लोगों के दिलों में बसते हैं इमारतों में नहीं मिलते किसी को तलाश करने से।

1 टिप्पणी:

durgesh nandan ने कहा…

बड़े दिनों से कुछ निगला नहीं, सो उगल भी नहीं पा रहा था । आपके लेखनी ने खुदा निगलवा दिया , शायरों का योगदान पचाने में रहा। देखते हैं क्या निकलता है ।