जून 22, 2018

जीवन के दोराहे पे खड़े सोचते हैं हम ( टीवी शो की बात - कुछ हक़ीक़त कुछ फ़साना ) भाग - 2 डॉ लोक सेतिया

               जीवन के दोराहे पे खड़े सोचते हैं हम 

            ( टीवी शो की बात - कुछ हक़ीक़त कुछ फ़साना ) भाग - 2 

                                      डॉ लोक सेतिया 

ज़िंदगी के क्रूसरोड्स।  अभी शुरू हुआ है सोनी टीवी पर इक शो। कुछ दिन पहले लिखा उसकी दो कहानियों को लेकर , कल रात की कहानी कुछ हटकर थी। कल इत्तेफाक से इक हास्य कविता लिखी थी सोशल मीडिया की प्यार की कहानी के अंजाम पर। सुबह सैर पर गया तो दोनों कहानियां डगमग हो गईं। पहले रात की बात। बहुत ही अच्छा परिवार पुराने ढंग से आपस में तालमेल से ख़ुशी से जीता हुआ। बेटा नौकरी करता है मगर सब कुछ पिता के हाथ में है , पूरा वेतन घर पर देता है और पिता घर पत्नी को बेटे को ज़रूरत को देता ही नहीं है बल्कि घर पर काम करने वाली महिला को बच्चों की शिक्षा की खातिर एडवांस देने की बात जब पत्नी बताती है तो इंसानियत की मिसाल बनकर पत्नी को और अधिक पैसे रखने को कहता है ताकि बाद में उस महिला के बच्चों को किताबों के लिए भी दिए जा सकें। टीवी पर अधिकतर दर्शक इन सब को शायद ही ध्यान से देख रहे थे। तभी पिता अपने बेटे की शादी की बात पत्नी से करता है और जिस लड़की की बात करता है उस में कोई कमी नहीं है पत्नी भी जानती है। बेटे को पिता सूचित करता है हमने तेरे लिए लड़की देख ली है और तारीख तय कर बता देंगे तुम अपनी पसंद से शादी का कार्ड छपवा लेना। आजकल के अधिनिक सोच वालों को पिता किसी तानाशाह से कम नहीं दिखाई देता होगा। 
 
      अब पत्नी की बात जो वास्तव में घर ही नहीं सब को संभालती है। बेटा अपनी मां को बताता है उसे किसी लड़की से प्यार है तीन साल से जनता है और शादी का वादा कर चुका है। मां पति से बात करती है और पहली बार शादी के तीस साल बाद कुछ मांगती है अपने बेटे की ख़ुशी। क्योंकि बेटे की इक कही हुई बात उसके दिल को छू जाती है कि मां के बाद उसके जीवन में यही महिला महत्वपूर्ण है। पति बेटे की शादी का निर्णय पत्नी पर छोड़ देता है। यहीं से इक दोराहा सामने आता है। लड़की देखने जाने पर मां का सामना जिस लड़की से होता है उसे चार साल पहले किसी अस्पताल में देख चुकी मिल चुकी है वो भी जब लड़की अपना गर्भपात करवाने आई होती है। पिता नहीं जनता बेटा भी नहीं जनता फिर भी मां उस लड़की को बहु बनाने को हामी भर देती है। टीवी स्टूडियो में बहस होने लगती है कुंवारी लड़की लड़के को लेकर। कोई कहता है हम बाहर जो कहते हैं अपने घर में स्वीकार नहीं करते। इक लड़की जिसका पिता भी बैठा है दूसरी लड़की की बात का जवाब देती है और पूछती है क्या मेरे चेहरे पर लिखा है या दिखाई देता है कि मैं कुंवारी हूं। 
 
        शादी के बाद लड़की चाहती है सास से अलग होकर रहना। दर्शक समझते हैं ये खराब बहु है जबकि वास्तव में किसी के लिए भी किसी ऐसी महिला के साथ रहना जो उसके अतीत के बुरे अनुभव को जानती हो हर दिन इक अपराधबोध में रहना होगा जो बेहद कठिन है। मगर बेटा नहीं चाहता घर से अलग होना। तभी इक और हादिसा होता है बहु का पहला आशिक उसको ब्लैक मेल करने को बुलाता है और आठ लाख की मांग करता है ये बात भी सास सामने उनसे छिपकर देख सुन लेती है। लोग फिर बहस में उलझे हैं और कुछ भी कह रहे हैं।  किसी और पर फैसला करते हुए हम वो नहीं होते जो खुद पर आती है तब होते हैं। बेटा अपनी मां से कहता है कि उसकी पत्नी को किसी शादी में जाना है और आपके गहने पहनना चाहती है। मां कहती है जब बहु को मेरा साथ रहना भाता नहीं तो फिर मेरे गहने भी उपयोग नहीं कर सकती उसके अपने गहने हैं वही इस्तेमाल कर सकती है। कोई नहीं जनता इस कहानी की मां का किरदार किस ऊंचाई पर होगा। वो जानती है उसे गहने किस काम को चाहिएं। बहु के फोन से उसके पुराने आशिक को मिलने को बुलाती है और अपने गहने बेच कर आठ लाख उसे देकर साफ़ कहती है कि दोबारा उस लड़की की ज़िंदगी में दखल दिया तो मैं किसी भी सीमा तक जा सकती हूं। स्टूडियो में और टीवी पर देखने वाले अभी भी ठीक से नहीं समझ सकते उस नारी को जो आज की सीता भी है और मां भवानी भी। 
 
       कहानी का अंत कोई कल्पना नहीं कर सकता है।  घर आने पर पति को जब पता चलता है कि पत्नी ने बैंक लॉकर से निकल गहने बेच दिए तो पूछता है किसलिए।  अगर नहीं बताया तो मतलब होगा कोई गलत काम किया है जो छुपाना है।  तब पति साफ कहता है तुम्हारा मेरा कोई रिश्ता नहीं रहेगा , हम एक साथ एक छत के नीचे रहकर भी अजनबी होंगे। ये सब सामने देख रही बहु कुछ भी नहीं बोलती मगर उसकी ख़ामोशी उसकी नज़रें सब कहती हुई लगती हैं। आपको आगे कुछ भी नहीं दिखाया जाना मगर उस सास बहु में जो रिश्ता बना है वो सब से अलग है।  इक महिला ही दूसरी महिला के दर्द को समझ सकती है बांट सकती है और इक मां अपने खुद पर तपती लू झेल कर भी बच्चों को गर्म हवा नहीं लगने देती है। किसी कहानी में किसी महिला का किरदार इससे ऊंचा नहीं हो सकता है। 
 
           कल की लिखी पोस्ट की बात। महिला अपना सब दांव पर लगाकर जिस लड़की और लड़के का साथ देती है समाज के खिलाफ जोखिम उठाकर। आज वो खामोश है। घर से भागकर शादी करने वाली लड़की हालात से तंग आकर आशिक के साथ पति पत्नी की तरह रहने के बाद घर वापस लौट आई है और समझौता कर फिर से किसी से विवाह कर लिया है। आजकल की युवा पीढ़ी को डिलीट करना आसान लगता है , फोन में कॉन्टैक्ट से नाम हटा दिया और फेसबुक से तस्वीरें मिटा दीं इतना सा संबंध है। मगर मैं जो कहानी लिख चुका उसको झुठला नहीं सकता। पन्ने फाड़ देने से भी कुछ नहीं होगा। और मेरी सब से अच्छी कहानी कितनी जगह छप भी चुकी है और तमाम महिलाओं को संदेश भी देती है आंचल को परचम बनाने को।

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