अक्तूबर 04, 2016

हम सभी देश भक्त हैं ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

           हम सभी देश भक्त हैं ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

        देशभक्ति किसे कहते हैं शायद उसकी कोई परिभाषा कभी रही होगी , तब जब कुछ लोग देश को गुलामी से मुक्त करवाने की खातिर अपना तन मन धन सब कुछ देश की आज़ादी पर कुर्बान किया करते थे। जब देश आज़ाद हो गया तब भला उस पुरानी देशभक्ति की क्या ज़रूरत थी। बस देशभक्त कहलाने को नारे लगाना ही काफी था। फिर भी कुछ साल तक लोग थोड़ा तो लिहाज़ करते ही थे कि कुछ ऐसा नहीं करें जो लोग नफरत करने लगें कि देश के प्रति निष्ठा तक शक के घेरे में आ जाये। तब  तक नेता हों या प्रशासन के अधिकारी कुछ लाज रखते थे अपने पद की , इतने ऊंचे ओहदे पर बैठ इतना नीचे नहीं गिरना। आत्मसम्मान की कीमत धन दौलत से कहीं बड़ी समझी जाती थी। कहते हैं हम तरक्की कर आये हैं , कहीं से कहीं आ पहुचें हैं। आज देखते हैं कौन कौन क्या करता है और देशभक्त भी खुद को मानता है।

         बीस साल पहले मंत्री मुख्यमंत्री हो तो उसे भाई बंधु शहर में जहां कहीं भी किसी सरकारी विभाग की जगह या ज़मीन पड़ी हो या कोई पार्क अथवा मैदान हो उसको कब्ज़ाकर अपनी संपति घोषित कर लिया करते थे , और उसके बाद सत्ता का दुरूपयोग कर उसको अधिकृत भी करवा लिया करते थे। अधिकारी लोग भी हर काम के बदले घूस लेने लगे थे। आज़ादी का मतलब यही सभी को समझ आया था कि आपका देश है और जितना अंग्रेज़ नहीं लूट सके उतना खुद ही लूटना है। बस राजनीति और अफसरशाही में इक सहमति बन गई थी चोर चोर मौसेरे भाई वाली , मगर तब भी अपने अपकर्मों पर शर्म कभी  कभी आती अवश्य थी। उसके बाद जैसे जैसे परिवारवाद और जातिवाद राजनीति का आधार बना तो भ्र्ष्टाचार ही सत्ता की नींव बन गया।  सारा खेल ही पैसे की राजनीति का बन गया। चुनाव धन बल और बाहुबल से लड़ा और जीता जाने लगा। नैतिकता  को सब दलों ने ताक पर रख दिया और सत्ता की खातिर उन से हाथ मिला लिया जिन के विरुद्ध जनता के पास गये थे। जनता को ठगना राजनीति का अनिवार्य पाठ हो गया।

                  अब आज की बात , नेता ही नहीं प्रशासन के अधिकारी भी खुद अपराध कराते हैं , विभाग की भूमि या प्लॉट्स पर कब्ज़ा करवाना और बाद में कब्ज़ा करने वाले को मालिकाना हक देना उनका पसंद का काम बन गया है। बड़े अफ्सर क्या क्लर्क तक करोड़पति बन गये हैं। अवैध धंधे आजकल पुलिस की अनुमति या सहमति अथवा सहयोग से चलते हैं , किस की मज़ाल है उनको रोके। आप जाकर किसी सरकारी विभाग में देखो सब जनता को लूटने में लगे हुए मिलेंगे। मगर यही झंडा फहराते हैं और देश प्रेम पर भाषण भी देते हैं। जो खुले आम रिश्वत लेते रहे वही बाद में देश सेवा और ईमानदारी के लिये राष्ट्रपति जी से सम्मानित भी होते हैं। देशभक्ति का प्रमाणपत्र और तमगे इन सभी के पास रखे हुए हैं , इनके घर में ड्राइंगरूम की दीवार पर सजी हुई है देशभक्ति।

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

...जितना अंग्रेज़ नही...खुद लूटना है... व्यंग्यपूर्ण लेख