दर्द अपने हमें क्यों बताए नहीं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया " तनहा "
दर्द अपने हमें क्यों बताए नहींदर्द दे दो हमें हम पराए नहीं।
आप महफ़िल में अपनी बुलाते कभी
आ तो जाते मगर बिन बुलाए नहीं।
चारागर ने हमें आज ये कह दिया
किसलिए वक़्त पर आप आए नहीं।
लौटकर आज हम फिर वहीं आ गए
रास्ते भूलकर भी भुलाए नहीं।
खूबसूरत शहर आपका है मगर
शहर वालों के अंदाज़ भाए नहीं।
हमने देखे यहां शजर ऐसे कई
नज़र आते कहीं जिनके साए नहीं।
साथ "तनहा " के रहना है अब तो हमें
उन से जाकर कहो दूर जाए नहीं।
1 टिप्पणी:
आप महफ़िल में अपनी बुलाते कभी ,आ तो जाते मगर बिन बुलाए नहीं। वाह , बहुत खूब !
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